बुन्देलखंड के अजेय योद्धा – महाराजा छत्रसाल

भारत की इस पावन धरा पर जहाँ पर देवताओ का वास है वही यहाँ के कण कण में शुरवीरो की अनेक गाथाएँ प्रसिद्ध है l भारत को सोने की चिड़िया का देश कहा जाता था किन्तु समय समय पर विदेशी आक्रांताओं ने इसके सम्मान को कलंकित करने का प्रयास किया l धन्य है यह भारत भूमि जहाँ पर भारत माँ के सम्मान की रक्षा करने के लिए अनेक माताओ ने अपने पुत्रो को इस पर पर कुर्बान कर दिया l इसे ही एक शूरवीर है महाराज छत्रसालl
‘बुंदेलखंड के शिवाजी’ के नाम से प्रख्यात छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वी को एक पहाड़ी ग्राम में हुआ था। इस बहादुर वीर बालक की माता जी का नाम लालकुँवरि था और पिता का नाम चम्पतराय । चम्पतराय बहुत ही वीर व बहादुर थे । शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। युद्ध के प्रभाव उसके जीवन पर असर डालते रहे । माता लालकुँवरि की धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियाँ, बालक छत्रसाल को बहादुर बनाती रहीं । इस दौरान कई बार मुगलों ने हमला किया ।लेकिन सफल नहीं हुए। युद्ध के दौरान नन्हे छत्रसाल मां की पीठ से बंधे रहते । छत्रसाल ननिहाल में रह कर युद्ध कौशल सीख रहे थे l10 साल की उम्र में उन्होंने तलवार चलाने में महारत हासिल कर ली थी और एक मुग़ल सैनिक का सिर उतार लिया था l माता पिता को लगा कि अब बेटा योद्धा बनने के लिए तैयार है तो उसे अपना इतिहास भी बताया गया । मुगलों की गुलामी, उनसे पुरानी दुश्मनी और अपनों से ख़तरे के बारे में बताया | साथ ही यह भी बताया कि अब बुंदेलखंड की तकदीर तुम्हारे हाथ में है l जब वे 12 वर्ष के थे, मुगलों ने उनके माता पिता को मार दिया । औरंगजेब के डर से उनके रिश्तेदारों ने छत्रसाल की मदद के सारे दरवाजे बंद कर दिए l ऐसे बुरे वक़्त में छत्रसाल का साथ तीन-चार लोगों ने दिया ।15 साल की उम्र में माता पिता को दिए वचन के मुताबिक़ उन्होंने देवकुमारी से विवाह कर लिया । देवकुमारी से ब्याह के करीब डेढ़ साल बाद छत्रसाल ने मुग़लो की कूटनीति, ताकत और कमजोरियां को समझने के लिए मुग़ल सेना में प्रवेश ले लिया l मुग़ल की तरफ से लड़ते हुए उन्होंने बीजापुर और देवगढ को भी जीता और सही समय आने पर मुग़ल सेना छोड़ दी और आगे की योजना के लिए छत्रपति शिवाजी से जा मिले। छत्रसाल कुछ वक़्त तक पूना में ही शिवाजी के साथ बीता | यहीं उन्होंने शिवाजी से युद्ध की तकनीक और शासन करने की नीतियां सीखीं | बाद में इस सीख का इस्तेमाल छत्रसाल ने बुंदेलखंड में बखूबी किया ।

         छत्रसाल चाहते थे कि वो दक्षिण में ही रहकर शिवाजी के साथ मुगलों से लड़ें । लेकिन शिवाजी दूरदर्शी थे । वह मुगलों के खिलाफ़ लड़ाई को सिर्फ दक्षिण तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने छत्रसाल से कहा कि, बुंदेलखंड लौट जाइए और मुगलों के खिलाफ़ वहां से युद्ध का उद्घोष करिए। साल 1671 में, छत्रसाल बुंदेलखंड लौटे उस समय उनके साथ उनकी पत्नी थी, एक-दो भरोसे के साथी और मां के दिए हुए जेवर । मुगलों से लड़ाई और बुंदेलखंड जीतने के लिए  छत्रसाल ने मां के दिए जेवर बेचकर सेना के लिए साजो-सामान जुटाया। उनकी सेना में  खुद को मिलाकर पांच घुड़सवार और 25 तलवारबाज थे । किन्तु इतने से दल बल के साथ ही उन्होंने अपनी विजय की कहानी लिखना प्रारंभ कर दिया | उनके औरंगजेब के साथ कई बार संघर्ष हुए | किन्तु औरंगज़ेब कभी, छत्रसाल को पराजित करने में सफल नहीं हो पाया। उसने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हज़ार सैनिकों की टुकडी, मुग़ल सरदारों के साथ छत्रसाल का पीछा करने के लिए भेजी थी। महाराजा छत्रसाल ने अपने रणकौशल व छापामार युद्ध नीति के बल पर मुग़लों के छक्के छुड़ा दीये । 
               इसी दौरान महाराजा छत्रसाल की भेंट उनके गुरु स्वामी प्राणनाथ से हुई | पहली भेंट पर उन्होंने उन्हें,साम्राज्य विस्तार की प्रेरणा दी थी | उन्हीं के कहने पर छत्रसाल ने पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। अब उनकी सेना में करीब 25,000 सैनिक हो चुके थे। खुद स्वामी प्राणनाथ कभी-कभी छावनी जाया करते और सैनिकों का हौसला बढाते । प्राणनाथ के बताए मुताबिक़ छत्रसाल ने विजयी अभियान जारी रखा । पूर्वी बुंदेलखंड अब तक छत्रसाल के कब्जे में आ चुका था । मुग़ल भी छत्रसाल से हार मान चुके थे। मुगलों ने वक़्त-वक़्त पर अपने कई योद्धा बुंदेलखंड की और भेजे, लेकिन कोई भी छत्रसाल को हरा नहीं पाया। अंततः औरंगजेब को राजा छत्रसाल के साथ संधि करनी पड़ी | इसी साल औरंगजेब की मौत हो गई ।          
            बाद के मुग़ल शासकों से छत्रसाल के संबंध साल 1723 तक ठीक-ठाक चले । लेकिन साल 1727 में इलाहाबाद के मुगल सूबेदार मोहम्मद खान बंगश ने बुंदेलखंड पर हमला कर दिया । ये लड़ाई दो साल चली। शुरू में बंगश ने छत्रसाल का बड़ा नुकसान कर दिया | हालांकि अब शिवाजी जीवित नहीं थे किन्तु मराठा नेतृत्व पेशवा बाजीराव के समर्थ हाथों में था । ऐसे में वृद्ध छत्रसाल ने बाजीराव से सहायता  मांगी | बाजीराव से उनके सम्बन्ध पिता पुत्र जैसे थे । इस वक़्त छत्रसाल की उम्र 77 की हो चली थी। लेकिन जब बाजीराव युद्ध में शामिल हो गए तो बंगश के पांव उखड गए। उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। बाजीराव की मदद से छत्रसाल इतना खुश हुए कि अपनी एक पुत्री से उनका विवाह कर राज्य का तीसरा हिस्सा भी उन्हें दे दिया | इसके बाद 81 वर्ष की अवस्था  में, 4 दिसंबर 1731 को इस महान योद्धा का  देहांत  हो गया। महाराजा छत्रसाल ने अपने 60 साल के योद्धा जीवन में औरंगजेब की भेजी सेनाओं से जितने युद्ध लड़े सभी में उन्होंने जीत हासिल की । 

राजा छत्रसाल के शासन को बुंदेला राजवंश के लिए स्वर्णिम युग कहा गया । छत्रसाल ने बुंदेलखंड मुगलों से आजाद करवाया था।
बुंदेलखंड में राजा छत्रसाल के लिए ये कहावत आज भी प्रसिद्ध है ,
‘छत्रसाल तेरे राज में धक धक धरती होय।
जित जित घोड़ा पग धरे, तित तित हीरा होय।
जित जित घोडा मुंह धरे, तित तित फत्ते होय।’
माने जहां-जहां छत्रसाल का घोड़ा पैर रखता वहां हीरे की खान और जहां पैर रखता वहां छत्रसाल की जीत। ये कहने की बात नहीं है, बुंदेलखंड के इतिहास में दर्ज सच है।
नक्शे के हिसाब से बुंदेलखंड मध्य भारत में पड़ता है। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में साझा फैले हुए बुंदेलखंड का इतिहास समृद्ध है। यहां बहादुरी का सूखा कभी नहीं रहा । राजा युद्ध लड़ते थे और जीतते थे । बुंदेलखंड उन आल्हा-ऊदल का इलाका है,जिनकी बहादुरी के किस्से गांव की चौपाल पर बखाने जाते हैं | आज के हिसाब से बात करें तो झांसी, पन्ना, छत्तरपुर, दमोह, सागर, दतिया, चंदेरी, ललितपुर, बांदा, हमीरपुर, जालौन, महोबा, चित्रकूट, टीकमगढ़, रीवा, जबलपुर, विदिशा, ग्वालियर और भिंड के इलाके बुंदेलखंड में आते हैं।

-डॉ.अभय गुप्ता

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