भारतीय चित्र साधना द्वारा आयोजित चित्र भारती नेशनल शॉर्ट फ़िल्म फ़ेस्टिवल का शुभारंभ

भारतीय चित्र साधना द्वारा आयोजित चित्र भारती नेशनल शॉर्ट फ़िल्म फ़ेस्टिवल का शुभारंभ दिनांक 21 फरवरी से अहमदाबाद में हुआ. तीन दिवसीय शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत शॉर्ट फ़िल्म की स्क्रीनिंग से हुई. इसके बाद  मास्टर क्लास की शुरुआत हुई, जिसमें दिलीप शुक्ला और मिहिर भूता उपस्थित रहे. दिलीप शुक्ला हिंदी सिनेमा के जाने माने लेखक और निर्देशक हैं. उन्होंने बॉलीवुड की हिट फ़िल्में घायल, अंदाज अपना-अपना, दामिनी, दबंग इत्यादि का लेखन किया है. उन्होंने अपनी बात की शुरुआत यह कहकर की कि ‘विषय है तो संवाद है, विषय नहीं तो संवाद नहीं’, ऑडिएंस के साथ संवाद करते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला. अहमदाबाद, गुजरात सहित देश के अन्य राज्यों से पधारे प्रतिभागियों ने शार्ट फिल्म के अलग-अलग पहलुओं को बारीकी से समझा एवं फिल्म प्रदर्शनी का आनंद लिया. फ़िल्म फेस्टिवल में लगभग 140 से ज़्यादा फ़िल्में दिखाई जाएंगी.

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शाम को तृतीय चित्रभारती फिल्म महोत्सव के विधिवत उद्घाटन कार्यक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय भाई रुपाणी उपस्थित रहे. अहमदाबाद की  मेयर बिजल बेन पटेल, गुजरात यूनिवर्सिटी के कुलपति हिमांशु भाई पंड्या, बी.के. कुठियाला, राकेश मित्तल एवं बॉलीवुड के ख्यातनाम दिग्दर्शक सुभाष घई, बॉलीवुड के जानेमाने गीतकार एवं केंद्रीय बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के अध्यक्ष   प्रसून जोशी, जाने-माने स्क्रिप्ट राइटर श्री दिलीप शुक्ला और मिहिर भूता एवं अभिषेक जैन उपस्थित रहे.

मुख्यमंत्री विजय भाई ने मातृभाषा दिवस की शुभकामना देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति, भारतीय परंपरा, भारतीय समाज जीवन, प्रचारित व उजागर हो, इस हेतु से भारतीय चित्र साधना द्वारा चित्रभारती नेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हुआ है, यह सफल हो ऐसी शुभकामना है. उन्होंने कहा कि चित्र भारती एक उद्देश्य के साथ काम करने वाली संस्था है जो भारतीय संस्कृति, भारतीय परंपरा, भारतीय समाज जीवन को उजागर करने का कार्य करती है.

आज शिवरात्रि के पवित्र दिवस पर यह फिल्म फेस्टिवल का प्रारंभ एक शुभ संकेत है. मैं मानता हूँ कि फिल्मों का प्रभाव समाज पर काफी बड़ा है, समाज जीवन को मजबूत बनाए, देश की समाज की मूल भावना को क्षति पहुंचाए बिना समाज अधिक मजबूत बने. समाज जीवन में राष्ट्र पहले की भावना जागृत हो, तभी हम अपने राष्ट्र को आगे बढ़ा सकेंगे.

सिनेमा की महत्ता सिर्फ मनोरंजन ही नहीं है, बल्कि सिनेमा की महत्ता व्यक्ति निर्माण है –सुभाष घई

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शो मैन, फिल्म निर्माता सुभाष घई ने कहा कि सिनेमा की महत्ता सिर्फ मनोरंजन ही नहीं है, बल्कि सिनेमा की महत्ता व्यक्ति निर्माण है. व्यक्ति निर्माण के लिए कथाओं, कहानी की बहुत आवश्यकता होती है. इसीलिए आज भी हम रामायण, महाभारत, सूरदास आदि का अनुकरण करते हैं. इनसे ही हम लोग शक्ति लेते हैं, जब भी हम लोग कहीं अटक जाते हैं. आज समय बदल रहा है, तीन घंटे की फिल्म दो घंटे की हुई, फिर आधे घंटे की और आज शॉर्ट फिल्म का बोलबाला है. तब मैं समझता हूँ कि बहुत बड़ा एक महत्वपूर्ण कदम लिया है भारतीय चित्र साधना ने कि शॉर्ट फिल्म का फेस्टिवल किया जाए. जिसमें हर कोई अपने विचार प्रकट कर सकता है. उन्होंने कहा कि हमें अमेरिका की कहानी नहीं चाहिए, हमें आपके देश की, आपके शहर की, आपके गांव के आपके लोगों की कहानी चाहिये ताकि हम अपने पूरे भारत को जान सकें. शॉर्ट फिल्म के माध्यम से बच्चों का भी विकास होता है, उनका आत्मविश्वास बढ़ता है. अगर आपका बच्चा वो नाटक, कहानी, काव्य को जानता है तो जरुरी नहीं कि वह फिल्मों में ही हो, वह जिस क्षेत्र में भी होगा वहां विकास करेगा.

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जब भारत के गांवकस्बों से फिल्म मेकर्स आएंगे, तब फिल्मों में भारत की आत्मा परिलक्षित होगी – प्रसून जोशी

गीतकार एवं केंद्रीय बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने कहा कि आज मंचों का लोकतांत्रिकरण हुआ है. हम देखते थे कि मंचों पर एकाधिकार था. आज हर किसी के पास मंच है, हर कोई अपनी कहानी सुना सकता है. लेकिन इसके कारण यह भी हुआ है, कहीं न कहीं नकारात्मकता का भी प्रदर्शन हो जाता है. क्योकि नकारात्मक बात अधिक गति से फैलती है. आज सकारात्मक संदेश देना एक चुनौती भरा कार्य है. क्योंकि आप अच्छी बात करें तो बोरिंग लगती है. अत: फिल्मों के सामने यह चुनौती रहेगी कि पॉजिटिव मैसेज कैसे दिया जाए. हमारे यहां चर्चाएं होती थी, आज जो चैनल पर विचारों के दंगल होते हैं इसकी आदत भारत को नहीं है चर्चाओं की आदत है. फिल्म बनाने के विषय पर प्रसून जी ने कहा कि जब तक भारत के छोटे छोटे गांव, कस्बों से फिल्म मेकर्स नहीं आएंगे, तब तक भारत की फिल्मों में भारत की आत्मा परिलक्षित नहीं होगी. और इसलिए चित्र भारती जैसे आयोजनों की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि यह जरुरी है कि हम जब अपना इतिहास बताएं तो वह सावधानी के साथ बताएं, उसमे कहीं कमी न रह जाए. अंत में उन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध कविता मैं रहूँ या न रहूँभारत ये रहना चाहियें का पाठ किया.

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