स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती बलिदान दिवस पर विशेष…

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स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती बलिदान दिवस पर विशेष…

ओड़िशा के वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिलेके के गांव गुरुजंग में 1924 में जन्मे, जो बचपन से ही दु:खी-पीड़ितों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने का संकल्प मन में पालते रहे। गृहस्थ और दो संतानों के पिता होने पर भी अंतत: एक दिन उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के उद्देश्य से साधना के लिए हिमालय की राह पकड़ ली। 1965 में वे वापस लौटे और गोरक्षा आंदोलन से जुड़ गए।

उन्होने पूरे जिले के गांवों की पदयात्राएं कीं। वहां मुख्यत: कंध जनजातीय समाज ही है। उन्होने उस समाज के अनेक युवक-युवतियों को साथ जोड़ा और जगह-जगह भ्रमण किया। देखते-देखते सबके सहयोग से चकापाद में एक संस्कृत विद्यालय शुरू हुआ। जनजागरण हेतु पदयात्राएं जारी रहीं।

पिछले लगभग 42 वर्षों से वे इसी क्षेत्र में रहकर वंचितों की सेवा कर रहे थे। उन्होंने चकापाद के वीरूपाक्ष पीठ में अपना आश्रम स्थापित किया। उनकी प्रेरणा से 1984 में कन्धमाल जिले में ही चकापाद से लगभग 50 किलोमीटर दूर जलेसपट्टा नामक घनघोर वनवासी क्षेत्र में कन्या आश्रम, छात्रावास तथा विद्यालय की स्थापना हुई।

ओड़िशा की लाखों जनता स्वामी लक्ष्मणानंद जी के प्रति अनन्य श्रद्धा रखती है। सैकड़ों गांवों में पदयात्राएं करके लाखों वनवासियों के जीवन में उन्होंने स्वाभिमान का भाव जगाया। सैकड़ों गांवों में उन्होंने श्रीमद्भागवत कथाओं का आयोजन किया।

इस रथ के माध्यम से लगभग 10 लाख वनवासी नर-नारियों ने जगन्नाथ भगवान के दर्शन किए और श्रद्धापूर्वक पूजा की। इसी रथ के माध्यम से स्वामी जी ने नशाबन्दी, सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध एवं गोरक्षा के लिए जन जागरण किया। इससे वनवासियों में चेतना एवं धर्मनिष्ठा जागृत हुई।

सन 2008 में 23 अगस्त की जन्माष्टमी पर माओवादी गुट के हाथों से चर्च ने स्वामी जी की हत्या का षड़यंत्र किया जिसमें अपने 3 सहयोगी एव एक बालक की हत्या करने में वे सफल हो गये।

देश में स्वयं को बुद्धिजीवी कहने वाला वर्ग,  मीडियाँ धुरंधर, लिबरल सामाजिक कार्यकर्ता जो जरा जरा सी बात पर पुलिस, प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर आरोप लगाते हैं सभी चूप रहे जैसे होंठ सिल गये हो। उल्टा स्वामी जी के विरूद्ध ही माहौल बनाते रहे है।

आखिर कब तक हिन्दु समाज अपने सन्तों की ऐसी निर्मम हत्या देखता रहेगा? वो कब एक साथ उठ खड़ा होगा जो भविष्य का निडर, स्वदेशी समाज आधारित,  स्वावलम्बी आत्मनिर्भर भारत का रूप हो।

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