स्वयं का जीवन राष्ट्र-प्रजा को किया समर्पित…श्री छत्रपति शिवाजी महाराज

(19 फरवरी छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर विशेष)

अतिति स्वयं प्रमाण है कि जो लोग अपने इतिहास से सबक नहीं सीखते,अपने पूर्वजों का सम्मान नही करते,अपने नायकों पर गर्व नही करते वह अपना आत्म- सम्मान व गौरव दोनों खो कर पतन के मार्ग पर चल पड़ते हैं। कुछ व्यक्ति अपने राष्ट्र,अपने समाज व वंश के कारण प्रसिद्धि पाते हैं किंतु कुछ अपने वंश, समाज और राष्ट्र की यश कीर्ति बढ़ा देते हैं। मुगलो को लोहे के चने चबवाने वाले हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ऐसे ही व्यक्ति हैं जो अपने भोंसले वंश,हिन्दू समाज और भारतवर्ष की प्रसिद्धि का कारण बने। 19 फरवरी 1630 ई.में पवित्र भारत भूमि (पूना) के शिवनेरी किले में स्वयं का जीवन राष्ट्र-प्रजा के लिए समर्पित किया ऐसे महान योद्धा श्री छत्रपति महाराज शिवाजीराव भोंसले ने माता जीजाबाई के कोख से जन्म लिया। इनके पिता श्री शाहजीराव भोसले थे। जिसने लाखों मनुष्यों का मुकाबला किया,जिसके साहस के आगे नदी,समुद्र, जंगल,शेर-हाथी,चोटी व घाटी,कांटे आदि कुछ नही थे।
युग प्रवर्तक श्री छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम किसी भी भारतीय के लिए अपरिचित नहीं है। जिस समय समस्त भारतवर्ष मुसलमानों एवं मुगलो की सत्ता के अधीन हो चुका था तब स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना करके इतिहास में एक सर्वथा नवीन अध्याय की रचना की। राजनीतिक चतुरता, बुद्धिमत्ता, अद्भुत साहस,उच्च ज्ञान,
नारीशक्ति का सम्मान,प्रशसनीय चरित्रबल आदि गुण इनके चरित्र की अनन्य विशेषताएं है। अपनी मातृभूमि,धर्म,संस्कृति-सभ्यता राष्ट्र आदि के प्रति परम आस्थावान होते हुए भी वे अन्य सभी संप्रदायो के प्रति पूर्ण सम्मान का भाव रखते थे,इनके नेतृत्व में साम्प्रदायिक तथा जातीय भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं था ओर सच्चे अर्थों में वह धर्म का राज्य था।
छत्रपति शिवाजी महाराज के विषय मे यह धारणा गलत है कि वह मुस्लिम विरोधी थे,वास्तव में वह मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दू समाज पर किए जाने वाले घृणित और विभत्स कृत्यों के विरोधी थे। श्रीछत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने राज्य की सीमा में सभी सम्प्रदायों को अपनी आस्था के अनुरूप पूजापाठ एवं जीवनयापन करने की खुली छूट दी और स्वयं भी गैर हिंदुओ के बलात धर्मांतरण का विरोध किया। शिवाजी के राज्य में जिस प्रकार हिन्दू मंदिर सुरक्षित थे उसी प्रकार मस्जिदों-मक़बरों एवं चर्चों की सुरक्षा की भी व्यवस्था की जाती थी। गैर हिन्दू महिलाओं को भी हिन्दू मातृशक्ति के समान ही पूरा सम्मान दिया जाता था।
औरंगज़ेब इतना क्रूर शासक था की उसने राज्य के लिए न सिर्फ अपने दो भाइयों की हत्या कर दी बल्कि अपने पिता शाहजहाँ को कारागार में डाल दिया तथा बाद में जहर दे कर मार डाला। समुचे भारतवर्ष में तब छत्रपति शिवाजी महाराज इकलौते ऐसे शख्स थे जिन्होंने औरंगजेब के विरुद्ध प्रभावी और विस्तृत प्रतिरोध खड़ा कर दिया। औरंगजेब ने अपने परिजनों के साथ जो किया उससे ज्यादा विभत्स्य ओर क्रूरतम व्यवहार उसने गैर मुस्लिमों विशेषकर हिंदुओं पर किया। उसके शासन में हिन्दुओ से सीमा शुल्क,हिन्दू उत्सव और त्योहारों पर प्रतिबंध, गौ हत्या,मन्दिरों का विध्वंस, हिंदुओं को महत्वपूर्ण सरकारी पद से हटाना और मुगल साम्राज्य की घोषित नीति के तहत उन का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने जैसे कार्य धड़ल्ले से चल रहे थे। वास्तव में शिवाजी इस जिहादी पिशाचीक वृत्ति के घोर विरोधी थे और इसीलिए विदेशी
आक्रमणकारियों को अपना पूर्वज मानने वाले ओर देश मे फर्जी विमर्श स्थापित करने वालो ने शिवाजी की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है।
30 मार्च1645 के शुभ दिन शिवाजी महाराज ने स्वतंत्र हिंदवी साम्राज्य की स्थापना करने का संकल्प लिया। इस संकल्प /व्रत को लेने के बाद उन्होंने अपनी शासकीय मोहर चलाई इस मुद्रा पर लिखे हुए आदर्श वाक्य थे -“शाह के पुत्र श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की यह मुद्रा कल्याण के लिए प्रकाशमान है जो चंद्रमा की प्रथम कला के समान नित्य बढ़ने वाली है और विश्व इसका सम्मान करने वाला है।” समाज मे ऐसी दृढ़ मान्यता है,कि छत्रपति शिवाजी महाराज को प्रत्यक्ष माता श्री तुलजाभवानी से आशीर्वाद प्राप्त था।भवानी के आशीर्वाद से ही उन्होंने अनेक रियासतें ओर दुर्ग विजय किए तथा भारत मे हिन्दुओ का एक स्वतंत्र राज्य स्थापित्य किया।
आखिरकार वह दिवस आ गया जिसकी हिन्दू समाज को दशकों प्रतीक्षा थी। लम्बे संघर्ष के बाद 6 जून1674 ई.में रायगढ़ के दुर्ग में स्वतंत्र शासक के रूप में हिन्दू रक्षक शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया और उन्हें ‘छत्रपति’ की उपाधि प्रदान की गई। शिवाजी महाराज अप्रतिम साहस ओर असीमित ध्येय की प्रतिमूर्ति थे। एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर वह भारत के भाग्य विधाता ओर हिन्दुओ के दुखहंता बन “उन्होंने सिद्ध किया कि-सिंह का ना तो कोई अभिषेक करता है और न हीं कोई अन्य संस्कार ही। वह अपने बल पर ही वनराज की पदवी प्राप्त करता है।”
उनकी वीरता,रणनीति और युद्ध कौशल से मुगल भी परिचित थे। स्वयं औरंगजेब ने कहा था ‘शिवाजी ही एक ऐसा व्यक्ति, जिसने नवीन राज्य निर्माण की महत्वता प्रदर्शित की,जबकि मैं प्राचीन राज्यों को नष्ट करने का प्रयत्न करता हूं। वह एक महान योद्धा-सेना नायक था। मेरी सेनाओं का प्रयोग उसके विरुद्ध उन्नीस वर्षों तक होता रहा तो भी उसका राज्य बढ़ता रहा।’ राज्य-राष्ट्र की उन्नति उसके शासकों की योग्यता पर ही निर्भर है।देवत्व श्री छत्रपति शिवाजी महाराज समूचे भारत और भारतीयों में बसे हैं चाहे वह किसी भी धर्म या सांस्कृतिक मूल के लोग हो। वास्तव में उनमें ऐसे गुण थे जो भारत के वर्तमान राजनेताओं में होना चाहिए।
छत्रपति शिवाजी महाराज पूरे भारत के शिखर पुरुष थे,उनके आदर्शों की जितनी आवश्यकता उनके काल मे रही उससे कही अधिक आवश्यकता वर्तमान  समय मे भी अनुभूत होती है। भारत ही नही अपितु विश्व के प्रत्येक धर्म,जाति ओर देश को शिवाजी के चरित्र एवं कृतित्व का अनुसरण करना चाहिए। छत्रपति शिवाजी महाराज एक अद्वितीय योद्धा थे जिन्होंने लोगो के दिलो में जगह बनाई,इसीलिए लाख छुपाने पर भी भारत का युवा अपने नायक को पहचानता है और अपना आदर्श मानता है। उनके सपनों का भारत निर्माण करने में अपनी छोटी-बड़ी भूमिका सुनिश्चित करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

अमितराव पवार, देवास

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