देवर्षि नारद जी आद्य पत्रकार थे, नारायण- नारायण का जाप करते थे, लेकिन उन्होंने कभी अपशब्द का इस्तेमाल नहीं किया

आज भी जब समाज में कोई चुनौती होती है तो सबसे पहले निगाह मीडिया की तरफ जाती है, हमारी भारतीय संस्कृति का आधार वसुदेव कुटुम्बकम ही है

उज्जैन, 6 मई। पत्रकारिता के पितृ पुरूष देवर्षि नारद जयंती के अवसर पर विक्रम विश्व विद्यालय स्थित शलाका दीर्घा में शाम 4 बजे विश्व संवाद केंद्र मालवा द्वारा पत्रकारिता पर केंद्रित वैचारिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के पहले मुख्य वक्ता के रूप में डिजिटल भास्कर के मध्य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ के वीडियो हेड श्री विजय कुमार पंड्या ने “भारत की संस्कृति के दृष्टिकोण से महर्षि नारद विश्व में पत्रकारिता के प्रथम जनक” विषय पर संबोधित कर कहा कि देवर्षि नारद जी वैश्विक पत्रकार थे। नारायण नारायण उनकी टेग लाइन थी। हमे संचार का निर्वहन और वाणी का संयम नारद जी ने सीखना चाहिए। उन्होंने कभी अपशब्द का इस्तेमाल नही किया। नारद भक्ति सूत्र से सीखने की जरूरत है।

दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में नईदुनिया मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ के संपादक श्री सद्गुरु शरण अवस्थी ने “भारत की संस्कृति के रक्षण में पत्रकारिता का योगदान” विषय पर अपना मुख्य वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि समाज मे जब कोई चुनौती होती है तो सबसे पहले निगाह मीडिया की तरफ जाती है। सनातन संस्कृति के उतार चढ़ाव पर उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति पर कई हमले हुए है। फिर भी हमारी संस्कृति अनूठी है। बहुत विराट है। ये सिर्फ मनुष्यों की नही सभी प्राणियों की है। ये भारत की नही, पूरे विश्व की संस्कृति है। हमारी भारतीय संस्कृति का आधार वसुदेव कुटुम्बकम ही है। कोरोनो में भारत के सामने महाशक्तिया घुटने टेकते नजर आई। लेकिन भारत ने वैक्सीन तैयार कर पहले भारत को सुरक्षित किया। फिर 100 दूसरे देशों को वैक्सीन दी। चाहते तो न देते मगर हमारी संस्कृति पूरे विश्व को अपना परिवार मानती है। उन्होंने कहा कि दुनिया मे कही भी आपदा आती है तो भारत सबसे पहले खड़ा रहता है। मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझना होगी। समाचार पत्र आज भी शशक्त है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी ताकतवर है। यह विस्तार बहुत गहरा है। मगर सदुपयोग नही हो रहा। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विक्रम विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन आर के नागर ने किया और आभार डॉ. उदित्य सिंह सेंगर ने माना।

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