“निजाम मातृभूमि का दुश्मन” – बाबासाहब आंबेडकर

मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम अथवा हैदराबाद मुक्ति संघर्ष न केवल भारत की अखंडता, बल्कि संप्रभुता की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण संघर्ष था. हैदराबाद की स्वतंत्रता की लड़ाई के परिणाम स्वरुप हैदराबाद न केवल भारत का एक अभिन्न अंग बना, बल्कि अत्याचारी, जातीयता एवं सामंतवादी प्रवृत्ति के प्रतीक निजाम की सत्ता पर भी स्थाई रूप से विराम लग गया था. स्वतंत्रता की इस लड़ाई में अनेक देशभक्तों का बलिदान हुआ था और अनेकों ने अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय कारावास की कालकोठरी में स्वतंत्रता हेतु समर्पित कर दिया था. निजाम के उत्पीड़न से परेशान होकर असंख्य लोगों ने अपने प्राण बचाने के लिए धर्म परिवर्तन कर लिया था और जिन हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन नहीं किया था, उन्हें निजाम के रजाकर व इत्तेहादुल नामक अर्धसैनिक बलों ने जबरन धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश किया. निजाम के विरुद्ध उठने वाली हर एक आवाज को निजाम और उसके साथियों ने प्रलोभन अथवा शक्ति के बल पर दबाने का भरपूर प्रयत्न किया.

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बाबासाहब आंबेडकर

दलित समुदाय निज़ाम के जुल्म का सर्वाधिक शिकार था. निज़ाम दलितों को विभिन्न प्रलोभन दिखाकर स्वयं की तरफ लाने की कोशिश कर रहा था. निजाम और उसकी सत्ता इस बात का बहुत ध्यान रख रही थी कि दलित हैदराबाद मुक्ति संग्राम में शामिल न हों. भारतीय संविधान निर्माता बाबासाहब को भी निजाम ने 25 करोड़ रुपये का प्रलोभन देकर इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा था, लेकिन बाबासाहब ने निजाम के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि “दलित आर्थिक रूप से पिछड़े हो सकते हैं, लेकिन उनके दिमाग पिछड़े नहीं हैं. मेरे विवेक को खरीदने की ताकत किसी में नहीं है.” लेकिन बाबासाहब के अत्यन्त विश्वासपात्र सहयोगी बी.एस.वेंकटराव निजाम की इस नीति का शिकार हुए.

मराठवाड़ा के बाबा साहब के नाम से प्रसिद्ध बी.एस. वेंकटराव डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर के अत्यंत ही विश्वासपात्र सहयोगी थे. उनके प्रयत्नों से डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने नवयुवक मंडल की स्थापना की थी. बाद में इस मंडल का नाम बदलकर हैदराबाद डिप्रेस्ड क्लास एसोसिएशन रखा गया था. वेंकटराव ने अचानक अपनी भूमिका बदलते हुए निजाम के पक्ष में चले गए. बाबा साहेब को यह निर्णय पसंद नहीं था, अत: उन्होंने व्यंकटराव को समझाने का काफी प्रयास किया. लेकिन सब व्यर्थ था. इसीलिए हालात हाथ से बाहर जाने से पहले और इस प्रकार के अन्य वेंकट राव का जन्म न हो, इससे पहले ही बाबासाहब ने एक नए नेतृत्वकर्ता के रूप जे. सुबय्या को तैयार करते हुए हैदराबाद शेड्यूल कास्ट फेडरेशन की स्थापना की. बाबासाहब के नाम का उपयोग कर वेंकटराव और श्याम सुंदर जैसे लोग भोले-भाले गरीब दलितों को फंसाने एवं भ्रमित करने में लगे हुए थे. अतः बाबा साहब ने रियासत के समस्त दलित समाज को सम्बोधित करते हुए एक पत्र लिखा जो आज भी समाज के लिए मार्गदर्शक का काम करता है.

रिपब्लिकन पार्टी के कार्यकर्ता मोरे को बाबासाहब ने एक पत्र लिखा था. इसमें बाबासाहब लिखते हैं कि “चाहे परिस्थितियां कितनी भी विकट हों, मैं हैदराबाद राज्य के समस्त दलितों को इत्तेहादुल मुस्लिमों का समर्थन नहीं करने की सलाह देता हूँ.”

यद्यपि हिन्दुओं द्वारा हमारे साथ कितना और किसी भी प्रकार का अन्याय किया जाता है, परन्तु हमें अपना विवेक नहीं छोड़ना चाहिए और अपनी जाति छोड़कर अपने शत्रु से नहीं जुड़ना चाहिए. अछूतों का संघर्ष सम्पूर्ण स्वतंत्रता के लिए है. वे आज संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि वे सम्पूर्ण आजादी चाहते हैं.

निजाम स्वतंत्रता का दुश्मन है. यदि अछूत इन स्वतंत्रता के दुश्मनों पर विश्वास करते हैं, तो उन्हें नुकसान ही होगा. समस्त दलित समाज को ध्यान रखना चाहिए कि निज़ाम हमारी मातृभूमि का दुश्मन है.

हैदराबाद की रियासत को भारत संघ में शामिल होना ही चाहिए और हमें भी इसे पर ही जोर देना चाहिए, क्योंकि किसी भी रियासत अथवा रजवाडे को भारत की भौगोलिक एकता और अखंडता को कमजोर करने का अधिकार नहीं है.

निज़ाम को ज्ञात होना चाहिए कि वह हिन्दी महासंघ अर्थात् भारत में शामिल हो गया है और अगर भारतीय संविधान उसके व उसके परिवार को सुरक्षा देने का वादा करता है, तभी उसकी प्रतिष्ठा एवम् राजसी सम्मान सुरक्षित रहेगा.

हम इत्तेहादुल मुस्लिम में विश्वास करने की तुलना में हिन्दुओं का विश्वास हासिल करने में अधिक सुरक्षित हैं. हालांकि, यह उनका विवेक है कि उन्हें कैसे व्यवहार करना चाहिए. हमें यह याद रखना चाहिए कि निज़ाम हमारा और हमारी मातृभूमि का दुश्मन है.

डॉ. बाबासाहब दलित समुदाय के लिए भगवान समान थे. उनके शब्द अंतिम आदेश थे और दलित समुदाय ने उनके आदेशों का पालन किया. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इत्तेहादुल के कट्टरता भरे दावपेच बाद में पूर्णतया विफल हो गये थे.

भारत रत्न डॉ. बाबासाहब हैदराबाद रियासत की मुक्ति में सहायक रहे हैं. हैदराबाद रियासत को मुक्त करने का कदम सही मायने में एक सैन्य अभियान था, लेकिन बाबासाहब ने कैबिनेट चर्चा में सलाह दी थी कि इसे एक “सैन्य कार्रवाई” के बजाय “पुलिस कार्रवाई” कहा जाना चाहिए. इसी के फलस्वरूप, अंतरराष्ट्रीय संकट उत्पन्न नहीं हुआ और संयुक्त राष्ट्र से मध्यस्थता कराने का निज़ाम के प्रयास भी स्वतः विफल हो गए.

सन्दर्भ

1). मराठवाड़ा मुक्तिसंग्राम एक मोगावा या पुस्तक में श्री सुधीर देशपांडे का लेख.

2). डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर द्वारा उनके सहयोगी मोरे को लिखा गया पत्र.

3). डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर चरित्र – धनंजय कीर

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