21वीं सदी भारत की होगी – स्वामी विवेकानंद

 'स्वामी विवेकानंद जयंति' और 'युवा दिवस', भारत में प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को स्वामी 'विवेकानंद जयंति' को 'युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत के निर्माण का प्रणेता कहा जाता है। स्वामी विवेकानंद ने ही वर्ष 1893 में अमेरिका के शिकागों शहर में आयोजित विश्व धर्म संसद में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया था। उनके द्वारा विश्व को भारत की आध्यात्मिक शक्ति से परिचित कराया गया था, उनके द्वारा शिकागों में दिया गया भाषण विश्व विख्यात है। भगवा वस्त्रधारी साधारण से दिखनें वालें स्वामी विवेकानंद ने शिकागों के अपने भाषण में भारत की हजारों वर्षों से चली आ रही संस्कृति और परम्परा का विस्तार से विश्व को परिचय कराया था। 
           शिकागों के अपने भाषण में भारत की आध्यात्मिक शक्ति के परिचय के कारण विश्व विख्यात हुए स्वामी विवेकानंद का दर्शन भारत के विषय में विभिन्न क्षेत्रों में अधिक व्यापक है। भारत के परिपेक्ष्य में समाज, शिक्षा, कृषि, व्यापार-व्यवसाय तथा अर्थशास्त्र के विषयों में भी स्वामी विवेकानंद का दर्शन अपने वर्तमान समय से कही आगें तक व्याप्त था।       

भारत की नयी शिक्षा निती और स्वामी विवेकानंद:-
भारत में जिस आधुनिक शिक्षा निती को वर्ष 2020 में स्वीकार कर लागू किया गया, जिसके अंतर्गत शिक्षा केवल नौकरी तक सीमित ना होकर विज्ञान और तकनीकी ज्ञान के आधार पर उपलब्ध हो सकेंगी, जिससे विद्यालयों में अध्ययन करने वालें विद्यार्थियों के जीवन अनुकूल परिवर्तन हो सकेंगें। उस शिक्षा पद्धति की बात स्वामी विवेकानंद द्वारा अपने समय में कही जा चुकी थी। जिसमे वे कहते है शिक्षा केवल पेट पालने का साधन नहीं होना चाहिए बल्किआध्यात्मिक ज्ञान के साथ विज्ञान और तकनीकी ज्ञान के साथ दी जाने वाली शिक्षा एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अग्रणी भुमिका निभाती है। उनके इस दर्शन को हम वर्तमान में नयी शिक्षा निती में देख सकते है।

आत्मनिर्भर भारत संकल्प और स्वामी विवेकानंद का दर्शन:-
आधुनिक राष्ट्र के निर्माण में अर्थ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और किसी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती उसके आत्मनिर्भर होने से पूर्ण होती है। औद्योगिक विकास के विषय में स्वामी विवेकानंद का दर्शन वर्तमान समय से बिल्कुल मिलता जुलता है। वर्तमान में भारत आत्मनिर्भरता के मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है और स्वामी विवेकानंद से जीवन में इसी से जुड़ा एक प्रसंग है। जब वे विश्व धर्म संसद के लिए अमेरिका की यात्रा पर जा रहें थे तब भारत के बहुत बड़े उद्योगपति जमशेत जी टाटा भी उसी जहाज में उनके साथ यात्रा कर रहें थे। जिसके अंतर्गत स्वामी विवेकानंद और जमशेत जी टाटा के बीच अर्थव्यवस्था सहित अनेक विषयों पर चर्चा भी हुई थी। जिसमें स्वामी विवेकानंद द्वारा जमशेत जी टाटा को सुझाव दिया गया था कि वे जापान से माचिस का आयात क्यों करते है जबकि भारत में इसकी अपार सम्भावनाएं है और उनके साथ साथ भारत को भी इसका लाभ होगा। स्वामी विवेकानंद आधुनिक विज्ञान और तकनीक के पक्षधर थे वे इस बात को समझते थे कि यदि भारत में औद्योगिक विकास को पूर्ण करना है तो विज्ञान और तकनीक का ज्ञान भारतीयों को होना आवश्यक है। और उनके इस दर्शन को हम आज देख भी रहें है। स्वामी विवेकानंद ने कलकत्ता के अपने एक भाषण में कहा था कि हमें अमेरिका और यूरोप के लोगों से आधुनिक विज्ञान और तकनीक को सीखने की आवश्यकता है जिसका उपयोग हम भारत के परिपेक्ष्य में अपनी अनुकूलता के अनुसार कर सकें। वर्तमान में स्वामी विवेकानंद का आत्मनिर्भर भारत का सपना हमें मूर्तरूप लेता दिखाई दे रहा है।

भारत में कृषि सुधार और स्वामी विवेकानंद के सुझाव:-
भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि मुख्य व्यवसाय है। स्वामी विवेकानंद कृषि के क्षेत्र मे आधुनिकता के पक्षधर थे। उनका मानना था कि कृषि को खुलें बाजार से जोड़ने पर किसानों को असीमित लाभ हो सकता है। स्वामी विवेकानंद कृषि से जुड़े किसानों की साक्षरता का समर्थन करते थे। उनका मानना था यदि किसान शिक्षित होगा और कृषि के व्यवसाय में आधुनिक खेती के उपायों का प्रयोग करेगा तो कृषि सेवा के साथ-साथ लाभ का भी व्यवसाय बन सकेंगी। स्वामी विवेकानंद का कृषि के लिए जो दर्शन था उसे वर्तमान में भी देख सकते है। आज भारत में किसानों को अनेक प्रकार से सुविधाएं प्रदान कर कृषि व्यवसाय को सुगम बनाया जा रहा है। सॉयल हेल्थ कार्ड के माध्यम से मिट्टी की जांच हो या जैविक अथवा प्राकृतिक खेती की भारतीय पद्धति हो या कृषि के लिए उपयोग किए जाने वाले आधुनिक उपकरण हो। सभी को स्वीकार कर कृषि के क्षेत्र में आधुनिकता के साथ आगे बढ़ा जा रहा है।

भारत में गरीबी उन्मूलन सिद्धांत और स्वामी विवेकानंद का दर्शन:-
किसी भी देश की शक्ति उसके नागरिक होते है, यदि देश के नागरिकों का जीवन स्तर बढि़या होता है और देश के सामान्य नागरिक को रोजगार के अवसरो मेन सरलता रहती है तो देश आर्थिक रूप से भी मजबूत होता। स्वामी विवेकानंद का गरीबी उन्मूलन का दर्शन भी अद्भुत है। एक ओर वे औद्योगिक विकास से लेकर शिक्षा और कृषि में आधुनिकता के पक्षधर है तो वहीं वे मशीनीकरण के साथ-साथ समान्य नागरिकों के उत्थान के लिए भी स्थान रखते थे। उनका यह मानना था कि शिक्षा नौकरी आधारित ना होकर व्यवसायिक आधारित हो जिसके अंतर्गत विज्ञान और तकनीक दोनों का समावेश होना आवश्यक है। शिक्षित अथवा साक्षर व्यक्ति किसी भी काम को पूर्ण करने में सामर्थ्यवान होता है। और सार्थ्यवान व्यक्ति गरीबी से भी उभर सकता है। शिक्षित अथवा साक्षर व्यक्ति की पास रोजगार की अपार सम्भावनाएं होती है। स्वामी विवेकानंद के गरीबी उन्मूलन के दर्शन को हम वर्तमान में सिद्ध होता देख सकते है।
स्वामी विवेकानंद ने अपने एक भाषण में कहा था कि 19वीं सदी यूरोप की थी, 20वीं सदी अमेरिका की है और 21वीं सदी भारत की होगी। स्वामी विवेकानंद भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है तथा आने वाली अनेक पीढियों को उनका दर्शन और उनके विचार हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। उनका कथन वर्तमान में स्पष्ट होता दिखाई दे रहा है। जिसके माध्यम से हम अपने भारत देश को श्रेष्ठतम स्थान पर लेकर जाने में प्रयासरत रहेंगे।

लेखक – सनी राजपूत, उज्जैन

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