भारत एक ऐसा देश है जहाँ की धरती विभिन्न संस्कृति और रीति रिवाजों से पोषित और पल्लवित है तथा इसका मुख्य मानबिंदु है इस देश की जीवनशैली और यहाँ जन्मा धर्म। भारत की प्राचीन एवं उच्च कोटि की परंपरा के सभी घटकों में धर्म के समन्वय एवं उनमें धर्म के आचरणों की एक विस्तृत व्याख्या की गई है। व्यापार और अर्थव्यवस्था में भी धर्म एक मुख्य मान बिंदु रहा है। उदाहरणार्थ भारत के धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में धर्मस्थलों की एक विशेष भूमिका रही है। मध्यकाल में अजरबैजान, रूस आदि देशों में बनवाए गए धार्मिक स्थल मुख्यतः व्यापारियों के द्वारा ही बनवाए गए थे जिसके कारण यात्राओं का व्यवसाय आरम्भ हुआ एवं उस क्षेत्र में संस्कृति का प्रचार-प्रसार भी हुआ . भारत के व्यापारी वहां भारतीय वस्तुओं के साथ अपनी जीवन शैली भी ले गए थे जिसका अनुसरण करते हुए उन्होंने वहां मंदिर बनवाए जो इतिहास में अंकित होने के बाद भी अपनी जड़ें आज भी भारत से जोड़ते हैं।
प्राचीन भारत की संस्कृति का सूक्ष्मता से अध्ययन करने पर भी विदित होता है कि मंदिर मात्र एक तीर्थ स्थल नहीं होते थे बल्कि वह एक सामुदायिक स्थल थे। दक्षिण भारत में आज भी देखा जा सकता है कि कई तालुकाओं के निर्माण में मध्य में मंदिर स्थापित होता था तथा उसके बाद रहवासी एवं व्यावसायिक क्षेत्र बसाए जाते थे। तमिलनाडु के बृहदेश्वर मंदिर और भोपाल की कुदिसी मस्जिद के स्थान पर उसके पूर्व बनवाए गए मंदिर के शिलालेखों में इसका प्रामाणिक उल्लेख मिलता है . मंदिर परिसर में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, भोजन, छात्रावास, विश्राम के साथ-साथ धन को जमा करने एवं लोन सुविधाएँ भी उपलब्ध करवाई जाती थी, मंदिर एक प्रकार का बैंक होते थे। जिसके कारण मंदिर एक तीर्थ स्थल के साथ-साथ लोक-कल्याण के केंद्र भी होते थे तथा एक विशिष्ट क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के केंद्र भी होते थे।
आज नया भारत भी इस मंदिर के माध्यम से निर्मित अर्थव्यवस्था को राष्ट्रव्यापी एवं विश्वव्यापी स्तर तक ले जा रहा है। जहाँ मंदिर होते हैं उसके आसपास विकास कार्य स्वतः ही हो जाते हैं , प्राचीन भारत में हर क्षेत्र को धन लाभ इन्हीं तीर्थस्थलों से होता था . हर मंदिर में आकर्षक शिल्पकला, भव्यता, अलौकिक विग्रहों के कारण यह आध्यात्मिक होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल भी थे। यह व्यवस्था सम्पूर्ण भारत में थी। मंदिरों के माध्यम से अर्थव्यवस्था का उत्थान करने की नीति ही ‘टेम्पल इकॉनमी’ कहलाती है। आज इस ‘टेम्पल इकोनॉमी’ से भारत की जीडीपी में भी वृद्धि हो रही है . नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के अनुसन्धान के अनुसार आज राष्ट्रीय स्तर पर यह टेम्पल इकॉनमी भारत की अर्थव्यवस्था में 3.02 लाख करोड़ का योगदान दे रही है वहीँ भारत की जीडीपी में 2.32 प्रतिशत भागीदारी करती है। NSSO के शोध में बताया गया है कि भारत में मंदिरों या तीर्थस्थलों में दर्शन करने वाले पर्यटकों या श्रद्धालुओं में 87 प्रतिशत भारतीय हैं तथा 13 प्रतिशत विदेशी या विदेश में रह रहे भारतीय हैं . प्रतिवर्ष धार्मिक यात्राओं द्वारा 4.74 लाख करोड़ का व्यापार होता है। वर्ष 2022-23 में केंद्र सरकार को 19,34,706 करोड़ का राजस्व मंदिरों से प्राप्त हुआ था।
20 लाख से भी अधिक मंदिरों वाले भारत देश में 8 करोड़ लोग पर्यटन और यात्रा के उद्योग से जुड़े हुए हैं। जिसके कारण आज इस टेम्पल इकॉनोमी को सशक्त करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार भी योजनाबद्ध रूप में कार्य कर रही है। अयोध्या स्थित श्रीराम मंदिर, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए महाकाल लोक , काशी विश्वेश्वर के लिए काशी कोरिडोर, केदारनाथ में मंदिर जीर्णोद्धार एवं शंकराचार्य स्थल, ओम्कारेश्वर में एकात्म धाम, कश्मीर में शारदा पीठ का जीर्णोद्धार, उत्तराखंड में कैलाश दर्शन आदि कार्य इस टेम्पल इकोनोमी के अंतर्गत किए गए सराहनीय कार्य ही हैं जिनके माध्यम से राज्य (state) को आर्थिक रूप से लाभ हो रहा है तथा इन क्षेत्रों में व्यापार और रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ चुकी है।
मंदिरों को मात्र आस्था का केंद्र ही माना जाता था लेकिन यह करोड़ों लोगों के जीवनयापन का कारण बन गए हैं . मंदिरों से पुष्प, तेल, वस्त्र, सुगंध सामग्री आदि जैसे लघु उद्योगों का उत्थान होता है, साथ ही यात्रा(ट्रांसपोर्ट और ट्रेवल), विश्रामगृह (होटल), चिकित्सा आदि क्षेत्र में भी प्रगति होती है। जहाँ मंदिर होते हैं उसके आसपास के क्षेत्र में जमीन का मूल्य भी बढ़ता है जिसके कारण भूमि का व्यवसाय भी स्वर्णिम बनता है। मंदिरों के माध्यम से कला, संस्कृति एवं शिक्षा के संरक्षण एवं संवर्धन के मार्ग भी खुलते हैं जो स्वयमेव एक उत्कृष्ट व्यवसाय है।
आज इस टेम्पल इकोनोमी से समस्त विश्व अवगत हो चुका है एवं वैश्विक स्तर पर हो रहे मंदिर निर्माण इसके साक्षात् उदाहरण है। जहाँ इंडोनेशिया, थाईलैंड, लाओस आदि देश भारतीय संस्कृति के द्योतक भव्य मंदिरों को पर्यटन स्थलों के रूप में स्थापित कर के अपनी अर्थव्यवस्था में आंशिक योगदान दे रहे हैं, वहीँ कुछ वर्षों में संयुक्त राज्य अमीरात, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देश भी भारत की इस व्यवस्था का अनुसरण कर के मंदिर निर्माण कर चुके हैं तथा अन्य देश भी इसी पंक्ति में आगे बढ़ रहे हैं।
मंदिर आध्यामिक उर्जा के केंद्र हैं लेकिन उन्हें पर्यटन केंद्र के रूप में भी मानकर हम अर्थव्यवस्था का सुधार तो करते ही हैं, साथ ही उस तीर्थस्थल से जुड़ने वाले व्यक्ति में हम गौरवशाली संस्कृति का बोध तथा संस्कार के बीजों का भी अंकुरण करते हैं . आज भारत आगे बढ़ रहा है, भारतीयता का प्रचार हो रहा है, धर्म का प्रसार हो रहा है, विश्व सनातन हो रहा है तथा स्व के बोध की जागृति हो रही है, तो उसका कारण संस्कृति के मान बिंदु अर्थात मंदिर एवं उनसे माध्यम से होने वाला धार्मिक- सामाजिक और आर्थिक विकास भी है . जिस प्रकार से ‘टेम्पल इकॉनमी’ में भारत आगेबढ़ रहा है उसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) में एक बड़ा क्षेत्र (सेक्टर) मंदिर बन सकते हैं तथा वैश्विक स्तर पर तेल, शस्त्र और स्वास्थ सेवाओं के आसपास घूम रही आर्थिक व्यवस्था की धुरी अमानवीय मानसिकता का परित्याग कर मंदिर, धार्मिक शिक्षा एवं भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था का निर्माण एवं उसके माध्यम से धनार्जन की ओर घूम सकती है जिससे वसुधैव कुटुम्बकम का विचार स्थापित हो जाएगा एवं समस्त विश्व हमारे आदि धर्म का अनुसरण करने लगेगा. यह टेम्पल इकॉनोमी ही भारत को विश्वगुरु बनाने की उत्प्रेरक सिद्ध होगी एवं भारत को वैश्विक पटल पर सभी व्यवस्थाओं के केंद्र के रूप में स्थापित करेगी।