प्रकाश की श्रंखला,जिससे पूरा जगत जगमगाए।

जीवन में पर्व, उत्सवों, त्यौहारों का होना मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। जिस तरह मीन का जल के बिना जीवन संभव नही, ठीक इसी प्रकार त्योहारों के बिना मनुष्य का जीवन रंग-हीन या वीरान होता। किंतु हम भारतीय संस्कृति के लोग भाग्यशाली है,जहाँ दिन से ज्यादा पर्व है। यहाँ हर दिन नित-नये उत्सवों का आगमन होता रहता है।हमारा संपूर्ण जीवन इन त्योहारों में समाया हुआ है। विश्व के अनेक देशों में जहां रिश्ते गर्भ में समाने लगे है। ऐसे में हमारी भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा के पर्वो ने ही हमे आज आधुनिकता के दौर में भी एक दूसरे से बांधकर रखा हैं, जीवन में उत्साह लाते त्यौहार इन पर्वो में मनुष्य का जीवन बसा हुआ है। हिंदू धर्म तो जैसे उत्सव-पर्वों का ही है।
इस धर्म के अनुसार हर पर्व की अपनी एक पहचान और लाखों वर्ष की प्राचीन सनातन-परंपरा है। इन्ही में सबसे बड़ा तथा महत्वपूर्ण त्यौहार दीपावली है। जो हमे सिख देता है, “तमसो माँ ज्योतिर्गमय”। अपने अंदर की बुराई व अंधकार को दूर करें, प्रकाश और स्वच्छता की तरह लोगों का साथ दे। भारतीय मूल के लोगो द्वारा विश्व के अनेक देशों में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसी के साथ अन्य देशों में यह संस्कृति का हिस्सा बनते जा रहा है।अलग-अलग देशों में इसे विभिन्न नामो से मनाया और जाना जाता है।

स्कंदपुराण के अनुसार दीपावली पर ही भगवान शिव ने शक्ति की उनकी अर्धागिनी होने की कामना से की गई इक्कीस दिनों की तपस्या से प्रभावित होकर अर्द्धनारीश्वर रूप धरा था।हिन्दू समाज मे माता लक्ष्मी धन्यधान्य, कल्याण और सौंदर्य की प्रतिमा मानी जाती है। इनकी प्राप्ति के लिए दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा अनिवार्य है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। माता लक्ष्मी का आगमन देवताओं व राक्षसों के बीच समुंद्र मंथन के माध्यम से हुआ। वैसे हिन्दू धर्म मे हर एक त्यौहार की अपनी एक कहानी व मान्यता है। अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व ‘दीपावली’ उत्सव के बारे में कई कहानियॉ प्रचलित है। भगवान राम ने जब माता सीता को रावण का वध कर मुक्त कराया और अयोध्या अपने घर चौदाह वर्षों के वनवास के बाद विजय होकर लौटें उसकी खुशी के फलस्वरूप अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर नगर सजाया था।तब से यह पर्व चला आ रहा है। कहा जाता है कि घर की लक्ष्मी घर आई।

एक और मान्यता के अनुसार वीर बलि नाम का दैत्य राजा था, जिसे स्वयं ब्रम्हा ने वर स्वरूप स्वर्ग का राज्याधिकार दे दिया। सभी इंद्र, इंद्राणीयो,देवताओ इत्यादि ने इस बात का विरोध किया तो राजा बलि ने सभी के साथ माँ लक्ष्मी को भी बंदी बना लिया। जब इस बात का पता भगवान विष्णु को लगा तब उन्हें बड़ा क्रोध आया भगवान विष्णु अपनी पत्नी एवं सभी देवताओं को मुक्त कराने के लिए वामन अवतार (बौनारूप) लिया। भगवान ने ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा में “तीन गज “माँगें हँसते हुए नभिज्ञ राजा बलि ने कहाँ कि ठीक है। तीसरे गज के पूर्व ही भगवान ने सभी को मुक्त करा लिया ! पहले गज में पृथ्वी, दूसरे गज में आकाश और तीसरे गज के रूप में स्वयं बलि के सर पर पग रखा! इस घटना ने दैत्य राजा बलि का अहंकार का नाश किया। भगवान विष्णु ने फिर भी राजा बलि को रियायत देते हुए कहा कि वह प्रति वर्ष”तीन दिन”अपने साम्राज्य में विचरण करते हुए अपनी जनता के दुःख- दर्द, दरिद्रता, कष्ट आदि को दूर करने का प्रयास करे। यह तीन दिन है,कार्तिक मास धनतेरस, चतुदर्शी और अमावस्या। धनतेरस से भाईदूज तक मनाये जाने वाला पाँच दिनी यह पर्व अपनी पाँचों दिन कीअलग-अलग मान्यता बयां करता है।

वर्षभर की अमावस में कार्तिक माह की अमावस अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। हिंदू सभ्यता, संस्कृति और धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक दीपावली का पर्व इसी दिन मनाया जाता है। जो प्रतीक है, अंधकार पर प्रकाश की विजय का। अंधेरे का अपना महत्व है और उजाले का अपना। जरूरी है,जीवन में प्रकाश के लिए रात्रि का अंधकार और यह भी जरूरी है, उस अंधकार से निकलकर” अपने भीतर का दीप जलाए..!” जिस प्रकार अज्ञानता को ज्ञान के दीप से, कुबुद्धि को सद्बुद्धि के प्रकाश से,कठोरता को सरलता के उजाले से, अवगुणों को सद्गुणों की रोशनी से, दूर किया जा सकता है, अर्थात दीपावली के लिए अमावस्या की रात भी जरूरी है।दीप का अर्थ ही यह है कि हमारा मन प्रकाशित हो उसमें हर तरह से सद्भाव हो। शायद दीपोत्सव का हम सबके लिए इससे अच्छा संदेश नही होगा। दीपक की सार्थकता तभी साबित होगी जब हम अपने प्रकाश से दूसरों की जिंदगीयों को रोशन करें और अंधकार में सोये हुए को दीपक की लौ से सही मार्ग बतलाए। दीपावली तमाम बदलाव के बावजूद खुशी के एक नए अवसर होने का एहसास कराती है। जबकि पूरा विश्व वर्ष 2019 से 2022 तक कोरोना महामारी की बीमारी से लड़ा। अनेक देश भुखमरी की कगार पर खड़े। ऐसे में हमारे भारत देश की संस्कृति और आध्यत्मिक ताकत ही है,जो विश्व के दूसरे नम्बर की आबादी होने के बावजूद आज हमारा भारत देश स्थिर है, कोरोना बीमारी में हमने जो खोया हम उसको दोबारा नहीं ला पाएंगे।हमे सामूहिक प्रयास करना हैं,कि प्रकाश का यह पर्व हम सबके लिए मंगलमय हो। पूरा विश्व भाईचारे के साथ इस दीपोत्सव से जगमगाए। संस्कृत से आए दीपावली शब्द का अर्थ ही है, “प्रकाश की श्रंखला।जिससे पूरा जगत जगमगाए। बहुत कम लोग जानते होंगे की वास्तव मेंधनतेरस में “धन”शब्द स्वास्थ्य के देवता धनवंतरी से लिया गया है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनवंतरी का जन्म हुआ। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं। यह संदेश हमे दीपावली के दो दिन पूर्व चिकित्सा के देवता भगवान धनवंतरी देते है। इनका जन्म भी माता लक्ष्मी के साथ चौदाह रत्नों में समुद्र मंथन से हुआ। माता लक्ष्मी की कृपा पाने के पहले स्वस्थ रहना भी जरूरी है।यह बात भगवान धनवंतरी सिखाते है कि जीवन में मनुष्य का स्वस्थ रहना कितना आवश्यक है। क्योंकि स्वस्थ रहकर हम माँलक्ष्मी की कृपा पा सकते है, किंतु अस्वस्थ होने पर माँलक्ष्मी का लाभ नही ले सकते। देवी लक्ष्मी माँ यद्यपि धन की देवी हैं,इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए हमको स्वस्थ रहने के साथ, लंबी आयु भी चाहिए यही कारण है कि दीपावली के दो दिन पहले यानी धनतेरस से ही दीपमालाएं सजने लगती है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में दीपक का महत्व जन्म से मृत्यु तक बना रहता है।

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