२० से २६ दिसम्बर का वह सप्ताह, जब गुरुगोविंद सिंह के परिवार ने राष्ट्र के लिए सर्वस्व बलिदान कर दिया

गुरु गोविंद सिंह, जो कि सिखों के दसवें गुरु थे, उन्हें वर्ष 1704 में 20 दिसंबर को आनंदपुर साहिब किले को अचानक से बेहद कडक़ड़ाती ठंड में छोडऩा पड़ा था, क्योंकि मुगल सेना ने इस पर आक्रमण कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह चाहते थे कि वे किले में ही रुक कर आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दें, लेकिन उनके दल में जो सिख शामिल थे, उन्होंने खतरे को भांप लिया था। ऐसे में उन्होंने गुरु गोविंद सिंह से आग्रह किया कि इस वक्त यहां से निकल जाना ही उचित होगा। गुरु गोविंद सिंह ने आखिरकार उनकी बात मान ली और आनंदपुर किले को छोडक़र वे अपने परिवार के साथ वहां से निकल गए।बिछड़ गया गुरु गोविंद सिंह का परिवार -: सरसा नदी को जब वे पार कर रहे थे, तो इस दौरान नदी में पानी का बहाव बहुत तेज होने की वजह से गुरु गोविंद सिंह के परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह उनके साथ ही रह गए और वे उनके साथ चमकौर पहुंच गए थे। वहीं, दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी और उनके दो बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह अलग हो गए थे। गुरु गोविंद सिंह का सेवक गंगू इन्हीं लोगों के साथ में था। उसने माता गुजरी और गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को उनके परिवार से मिलाने का भरोसा दिलाया और उन्हें अपने घर लेकर चला गया। गंगू को सोने के मोहरों का लोभ हो गया था। इस वजह से उसने वजीर खां को इनके बारे में खबर कर दी।गिरफ्तार हो गए गुरु गोविंद सिंह के दो साहिबजादे -:इसके बाद वजीर खां के सैनिकों ने माता गुजरी और 7 साल के जोरावर सिंह और 5 साल के फतेह सिंह को गिरफ्तार कर लिया। सबसे पहले तो उन्होंने इन सभी को बहुत ही ठंडे बुर्ज में रखा। इसके बाद वजीर खां के सामने जब इन दोनों को पेश किया गया तो वजीर खान ने गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों से इस्लाम अपनाने के लिए कहा। लेकिन छोटे होकर भी गुरु गोविंद सिंह के इन दोनों बेटों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया। जब वजीर खां ने इनसे सिर झुकाने को कहा, तो इसके लिए भी दोनों ने इंकार कर दिया और कहा कि हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अतिरिक्त किसी और के सामने सिर नहीं झुकाते हैं। हमारे दादा ने जो कुर्बानी दी है, ऐसा करके हम उसे व्यर्थ नहीं जाने देंगे। हमने यदि किसी और के सामने सिर झुका लिया, तो अपने दादा को हम क्या जवाब देंगे। उन्होंने धर्म के नाम पर अपना सिर कलम करवाना उचित समझा, लेकिन झुकाना नहींदीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश -: इसके बाद भी वजीर खां ने गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को काफी धमकाया। उसने इन दोनों को डराने की भी कोशिश की। साथ ही उसने प्यार से भी इन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा, लेकिन इसके बाद भी दोनों साहिबजादे अपनी बात पर अड़े रहे। जब वजीर खां ने देखा कि दोनों उनकी बात नहीं मान रहे हैं, तो आखिर में उसने इन दोनों को दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश दे दिया। इसके बाद जब इन दोनों साहिबजादों को दीवार में चुना जाने लगा, तब दोनों साहिबजादे जपुजी साहिब का पाठ करने लगे। साहिबजादों ने धर्म व देश के लिए बलिदान दे दिया.२६ दिसम्बर को वीर बाल दिवस घोषित करना,साहिबजादों की राष्ट्र निष्ठा को कृतज्ञ राष्ट्र का प्रणाम है।

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