“ज्ञान, संस्कार एवं मार्गदर्शन सें पुत्र को मां बनाती है, मानव से महामानव”

मातृत्व

समाज एवं राष्ट्र कार्य करने की प्रेरणा जागृत करने में माँ की भूमिका ही प्रथम”

मनुष्य के निर्माण और उसके विकास में गुरू का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हर सफल व्यक्ति के जीवन को देखते हैं तो उसमें उनके शिक्षक/गुरू के द्वारा दिया गया ज्ञान एवं शिक्षाओं का विशेष प्रभाव दिखाई देता हैं। यदि हम गुरू की सीख, दिए गए ज्ञान और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग की बात करते हैं तो पहला गुरू कौन है ?; यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से खड़ा होता हैं ? विचार करने पर ध्यान में आता है कि पहला गुरू कोई है तो वह मां हैं। जो अपने पुत्र-पुत्री में एक शिष्य के समान ज्ञान को प्रवाहित करती है।

वास्तव में मां की गोद में जो बच्चा रहता है उसे वह जो चाहे बना सकती है। हमारे इतिहास में मां के द्वारा सामान्य बालक को सम्राट तक बनाने का सामर्थ्य देखा गया है। मां में वह सामर्थ्य है कि वह अपने पुत्र को नर से नारायण बना सकती हैं। वर्तमान समय में देखने में आ रहा है कुछ स्थान पर मां उस दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वहन नहीं कर पा रही हैं। ईश्वर प्रदत्त जो गुरुत्तर दायित्व मां को सौपा गया है, उससे कहीं न कहीं वह अनभिज्ञ है , जबकी मां का भावी पीढ़ी के निर्माण के साथ ही राष्ट्र निर्माण में बहुत बढ़ा योगदान है ।

त्रेतायुग में कौशल्या माता ने अपने पुत्र राम का निर्माण कर उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बना दिया। कौशल्या माता को लोग आज आदर और सम्मान के साथ याद करते हैं। वहीं ऋषि पुलस्त्य की संतान होते हुए भी माता कैकसी के कुसंस्कार और अज्ञान से एक विद्वान पुत्र रावण भी राक्षस बन गया, जिसे लोग आज पाप का प्रतीक मानकर धिक्कारते हैं। इसका कारण है कि कैकसी खुद अपने पुत्र को राक्षस बनाना चाहती थी। आज माताओं को भी यह तय करना होगा कि वह अपने पुत्र की गुरू हैं और वह अपने शिष्य को क्या बनाना चाहती हैं।  इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं , जैसा माताओं ने चाहा वैसा अपने पुत्र का निर्माण किया ।

गर्भावस्था के समय सुनी हुई बातों का गर्भ में पल रहे पुत्र पर इतना प्रभाव होता है कि आश्रम में भगवान के स्मरण करने वाली माता कयाधु के गर्भ में पले प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्म लेकर भी भक्त बन गए। प्रह्लाद की भक्ति के कारण भगवान को नरसिंह अवतार लेना पड़ा। मां के गर्भ में अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश करना सीख लेता है मगर सुभद्रा की नींद लगने से वहा चक्रव्यूह से बहार आने से अनभिज्ञ रह जाता हैं । मां अगर सो जाएगी तो अभिमन्यु चक्रव्यूह भेद नहीं पाएगा। इसलिए मां को अपने पुत्र को कौन सी शिक्षा देना, कैसे शिक्षा देना उसकी प्रक्रिया क्या होगी उसे यह ज्ञान अर्जित करना होगा। एक मां को कौन-कौन सी बाते सीखना हैं आने वाली पीढ़ी को क्या सिखाना है, इसका आज की माताओं को स्वयं ज्ञान प्राप्त करना होगा ।

जब-जब मां ने अपने इस गुरू के स्थान पर अपनी भूमिका का उचित निर्वाहन किया तो एक सामान्य बालक की मां से वह हिन्दवी साम्राज्य के निर्माता शिवाजी महाराज का निर्माण करने वाली आदर्श माता जीजाबाई बन गई।  जीजाबाई के ज्ञान , संस्कार के कारण ही शिवाजी महाराज हिन्दू साम्राज्य का निर्माण करने में सफल हो सके। अपने शिष्य की सही मार्गदर्शक बनकर जीजाबाई शिवाजी की माता से जीजामाता के रूप में संपूर्ण भारत की माता बन गई। महात्मा गांधी के जीवन को पढ़ते है तो ध्यान में आता हैं उनकी मां पुतलीबाई धर्म-परायण महिला थीं। वह अपने पुत्र मोहनदास को पुराणों की कथाएं सुनाती थीं जिसका बालक मोहनदास पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। महात्मा गांधी अपनी जीवनी ‘सत्य के प्रयोग’ में लिखते  हैं। इंग्लैंड में पढ़ाई के लिए जाते समय उनकी मां ने उनसे तीन वचन लिए थे शराब, मांस एवं परस्त्री गमन नहीं करोगे, मां को दिए इन तीन वचनों का उन्होंने जीवन भर पालन किया। मां की इन्ही शिक्षाओं के कारण वह मोहनदास से महात्मा गांधी बन गए। आज भारत ही नहीं विश्व उस महात्मा के विचार से प्रभावित है ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जब बालक थे उस समय के उनके जीवन के घटित प्रसंग ध्यान में आते हैं। वह स्कूल जाते समय रास्ते में गिरे किसी बच्चे को घर लाकर उसकी सेवा करते हैं। मां पूछती है, तुम्हारे इस मित्र का नाम क्या है ? तो वे कहते हैं- ये मेरा मित्र नहीं ये तो रास्ते में गिर गया था तो मैं इसे यहां ले आया। माधव के इस कार्य के लिए मां उसे डाटती नहीं, बल्कि उसकी सराहना करती है। पुस्तक पढ़ते समय कहानी में खो कर बालक माधव कहानी के पात्र के दुख को अनुभव कर रोने लगता है तब मां कहती है- ईश्वर सबकी मदद करता है उसकी भी मदद करेगा।  जमीन पर कील ठोकते समय आवाज आने पर मां माधव को कहती है- धरती मां है, जैसे मैं तुम्हारी मां हूं और कोई मुझे कष्ट देगा तो तुझे कैसा लगेगा वैसे ही माधव कोई काम ऐसा मत करना जिससे भारत माता को कष्ट हो। मां द्वारा बालक माधव को दी गई शिक्षा उनके जीवन में स्थायी बन गईं। लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र माधव को सही ज्ञान देकर उसे विश्व विख्यात बना दिया ।

दामोदरपन्त, बालकृष्ण और वासुदेवराव इतिहास के अमर बलिदानी हैं। उन्होंने हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूमा । उन्हें आज चाफेकर बंधुओं के नाम से जाना जाता है। धन्य हैं उनकी माता जिनकी तीन-तीन संतानों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी । भगिनी निवेदिता चाफेकर बंधुओं की मां दुर्गाबाई चाफेकर को सांत्वना देने गई तो मां ने निवेदिता से कहा, ‘इसमें शोक कैसा ? मेरे बेटे तो दुखियों-पीड़ितों की रक्षा में बलिदान हो गए और इसलिए फांसी चढ़े कि देश का भला हो। बेटी! तुम दुख मत करो, तुम्हारे दुख करने से तो इन हुतात्माओं का निरादर होगा।’ धन्य हैं ऐसी मां जिन्होंने चाफेकर बंधुओं जैसे वीर सपूतों को जन्म दिया। आज अगर चाफेकर बन्धुओं जैसे पुत्र चाहिए तो मां को भी दुर्गाबाई बनकर पुत्रों को लोकल्याण हितार्थ शिक्षा देने की जरूरत है ।

सामान्य सी दिखने वाली हीराबेन का अपने पुत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कितना प्रभाव रहा होगा कि वह मां के विषय में बोलते समय भावुक हो जाते हैं। आज भी जब माता-पुत्र के चित्र सामने आते हैं तो ध्यान आता है कि किस प्रकार से हीराबेन ने अपने पुत्र को दिशाबोध कराया होगा जिससे वह आज ‘जगत मानव’ बन पाए ।

हमारे धर्म ग्रन्थों में सबसे ऊँचे स्थान पर माता को देखा गया है। मां को दैवीय शक्ति कहा गया ईश्वर भी उस दैवीय शक्ति की आराधना करते हैं। संकट काल में जब सभी मार्ग बंद हो जाते हैं तो मां ही मार्ग दिखाती, उसी के सामने जाकर पुत्र अपनी समस्या को बेझिझक कह सकता है। वह अपने मातृत्व भाव से सान्त्वना देती है और क्या उचित है इसका मार्गदर्शन करती है। इस प्रकार स्वाभाविक रूप से मार्गदर्शक और गुरू का स्थान मां प्राप्त कर लेती हैं ।

देखने में आ रहा हैं कि वर्तमान के इस भौतिक युग एवं पाश्चात्य प्रभाव में कहीं न कहीं इस गुरुत्तर दायित्व से मां का दूर रहना ही आधुनिकता माना जाने लगा है । नारियां मातृत्व प्राप्त करना ही नहीं चाहतीं और जो मातृत्व प्राप्त करना चाहती हैं वे इसका विचार भी नहीं करती कि उन्हे कैसी संतति को जन्म देना है। आज की माताओं को अपने पुत्र-पुत्रियों को ज्ञान , संस्कार एवं मार्गदर्शन देने लिए उनके पास समय नहीं है। एकल परिवार और माता-पिता दोनों के नौकरियों में होने के कारण बालक को माता रूपी गुरू से जो ज्ञान प्राप्त होना चाहिए, उससे वह वंचित है। आज के इस युग में इन सभी बातों में तालमेल बैठाकर माताएँ अपने इस गुरूत्तर दायित्व को निभाएं तभी वास्तव में मानव, समाज एवं राष्ट्र का कल्याण संभव होगा और बालक रूपी अपने शिष्य के साथ गुरुरूपी मां सही न्याय कर सकेगी ।

लेखक:-श्री निखिलेश महेश्वरी, भोपाल(मध्यप्रदेश)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

gaziantep escort bayangaziantep escortkayseri escortbakırköy escort şişli escort aksaray escort arnavutköy escort ataköy escort avcılar escort avcılar türbanlı escort avrupa yakası escort bağcılar escort bahçelievler escort bahçeşehir escort bakırköy escort başakşehir escort bayrampaşa escort beşiktaş escort beykent escort beylikdüzü escort beylikdüzü türbanlı escort beyoğlu escort büyükçekmece escort cevizlibağ escort çapa escort çatalca escort esenler escort esenyurt escort esenyurt türbanlı escort etiler escort eyüp escort fatih escort fındıkzade escort florya escort gaziosmanpaşa escort güneşli escort güngören escort halkalı escort ikitelli escort istanbul escort kağıthane escort kayaşehir escort küçükçekmece escort mecidiyeköy escort merter escort nişantaşı escort sarıyer escort sefaköy escort silivri escort sultangazi escort suriyeli escort şirinevler escort şişli escort taksim escort topkapı escort yenibosna escort zeytinburnu escort