माँ रेवा के तट पर महेश्वर में सम्पन्न हुआ नर्मदा साहित्य मंथन

नर्मदा साहित्य मंथन का निष्कर्ष बहुत बड़ा होगा

माँ अहिल्या की राजधानी ,आदि शंकराचार्य एवं मंडन मिश्र की शास्त्रार्थ भूमि ,माँ रेवा के तट पर बसी एतिहासिक और धार्मिक नगरी महेश्वर में साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश एवं विश्व संवाद केंद्र मालवा ने संयुक्त रूप से एक कार्यक्रम की योजना की ।

इस कार्यक्रम का लक्ष्य था साहित्य में आ रहें कलुष को दूर करना ,सभी साहित्यकारो को एक मंच पर लाना ,उन्हें भारत और विशेषकर मालवा -निमाड़ के अनिवार्य विषयों के बारे में बताना इस कार्यक्रम में मालवा -निमाड़ के साहित्यकारों ,साहित्यरसिकों एवं समाज क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओ तथा पत्रकारिता के विद्यार्थियों को लक्षित किया गया ।

सम्पूर्ण कार्यक्रम की योजना बनाने और क्रियान्वयन पर कार्य प्रारम्भ हुआ , ४ ,५ व ६ मार्च की दिनांक तय हुईं ,इंदौर जैसे महानगर में यह कार्यक्रम अत्यंत सुलभता से हो सकता था लेकिन महेश्वर जैसा छोटा सा नगर इस कार्य के लिए तय किया गया । महेश्वर तक सबके आगमन ,उनके आवास ,भोजन और अन्य सभी प्रकार की व्यवस्थाएं करना बहुत बड़ी चुनौती थी ,लेकिन संचालन टोली ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया ।

पत्रकारिता के क्षेत्र में स्थापित दो प्रमुख संस्थाएं पांचजन्य व रितम सहयोगी संस्थाओं के रूप में आयी , पांचजन्य सतत पचहत्तर वर्षों से प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक पत्रिका हैं तथा रितम ने कुछ ही वर्षों में डिजिटल मीडिया में अपनी पहचान बनाई हैं ।

४ मार्च के दिन प्रात ०९ बजे मंत्रोच्चार के साथ माँ नर्मदा का पूजन एवं अभिषेक किया गया ,माँ रेवा के पवित्र जल का कलश भरकर ,कन्या पूजन कर उस कलश को कन्या को सभागार में माँ रेवा की प्रतिमा के समीप स्थापित किया गया और इसी के साथ “नर्मदा साहित्य मंथन” का शुभारम्भ हुआ ।

सत्रों के क्रम में प्रथम सत्र उद्घाटन सत्र रहा , उद्घाटन सत्र में प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक व श्रेष्ठ विचारक जे. नंदकुमार जी ,साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के निदेशक डॉ विकास दवे जी ,विश्व संवाद केंद्र मालवा के अध्यक्ष दिनेश गुप्ता जी ने माँ रेवा की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलन किया ।
सर्वप्रथम डॉ विकास दवे जी ने कार्यक्रम की संकल्पना ,आवश्यकता एवं स्थान चयन इत्यादि के विषय में बताते हुए कहा कि महेश्वर जैसे छोटे स्थान पर कार्यक्रम करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य हैं किन्तु इस चुनौती को हमने स्वीकार किया हैं और यह चुनौती आप सभी के सहयोग से सफल भी होगी ।

डॉ विकास दवे जी ने कहा कि कार्यक्रम का नाम ही कार्यक्रम की संकल्पना और उसके लक्ष्य को अपने में समाहित किए हुए हैं,जैसा कि ज्ञात है इस कार्यक्रम का नाम “नर्मदा साहित्य मंथन” है अर्थात नर्मदा के तट पर साहित्य का मंथन । इस त्रिदिवसीय कार्यक्रम का विमर्श छोटा हो सकता हैं लेकिन निष्कर्ष बहुत बड़ा होगा।

सामाजिक कार्यकर्ता विनीत नवाथे जी ने तीनो दिन तक चलने वाले विमर्श के महत्व के बारें में बताया उन्होंने कहानी के माध्यम से यह भी बताया कि विमर्श कैसे गढ़े जाते हैं । पुस्तको से लेकर फिल्मों और आधुनिक संसाधनों ,सोशल मीडिया इत्यादि के माध्यम से कैसे विमर्श की स्थापना कैसे होती हैं इस विषय में बताया ।

उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता जे. नंदकुमार जी अपने उद्बोधन में भारत के स्वातन्त्र्य समर को कैसे एक परिवार का संघर्ष बताया गया इस विषय में इतिहास के पृष्ठ सभा की आँखों के सामने लेकर आए । जे नंदकुमार जी ने कहा कि १८५७ के स्वातन्त्रय समर में सम्पूर्ण देश के प्रत्येक नागरिक अंग्रेजी सत्ता के विरोध में खडे हुए थे साथ ही बताया कि कैसे साहित्य के माध्यम से षड्यंत्र रचकर इस न भुतो न भविष्यति स्वातन्त्र्य समर को केवल एक ग़दर का नाम दिया गया और इस षड्यंत्र में भारतीय इतिहासकार भी आ गए क्योकि इस विषय पर मंथन नहीं हुआ था ,यदि सावरकर नहीं होते तो उस महान समर के बारे किसी को पता नहीं होता

श्री जे नंदकुमार जी ने घोषणा के स्वर में आगे कहा कि नर्मदा साहित्य मंथन “राष्ट्र सर्वोपरी” की भावना रखने वाले साहित्यकारों को एकत्र करने का मंच हैं ,साथ ही नर्मदा साहित्य मंथन “सार्थक संवाद” का भी अवसर प्रदान करता हैं ,चूँकि नर्मदा साहित्य मंथन में वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकारिता के युवा विद्यार्थी दोनों वर्ग आये है इसका अर्थ स्पष्ट है कि नर्मदा साहित्य मंथन दो पीढ़ियों के मध्य सेतु का कार्य करेगा
साहित्यकारों को एक मंच पर लाएगा और उन्हें देशभक्ति के कार्य में लगाएगा ।
इस सत्र का संचालन विश्व संवाद केंद्र मालवा के सचिव प्रणव पैठणकर जी ने किया

उद्घाटन सत्र के पश्चात सत्रों का क्रम सतत चलता रहा ,दुसरे सत्र में श्रेष्ठ लेखक प्रशांत पोल जी ने अंग्रेजी शासन द्वारा सभ्यता के मुखोटे में किए गए असभ्यता के कार्य विषय पर अपने विचार रखें
श्री पोल ने अपने सत्र में अंग्रेजो द्वारा भारतीयों पर किए गए अत्याचार तथा भारत को सदाकाल के लिए

नोसेना के अधिकारी और वर्तमान में मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी लक्ष्मण सिंह मरकाम ने जनजाति क्षेत्रो में बढ़ते अलगाववादी षड्यन्त्रो पर सत्र को सम्बोधित किया ,लक्ष्मण मरकाम जी ने कैसे कुछ अलगाववादी संगठन जनजाति बहुल क्षेत्रो में जनजातीय समाज को अलगाव की ओर बढ़ाने तथा हिंदुत्व से तोड़ने के षड्यंत्र रच रहे है इस विषय पर जो कहा उसने सबको आश्चर्यचकित कर दिया ।

त्रिदिवसीय इस मंथन में तीन दिनों में २६ वैचारिक सत्र हुए ,जिनमे विभिन्न आवश्यक विषयों पर विषय विशेषज्ञों ने सत्रों को सम्बोधित किया एवं श्रोताओं के प्रश्नों के संतुष्टिपूर्ण उत्तर दिए ,पहले दिन सत्यता के मुखोटे में असभ्यता के कार्य विषय पर श्री प्रशांत पोल ,जनजातीय क्षेत्रो में बढ़ते अलगाववादी षड्यंत्र विषय पर लक्ष्मण मरकाम ,साहित्य अनुसूचित जाति के प्रश्न एवं सामाजिक उत्तरदायित्व पर सर्वश्री राजेश लाल मेहरा एवं मोहन नारायण जी ,स्त्री विमर्श के भारतीय प्रतिमान विषय पर डॉ कविता भट जी ,पटकथा लेखन पर सर्वश्री संजय जी मेहता ,आज़ाद जैन जी व मनोज शर्मा जी ,अनुसूचित जाति के प्रश्न और सामजिक उत्तरदायित्व पर पंकज जी सक्सेना ने अपने विचार रखें।

इसी तरह दुसरे दिन वक्ता श्री विजय मनोहर तिवारी ने साहित्य का इतिहास बोध पर ,सुश्री इंदुमती काटदरे ने ‘भारतीय कुटुंब परंपरा और साहित्य विषय पर ,श्री हितेश शंकर जी एवं के जी सुरेश ने ‘पत्रकारिता का राष्ट्रीय चरित्र और संघ की भूमिका विषय पर , श्री गिरीश जी प्रभुणे जी ने घुमंतु जनजातियों की साहित्य में प्रस्तुति एवं वास्तविकता’ विषय पर , डॉ. रामशंकर जी उपाध्याय, डाॅ. राहुल जी अवस्थी ने मंचीय कविता में राष्ट्रीय चेतना’ विषय पर,प्रखर जी श्रीवास्तव ने ‘साहित्यकार भी इतिहासकार बनें’ विषय पर,श्री नीरज जी अत्री ने पाठ्यक्रम निर्माण षड्यंत्र से समाधान की ओर विषय पर ,प्रसिद्ध लेखक श्री अनुज जी धर जी ने ‘नेताजी सुभाष और शास्त्री जी की रहस्यमय मृत्यु का सच विषय पर सत्र को सम्बोधित किया ,इन सत्रों में श्रोताओं को वह जानकारी दी जिनसे आज तक सभी अनभिज्ञ थे।

तीसरे दिन भी प्रात: १० बजे से सत्रों का क्रम सतत चला तीसरे एवं अंतिम दिन वक्ता श्री विनय कुमार सिंह जी ने ‘आंतरिक सुरक्षा – चुनौतियाँ एवं समाधान’ विषय पर ,संस्कृत के महान विद्वान श्री मिथिला प्रसाद जी त्रिपाठी ने ‘लोक साहित्य का साहित्यिक अवदान विषय पर ,सुश्री डॉ. नीरजा गुप्ता ने ‘जैन, बौद्ध एवं सिख दर्शन में सनातन परंपरा’ विषय पर , श्री श्रीधर जी पराड़कर ने ‘साहित्य के प्रयोजन एवं सामाजिक अवदान’ विषय पर तय सत्रों को सम्बोधित किया।

इंदौर में पत्रकारिता करने वाले लगभग ४०० विद्यार्थी तीनो दिन सभी सत्रों में रहें , विद्यार्थियों ने सिद्ध साहित्यकारों एवं विषय विशेषज्ञों से प्रश्न भी पूछे एवम विशेषज्ञों ने उन्हें सब प्रश्नों के उत्तर दिए।

तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में रात्रि कार्यक्रम में नाट्य मंचन एवं कवि सम्मेलन के आयोजन किए गए
कवि सम्मेलन में विशुद्ध कविताएं सुनाई गई तथा नाट्य मंचन राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की रचना भारत -भारती पर हुआ ।

त्रिदिवसीय कार्यक्रम के अंतिम सत्र में साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के निदेशक डॉ विकास दवे जी ने मंथन से प्राप्त अमृत के विषय में बताया साथ ही घोषणा के स्वर में कहा कि यह सारस्वत अनुष्ठान अब प्रत्येक वर्षं होगा ,नर्मदा साहित्य मंथन प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी से नर्मदा जन्मोत्सव के मध्य आयोजित होगा ।

त्रिदिवसीय अनुष्ठान का समापन वन्दे मातरम से हुआ साथ ही मंच पर माँ नर्मदा की प्रतिमा के निकट स्थापित कलश के ज्ञानरुपी जल का सबने आचमन किया ।

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