वीर टंट्या मामा भील

जनजाति गौरव दिवस

 इनका जन्म मध्यप्रदेश के पश्चिम निमाड़ जिले के बिरदा गाँव में एक भील परिवार में हुआ था। उनके पिता भावसिंह व माता जीवणी थे।

मात्र 25 साल की उम्र में ही वह विद्रोही हो गये थे उन्होंने अंग्रेज चापलूसों को समाप्त करने का संकल्प लिया और पहली कार्यवाही निमाड़ के पोखर गाँव में की। अंग्रेजों ने टंट्या, बिझुनिया और दीपिया को धोखे से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। वहाँ से टंट्या मामा अपने साथियों सहित भाग निकले और फिर अंग्रेजों के खिलाफ जनजातीय समाज के लोगों की छोटी -छोटी टोलियाँ बनाकर संघर्ष करते रहे और गरीब असहाय लोगों की सहायता करते रहे। जहाँ भी किसी ग़रीब जनजातीय भील, भिलाला व अन्य समाज की बहू बेटियों से जोर -जबरजस्ती होती वे उनकी लाज बचाने तुरंत वहाँ पहुँच जाते थे और अत्याचारियों को सजा देते थे। इससे माताओं-बहिनों को यह विश्वास हो गया था कि यदि हम पर कोई अत्याचार होगा तो टंट्या हमें बचाने अवश्य आयेगा वे टंट्या को अपना भाई मानती थीं, ऐसा भाई जो हर मुसीबत में उनकी सहायता करता है।

इसी कारण टंट्या को क्षेत्र में टंट्या मामा के नाम से जाना-पहिचाना जाने लगा। टंट्या सबका मामा है, वह सबकी रक्षा करता है, वह तो देवता है, हमारी हर समय रक्षा करता है। वह सबका लोकदेवता बन गया था। इसीलिए आज भी निमाड़ टंट्या मामा को लोकदेवता के नाम से पूजा जाता है।

टंट्या मामा का प्रभाव जनजाति समाज के मानस पर इतना गहरा है कि आज हर भील जनजाति समाज के भाई अपने आपको मामा कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। वे गर्व करते हैं कि हम टंट्या मामा के वंशज हैं।

1880 में टंट्या मामा के दो मुख्य साथियों दीपिया और बिझुरिया को गिरफ्तार कर जबलपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। दीपिया जेल से भाग गया, बौखलाये अंग्रेजों ने बिझुरिया को सरेआम एक पेड़ से फाँसी से लटका दिया और लाश को उसी तरह छोड़ दिया गया ताकि खौफ फैले। पर क्रांति रुकी नहीं, चलती रही, बाद में जब दीपिया भी पकड़ में आया तो उसे कालापानी की सजा दी गई।

अंग्रेजों ने क्रांतिवीर टंट्या मामा को भी धोखे से पकड़कर जेल में डाल दिया और 4 दिसम्बर 1889 में जबलपुर सेंट्रल जेल में उन्हें फाँसी दी गई।

टंट्या मामा के बलिदान ने सम्पूर्ण संपूर्ण भील व अन्य जनजाति समाज के दिलों में उनके प्रति अगाध श्रद्धा भर दी और वे भीलों के भगवान हो गये।

आज यहाँ के लोग बड़े प्रेम से लोकगीतों में भी उन्हें स्मरण करते हुए गाते हैं  –

आयो रे आयो रे -टण्ट्या  मामा आयो रे

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे -2

आयो रे आयो रे टण्ट्या मामा आयो रे।। ध्रु.।।

माता जीवणी पिता भाऊसिंह -2

वनवासियों का दुःख मिटायो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।1।।

आयो रे…….

भीकनगाँव का बिरदा फलिया -2

तीर – कामठा लेकर आयो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।2।।

आयो रे…….

बहु- बेटी की लाज बचाने -2

साहुकारों को सबक सिखायो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।3।।

आयो रे…….

अंग्रेजो मेरे देश से भागो -2

वनपुत्रों में अलख जगायो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।4।।

आयो रे…….

सबका भाई , सबका मामा -2

जन – जन में विश्वास जगायो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।5।।

आयो रे…….

लोकदेवता टण्ट्या मामा -2

देश की ख़ातिर जान गंवायो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।6।।

आयो रे…….

जान गंवाकर, क्रांति जगाई -2

तुम्हरो जश “वनराज ” ने गायो रे,

टण्ट्या मामा -टण्ट्या मामा- टण्ट्या मामा आयो रे।।7।।

आयो रे…….

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