ब्रह्मांडीय चेतना और आधुनिक विज्ञान के सेतु – श्रीनिवास रामानुजन

सामान्यतः आधुनिक विज्ञान, धर्म और दर्शन को नीरस भाव से ही देखता है | शीर्ष वैज्ञानिको से लगा कर कमोबेश विज्ञान के सामान्य शोधार्थी और विद्यार्थियों में भी यही वृत्ति दिखाई देती है | हांलाकि यह भी सच है की विज्ञान की आधुनिकतम क्वान्टम अवधारणाएं अब विज्ञान को उस चेतना का परिचय दे रही हैं जो भौतिकी के सामान्य नियमों से परे है | अब विज्ञान उस चेतना से परिचित हो रहा है, जो ब्रह्माण्ड को मानव मन के अवचेतन के साथ जोडती है |
ब्रह्मांडीय चेतना के इन्ही तारों के सम्बन्ध को समय समय पर कई महापुरुषों के जीवन में देखा जा सका था | सामान्यतः वे दार्शनिक या अध्यात्मिक व्यक्ति होते थे, या फिर विशेष प्राकृतिक देन प्राप्त व्यक्तित्व थे | दर्शन या अध्यात्म के क्षेत्र में ऐसे लोगों का पाया जाना आश्चर्य का विषय नहीं होता है, किन्तु यदि ऐसी विलक्षण क्षमता विज्ञान के किसी अध्येता में पाई जाय तो यह अति विस्मयकारी घटना बन जाएगी | ऐसा ही कुछ था श्रीनिवास रामानुजन के जीवन में |
रामानुजन की विलक्षण गणितीय क्षमताओं ने बचपन से ही उन्हें औरों से भिन्न बना कर रखा | अपनी छोटी सी अवस्था में भी वे गणित के न केवल जटिल सूत्रों को समझ लेते थे , वरन बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाया भी दिया करते थे | हांलाकि उन्हें तीक्ष्ण बुद्धि संपन्न तो मान लिया गया था किन्तु अभी उनके साथ आलौकिक परिचय नहीं जुड़ा था | अपनी विकट आर्थिक स्थितियों से संघर्ष करते हुए, जैसे तैसे जब उन्होंने प्रोफ़ेसर हार्डी को अपनी कुछ गणनाएं भेजी तब प्रोफ़ेसर हार्डी को पहली बार इस अनजान व्यक्ति की विलक्षणता का अनुभव हुआ होगा | रामानुजन की गणनाओं को रद्दी की टोकरी में फेंकने से पूर्व हार्डी ने इन पर एक सरसरी दृष्टि डाली थी, किन्तु फिर वे उसे छोड़ ही ना सके | इसी घटना के सम्बन्ध में विश्व के माने हुए गणितज्ञ प्रो.हार्डी ने कहा था कि उन्होंने “उनके जैसा कुछ भी पहले कभी नहीं देखा था”। उन्होंने अनुमान लगाया कि रामानुजन के प्रमेय सत्य होने चाहिए, क्योंकि, यदि वे सत्य नहीं होते, तो किसी के पास उनका आविष्कार करने की कल्पना भी नहीं होती ।
इसके बाद रामानुजन , प्रोफ़ेसर हार्डी और एक और सहयोगी गणितग्य प्रोफ़ेसर लिटिलवुड के त्रिकोण में कई गणितीय सूत्र निर्मित होने लगे | हार्डी और लिटिलवुड को रामानुजन की प्रतिभा सदैव मानव की क्षमताओं से परे लगती | वे इस पर आश्चर्य भी करते | अपने परंपरागत वैज्ञानिक आग्रहों के चलते भी प्रोफ़ेसर हार्डी इसे रामानुजन के गहरे अंतर्ज्ञान से जोड़ते थे | हांलाकि अपने बारे में स्वयं रामानुजन की मान्यता एकदम सरल और सपाट थी | वे बड़ी स्पष्टता से कहते थे , की उनकी आराध्य माता नामगिरी उनके स्वप्न में आती हैं और उन्हें कभी गणितीय प्रेरणा तो कभी बड़े बड़े सूत्र दे जाती हैं |
रामानुजन का मर्मस्थल ब्रह्मांडीय चेतना के उतरने की भावभूमि बन चुका था | प्रकृति ने उनके अवचेतन को,ब्रह्माण्ड के गणितीय आयाम को देखने और समझने का अचूक यंत्र बना दिया था | यही कारण था की वे बचपन से ही गणित के अनन्य प्रेम में डूबे हुए थे | वे गणनाओं को, ऐसे देखते जैसे हम नदी , पेड़, पहाड़, झरना इत्यादि देख कर आल्हादित होते हैं | सच तो यह है की रामानुजन ब्रह्मांडीय चेतना और स्थूल जगत के गणितीय आयाम के बीच सेतु की तरह दिखाई पड़ते थे | वे जितने गहन गणिततज्ञ थे, उतनी ही गहनता से अध्यात्मिक भी | वस्तुतः उनके लिए गणित और अध्यात्म में भेद था ही नहीं | इसीलिए परतंत्र भारत में भी उन्होंने पश्चिम के बड़े बड़े विद्वानों के सामने यह घोषणा की थी की “मेरे लिए किसी समीकरण का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक कि वह ईश्वर के बारे में कोई विचार व्यक्त न करे।”
अपने छोटे से जीवनकाल में रामानुजन ने ऐसी कई चमत्कारिक अनुभूतियों का उल्लेख किया है | ऐसी चेतना का संचरण भारतीय मानस की भावभूमि पर ही संभव हो सकता है | रामानुजन के जीवन से हमें अपने प्राचीन विज्ञान और वैज्ञानिक ऋषियों की महत उपलब्धियों का समाधान भी मिल सकता है |
हमारे प्राचीन ग्रंथों में छुपे हुए विशद ज्ञान का स्रोत क्या था ? वो क्या था की, हजारों वर्ष पूर्व भी भारतीय विद्वानों ने ब्रह्मांडीय जटिल रहस्यों की सटीक गणनाएं और स्थूल प्रकृति के कई विषयों की ख़ोज कर ली थी ? संभवतः वे मानवीय क्षमताओं का अतिक्रमण कर स्वयं को पारलौकिक चेतना से सम्बद्ध करने के सूत्र जानते थे | ये वही सम्बन्ध था जो महान गणितज्ञ रामानुजन, जन्मजात अपने साथ ले कर आये थे |

– पीयूष शर्मा

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