
प्रयागराज महाकुम्भ – एक अभूतपूर्व आयोजन
‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ .. वैसे तो बाबा तुलसीदास की यह पंक्ति अपने आप सब कुछ अत्यन्त सरलता और स्पष्टता से कह देती है। परन्तु जिन लोगों को परिष्कृत भाषा समझ ही नहीं आती उनकी सुविधा के लिए बाबा आदित्यनाथ ने एकदम ठेठ शैली में बता दिया कि महाकुम्भ में गिद्धों को लाशें नजर आई तो सूअरों को गन्दगी!
65 करोड़ लोगों द्वारा पावन त्रिवेणी संगम पर स्नान का पुण्य लाभ अर्जित होने के पश्चात 26 फरवरी, महाशिवरात्रि को महाकुम्भ का औपचारिक समापन हो गया। एक अत्यन्त दुखद दुर्घटना के अतिरिक्त यह विराट समागम निर्विघ्न संपन्न हुआ। इसका श्रेय योगी जी के नेतृत्व और हजारों कर्मियों के परिश्रम को जाता है। आज के इंस्टा, FB और सेल्फी युग में श्रद्धालुओं से खचाखच भरे संगम घाट की विहंगम तस्वीर पूरे विश्व में लम्बे समय तक याद रखी जाएगी।
महाकुम्भ के माध्यम से वहां की व्यवस्था, प्रशासन की चुस्ती, आम जनता में आस्था के पुनर्जागरण आदि पर सतत चर्चा चल ही रही है। इस प्रकार के विशाल आयोजन के सफल समापन होने पर इन विषयों पर चर्चा होना स्वाभाविक ही है। परन्तु इस सम्बंध में कुछ अन्य आयामों की चर्चा भी प्रासंगिक होगी।
इस महाकुम्भ के माध्यम से भारतीय मध्यम वर्ग की बढ़ती समृद्धि और क्रय शक्ति का प्रभावी प्रदर्शन देखने को मिला और साथ ही गत 10 वर्षों में सभी प्रकार के मार्गों और राजमार्गों आदि के निर्माण और सुधार में जो प्रचण्ड निवेश हुआ है उसके भी प्रभाव देखने को मिले। 65 करोड़ लोगों का आंकड़ा वहां स्नान करने वाले लोगों का है। इसमें एक व्यक्ति यदि 7 दिवस वहां ठहरता है और प्रतिदिन वहां स्नान करता है तो उसकी गणना भी 7 बार होती है। निश्चय ही प्रयाग राज पहुंचने वालों की संख्या, स्नान करने वालों की संख्या से काफी कम है। एक अनुमान के अनुसार वास्तविक पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 20 करोड़ के लगभग रही है। इन में से कुछ 5 करोड़ श्रद्धालु रेल के माध्यम से प्रयागराज पहुंचे। हवाई यात्रा के माध्यम से तो अत्यन्त सीमित संख्या में ही लोग पहुंचे हैं। निश्चय ही करीब 15 करोड़ लोग बसों और कारों से प्रयाग राज पहुंचे हैं। प्रयागराज में प्रवेश के मार्गों पर लगने वाले भीषण यातायात के थक्के भी इस तथ्य को रेखांकित करते रहे हैं कि लाखों वाहन प्रतिदिन वहां पहुंच रहे थे।
जाहिर है, सबसे बड़ी संख्या में श्रद्धालु निजी वाहनों से ही प्रयागराज पहुंच रहे थे। इस तथ्य में वाहन को क्रय करने की शक्ति, ईंधन खर्च करने और मार्ग के व्ययों को वहन करने का सामर्थ्य सहज ही नजर आता है। यहां तक कि अधिकांश बसें भी निजी स्तर पर नियोजित की हुई दिख रही थी। वह पुराना दृश्य, जहां अत्यन्त खस्ता हालत की बस में क्षमता से दुगुने यात्री खड़े खड़े, दरवाजे के बाहर तक लटके और यहां तक कि बस की छत पर बैठ कर कुम्भ स्नान के लिए जा रहे हैं, एक बार भी देखने को नहीं मिला।
मात्र 25 वर्षों पूर्व यह दृश्य इस वृहद स्तर पर नजर आना असंभव था। शतप्रतिशत चतुष्पद मार्ग, लगभग सभी नगरों के बाहर बाई पास, विस्तीर्ण पुल और फ्लाईओवर। मार्ग के दोनों ओर भोजनालयों, ढाबों, पेट्रोल पम्प और फलों के ठेलों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता दिखा रही थी कि महाकुम्भ के इतर भी इन मार्गों पर इतनी आवाजाही रहती है कि ये सभी अच्छा व्यापार कर सकें। यह भी स्पष्ट है कि धन की उपलब्धता के साथ साथ व्यय करने की मानसिकता भी बदली है। घर से भोजन ले कर चलने की बजाय भोजनालयों में भोजन ग्रहण करने की मानसिकता बढ़ी है। दूर दराज के प्रदेशों से निजी वाहन ले कर आ रहे श्रद्धालु निश्चित ही अच्छी खासी राशि ईंधन और खान पान पर खर्च कर रहे थे।
पिछले एक दशक में हमारी GDP बढ़कर दुगुनी हो चुकी है। यानी जितनी GDP इसके पूर्व के 70 वर्षों में बढ़ी थी उतनी गत 10 वर्षों में ही बढ़ चुकी है। विशेषज्ञों का दावा है कि आने वाले 10 वर्षों में यह लगभग इतनी ही और बढ़ जाएगी। भारत निश्चित ही आर्थिक क्षेत्र की पगडंडियों से निकल प्रशस्त राजमार्ग पर आ चुका है। महाकुम्भ ने इस तथ्य को पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत किया है।
श्री श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर