राम-नीति पर चलेगी राष्ट्र-नीति

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श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ऐतिहासिक प्रबोधन से पूरी दुनिया को सन्देश दिया। उन्होंने पूरी दुनिया को बताया कि भारत की राष्ट्र नीति, अब राम नीति पर आधारित है। वह राम नीति जिसमें-भय बिनु होई ना प्रीति, का सन्देश छिपा हुआ है।

श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ऐतिहासिक प्रबोधन से पूरी दुनिया को सन्देश दिया। उन्होंने पूरी दुनिया को बताया कि भारत की राष्ट्र नीति, अब राम नीति पर आधारित है। वह राम नीति जिसमें-भय बिनु होई ना प्रीति, का सन्देश छिपा हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने भगवान राम की सामाजिक समरसता, मर्यादा और सर्व व्यापकता को विस्तार पूर्वक समझाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज पूरा भारत राम मय हो गया है। हमारे राम लला जो टेंट में थे। अब एक भव्य मंदिर में विराजमान होंगे। टूटना और फिर उठ खड़े होना, इस व्यति क्रम से राम जन्म भूमि मुक्त हो गई। कई-कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। गुलामी के काल खंड में हर समय आन्दोलन हुये, बलिदान हुए। देश का कोई कोना ऐसा नहीं है, जहां बलिदान न दिया गया हो। 15 अगस्त उन्हीं लाखों बलिदानों और काल खण्डों का प्रतीक है। ठीक उसी तरह राम मंदिर के लिए कई-कई सदियों तक कई-कई पीढ़ियों ने अखंड और अविरल प्रयास किया। 5 अगस्त का दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में भगवान राम के चरण जहां–जहां पड़े, वहां पर राम सर्किट का निर्माण किया जा रहा है। अयोध्या तो भगवान राम की अपनी नगरी है। भगवान राम का शासन सबसे अच्छा माना जाता है। भगवान राम अपनी प्रजा से समान रूप से प्रेम करते हैं। भगवान राम कहते हैं– “ भय बिनु होइ न प्रीति।”. यही भगवान राम की नीति है, यही भगवान राम की रीति है। हमारा भारत ताकतवर होगा। तब लोगों की प्रीति हमसे बढ़ेगी। हमको समय के साथ चलना है। समय के साथ आगे बढ़ना है। भगवान राम आधुनिकता के पक्षधर हैं। भगवान राम सोचते हैं तब बोलते हैं और फिर करते भी हैं। भगवान राम विरोध से निकल कर बोध और शोध का मार्ग सिखलाते हैं। जब-जब हमने राम को माना है विकास हुआ है जब भी हम भटके हैं विनाश के रास्ते खुले हैं। सभी की भावनाओं का ध्यान रखना है। सबके साथ से और सबके विश्वास से ही सबका विकास करना है। मुझे विश्वास है कि यहां निर्मित होने वाला राम मंदिर अनंतकाल तक पूरी मानवता को प्रेरणा देगा। राम सबके हैं। राम सबमें हैं। राम मंदिर आन्दोलन में अर्पण भी था, तर्पण भी था, संघर्ष भी था और संकल्प भी था। त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज यह स्वप्न साकार हो रहा है। अनेकों लोगों की तपस्या राम मंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है। पूरी दुनिया के लोग भूमि पूजन के इस आयोजन को देख कर भाव विभोर हैं। राम हमारे मन में बसे हुए हैं। हमारे भीतर घुल मिल गए हैं। कोई काम करना हो तो प्रेरणा के लिए हम भगवान राम की ओर ही देखते हैं। भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिये। इमारतें नष्ट हो गईं। क्या कुछ नहीं हुआ ! अस्तित्व मिटाने का बहुत प्रयास हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं। हमारी संस्कृति के आधार हैं। श्री राम भारत की मर्यादा हैं। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।

उन्होंने कहा कि श्री राम मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक है। यह मंदिर शास्वत आस्था का प्रतीक बनेगा। हमारी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा और यह मंदिर करोड़ों करोड़ लोगों की सामूहिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। इस मंदिर के बनने के बाद अयोध्या की भव्यता ही नहीं बढ़ेगी। इस क्षेत्र का अर्थ तन्त्र भी बदल जाएगा। यहां हर क्षेत्र में नए अवसर बनेंगे। पूरी दुनिया से लोग भगवान राम और माता जानकी का दर्शन करने आयेंगे। राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया राष्ट्र को जोड़ने का उपक्रम है। ये महोत्सव है। नर को नारायण से जोड़ने का, लोक को आस्था से जोड़ने का, वर्तमान को अतीत से जोड़ने का और स्व को संस्कार से जोड़ने का।

राम के काम में देश ने मर्यादा का उदाहरण प्रस्तुत किया

उन्होंने कहा कि कोरोना से बनी स्थितियों के कारण भूमि पूजन का यह कार्यक्रम अनेक मर्यादाओं के बीच आयोजित हुआ। श्री राम के काम में मर्यादा का जैसा उदाहरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए, देश ने वैसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है। राम मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा है बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है। जिस तरह, गिलहरी, वानर, केवट और वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला। जिस तरह ग्वालों ने गोवर्धन पर्वत उठाने में बड़ी भूमिका निभाई। जिस तरह दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों एवं समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गांधी जी को सहयोग दिया, उसी तरह देश भर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर का यह पुण्य कार्य प्रारंभ हुआ है। न भूतो, न भविष्यति। भारत की आस्था पूरी दुनिया के लिए शोध का विषय है। श्रीराम को तेज में सूर्य के समान, क्षमा में पृथ्वी के समान, बुद्धि में बृहस्पति के सदृश और यश में इंद्र के समान माना जाता है। श्रीराम का चरित्र सबसे अधिक जिस केंद्र बिंदु पर घूमता है, वो है सत्य पर अडिग रहना। इसलिए ही श्री राम सम्पूर्ण हैं। श्रीराम ने सामाजिक समरसता को अपने शासन की आधार शिला बनाया था। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से ज्ञान, केवट से प्रेम, शबरी से मातृत्व, हनुमान जी और वनवासी बंधुओं से सहयोग और प्रजा से विश्वास प्राप्त किया। यहां तक कि एक गिलहरी की महत्ता को भी उन्होंने सहज स्वीकार किया।

पूरी दुनिया में रामायण की रचना हुई

श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हजारों साल पहले भगवान श्रीराम प्राचीन भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जो राम मध्य युग में तुलसी, कबीर और नानक के जरिये भारत को बल दे रहे थे, वही राम आजादी की लड़ाई के समय बापू के भजनों में अहिंसा और सत्याग्रह की शक्ति बन कर मौजूद थे। राम की यही सर्व व्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवंत चरित्र है। तमिल में कबं रामायण , तेलगू में रघुनाथ और रंगनाथ रामायण और कन्नड़ में कुमदेन्दु रामायण है। कश्मीर में रामावतार चरित मिलेगा। मलयालम में राम चरित मिलेगा। गुरु गोविन्द सिंह जी ने तो खुद गोविन्द रामायण लिखी है। अलग–अलग जगहों पर राम भिन्न-भिन्न रूपों में मिलेंगे लेकिन राम सब जगह हैं, राम सबके हैं। राम भारत में अनेकता में एकता के सूत्र हैं। दुनिया में कितने ही देश राम के नाम का वंदन करते हैं। वहां के नागरिक खुद को श्री राम से जुड़ा हुआ मानते हैं। इंडोनेशिया जहां विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या है, वहां हमारे देश की तरह स्वर्णदीप रामायण, योगेश्वर रामायण जैसी कई अनूठी रामायण हैं। राम आज भी वहां पूजनीय हैं। कम्बोडिया, लाओ एवं थाईलैंड में रामायण है। ईरान और चीन में भी राम का प्रसंग मिलता है।
साभार : पांचजन्य

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