भोजशाला के महत्त्व को समझकर युवाओं को गौरवान्वित होना चाहिए।

भोजशाला के महत्त्व को समझकर युवाओं को गौरवान्वित होना चाहिए।

“सरस्वती माता ज्ञान की देवी है साथ ही सुर, संगीत, लय ताल की भी दाता है। प्रकृति में विद्यमान ज्ञान को प्रदत्त करती है।”

भोजशाला की जानकारी देश के प्रत्येक युवा को होनी चाहिए, जिससे वह जागरूक हो कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभूत कर सके। भोजशाला का इतिहास वहां की महत्ता से युवाओ को परिचित कराने के लिए सोशल मीडिया से लगाकर शैक्षणिक संस्थानों पर भोजशाला से संबंधित जानकारी प्रदान करनी होगी।
युवाओं को यह जानना और समझना जरूरी है कि भोजशाला कोई नाम मात्र का पौराणिक मंदिर या सिर्फ प्राचीन धरोहर नहीं है, भोजशाला अथाह ज्ञान के भंडार से भरा हुआ राजा भोज द्वारा निर्मित सरस्वती भवन है।
वर्तमान में भोजशाला को लेकर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर रील के माध्यम से उसके इतिहास उसकी महत्ता दिखानी चाहिए। ग्यारहवीं शताब्दी में जब राजा भोज ने ज्ञान के पावन उद्देश्य से भोजशाला का निर्माण किया, उसे युवाओं के समक्ष लाना होगा, जिससे वर्तमान में युवाओं को पता चल सके कि हमारे भारतीय इतिहास में ऐसे राजा भी है जो विज्ञान, कला और यांत्रिकी के साथ ही अनेक कलाओं का प्रयोग उस समय कितनी सुलभता और सरलता से करते थे और ऐसे आकृति बनाते थे जो देखते पर अन्तर आत्मा तक को आश्चर्यचकित कर दे। हर वो युवा आश्चर्य से आनन्द विभोर हो जाएगा जब वह पहली बार भोजशाला के दर्शन करेगा।

भोजशाला के सम्बंध में बहुत कम युवाओं को पता है आज भी अधिकतर युवा पीढ़ी उसी विमर्श को समझती है जिसे षड्यंत्रकरियो ने गढ़ा है। वे यही समझते हैं कि भूमि के लिए मुस्लिम समुदाय और हिंदू समुदाय में विवाद है और उन्हें यही बताया गया कि जगह तो मुस्लिम समुदाय की भी है और इतिहास से अनभिज्ञ युवा मानते है कि झगड़ा न करते हुए दोनों समुदाय आपसी प्रेम में बंटवारा कर शांति से अपने-अपने आराध्य की अर्चना करे।
इसलिए इतिहास से अनभिज्ञ युवा लाबी को भोजशाला के इतिहास को सरल सहज और सरस भाव से समझने की आवश्यकता है।
युवाओं को यह जानना बहुत जरूरी है कि आक्रांताऔं ने भारत पर आक्रमण कर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए छल-बल से लूटा और हजारों मंदिरों को ध्वस्त किया। हजारों मंदिरों को मस्जिदों का रूप दिया।
भोजशाला में भी ऐसा ही हुआ राजा भोज ने सन 1033 में भोजशाला की स्थापना की उसके बाद जब उन्हीं के वंश के राजा महलकदेव थे जब एक फकीर भिखारी मौलाना कलाम सन 1269 में आया जिसने गली-गली नगर-नगर भीख मांग कर कई राज मालूम किए यहां भारतीय उस मौलाना के दूसरे चहरे को देख नहीं पाए वो दुष्ट छल करते हुए भीख मांग कर राज्य की गोपनीयता को अलाउद्दीन खिलजी तक पहुंचाता रहा और जब वो समय आ गया कि आततायी अलाउद्दीन आक्रमण कर सके और जीत हासिल कर सके तब फकीर भिखारी कमाल ने आक्रमण संदेश पहुंचाया और दुष्ट क्रूर अलाउद्दीन ने मुल्तान के सूबेदार आईन-उल-मुल्क के नेतृत्व में सेना भेजी और युद्ध शुरू हुआ। महलकदेव और उनका वीर योद्धा सेनापति हरनंद बहुत वीरता से लड़े अंततः वे भी छल और धोखे और षड्यंत्र का शिकार हुवे और वीरगति को प्राप्त हुए। सन 1305 नवंबर में किले पर अधिकार कर उसे दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया और सन 1308 में कमालुद्दीन को वहा का शासक बना दिया। सन 1401 में दिलावर खान आया उसके बाद होसंग शाह ने अपने पिता को मौत के घाट उतार दिया और राजा बना उसी ने बाहर के मंदिर को तोड़ दिया और उस स्थान पर मस्जिद बनाई जिसे मौलाना कमाल मस्जिद का नाम दिया गया।
200 वर्ष के बाद मराठा का राज हुआ उसके बाद 1826 में अंग्रेज आए और 1876 में भारत भूमि से माँ वाग्देवी की प्रतिमा को ले गए।
सन 1936 में दिवान नाडकर ने मुस्लिम समुदाय को वहा नमाज की अनुमति दी और उसके बाद 1952 में श्री महाराजा भोज स्मृति बसंतोत्सव समिति बनाई गई। सन 1971 से नमाज की अनुमति थी लेकिन हिन्दुओं का प्रवेश निषेध कर दिया था। सन 1992 में ऋंतबरा जी ने हिन्दुओं से आह्वान किया और सन 2003 में धर्म रक्षक संगम हुआ जब विरोध किया तो तीन धर्म वीरों को वीरगति प्राप्त हुई और कांग्रेस सरकार ने गलती नहीं मानी घोर विरोध के बाद मंगलवार को पूजन की अनुमति हिन्दुओं को मिली।

इतिहास स्पष्ट करता है कि, राजा भोज की यह भोजशाला विश्व में पहली संस्कृत अध्ययन शाला थी जिसमें एक हजार विद्यार्थी एक साथ विद्या अर्जन करते थे।
युवाओं को भोजशाला के अनुपम अद्भुत कलाकृति बता कर उन्हें समझाकर युवाओं से उन पर वीडियो ब्लॉग या फोटो ब्लॉग बनवाना चाहिए। जब युवा स्वयं करेगे तो रुचि अनुरूप और अधिक जानकारी जुटा कर उसे स्पष्ट और सच्चाई के साथ दिखाएगें।
युवाओं को इस बात पर भी गौर करने की आवश्यक है कि 1033 में स्थापित सरस्वती सदन भोजशाला में 1000 विद्यार्थी एक साथ विद्या अर्जन करते थे।
हालांकि जब युवाओं की टोली भोजशाला में प्रवेश करेगी तो उन्हें पता चलेगा कि भोजशाला के पग पग पर अनेक गुण समाए हुए है जिसे युवाओं को जान कर स्वयं पर, भारत पर, भारतीयता पर, गर्व होगा।

बहरहाल, युवाओं को इस बात को समझना होगा कि जिम्मेदारी दी नहीं जाता वरन जिम्मेदारी ली जाती है। इसलिए युवा पीढ़ी जिम्मेदारी ले और भोजशाला का अध्ययन करे, वहां जाए ऐतिहासिक महत्व को साथ में रखते हुए उसकी सत्यता को सभी के समक्ष प्रस्तुत करे।

रिंकेश बैरागी
झाबुआ, मध्य प्रदेश

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