झाबुआ जिले की भील कलाकार भूरी बाई को पद्म श्री

झाबुआ. भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने भील कला को अपनी चित्रकारी द्वारा नई पहचान दिलाने वाली झाबुआ जिले की भील कलाकार भूरी बाई को पद्म श्री से सम्मानित किया. भूरी बाई को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया है. भूरी बाई जनजाती समाज से आती हैं.

The President, Shri Ram Nath Kovind presenting the Padma Shri Award to Smt. Bhuri Bai, at the Civil Investiture Ceremony-IV, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on November 09, 2021.

भूरी बाई ने प्रारंभ से ही गरीबी का अनुभव किया है और बाल मजदूर के रूप में भी काम किया है. जब वह 10 वर्ष की थी, तब उनका घर आग में जल गया था. इसके बाद उनके परिवार ने घास से एक घर बनाया और वर्षों तक वहां रहे. वह बाल वधू थीं और विवाह के बाद की आय 6 रुपये प्रतिदिन की थी. कभी 6 रुपये कमाने वाली भूरी बाई की पेंटिंग 10,000 से लेकर 1 लाख रुपये तक में बिकी हैं.

उन्होंने भील कला को कैनवास पर उतारा. भोपाल में आदिवासी लोक कला अकादमी में एक कलाकार के तौर पर काम करती हैं. राज्य सरकार उन्हें अहिल्या पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है. उन्होंने पिथौरा कला सीखी थी. अब उन्हें इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने और इसे विश्व मंच पर ले जाने में योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है. लखनऊ से लेकर लंदन, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद से लेकर यूनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड किंगडम तक उनकी पेंटिंग्स पहुंच चुकी हैं.

अपने काम को लेकर अमेरिका की यात्रा कर चुकी हैं, जबकि कभी उन्हें अच्छे से हिन्दी तक बोलना नहीं आता था. उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है.

भूरी बाई बहुत छोटी थी, जब उनकी माता ने उन्‍हें कोठी (अन्‍नागार) तथा भील की झोपड़ी बनाना सिखाया. वे चिकनी मिट्टी, गोबर तथा चोकर के मिश्रण से आकृतियों को शक्ल देती थीं और दीवारों पर उनका लेप करती थीं. भूरी को गाय पसंद है, इसलिए वह अपनी दीवार के लिए हमेशा ही गाय का चित्र बनाती थी.

भूरी बाई ने कहा कि ये पुरस्कार मुझे आदिवासी भील पेंटिंग करने के लिए मिला है, मैंने मिट्टी से पेंटिंग की शुरुआत की थी. मैं भोपाल के भारत भवन में मजदूरी करती थी और उसके साथ पेंटिंग भी बनाती थी. मेरी पेंटिंग आज देश विदेश में जाती है. मैं बहुत खुश हूं.

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