रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर शत शत नमन….

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भारतवर्ष की शौर्य गाथा में पुरुषों के साथ ही कई भारतीय नारियों ने भी अहम योगदान देकर उसे एक ऊंचा मुकाम दिया है, उन्हीं में एक नाम रानी दुर्गावती का है। सर्वप्रथम हम उस वीरांगना को नमन करते हैं जिसने अपने प्राणों की बाजी लगाकर भारतीय नारी की आन बान शान की रक्षा कर भारतीय संस्कार और सभ्यता का मस्तक हिमालय सा ऊंचा और अटल रखा।रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को प्रसिद्ध राजा चंदेल सम्राट कीरत राय राजपूत के घर कलिंजर फोर्ट महोबा में दुर्गा अष्टमी के दिन हुआ। रानी दुर्गावती नाम के अनुरूप ही सुंदर नम्र और शौर्यवान साहसी थी। जब उन्हें शिक्षा के लिए गुरुजनों के पास भेजा गया तो वे अपने शिक्षकों से कहती मुझे तलवार, तीर कमान और बंदूक चलानी है अतः उसी शिक्षा को दीजिए मुझे उसी में रस मिलता है। जब कोई कथा प्रसंग सुनाया जाता तो सर्वाधिक आनंद महाभारत या रामायण के लंका कांड में आता। अर्थात जो शौर्य और साहस से भरपूर हो उसी का वे रसास्वादन करती थी। वे हाथी घोड़े की भी शानदार सवार थी, यदि उन्हें कहीं से पता चल जाता कि अमुक जगह चीता या शेर है तो वह जब तक उसका शिकार नहीं करती तब तक पानी भी नहीं पीती थी।समय के साथ रानी दुर्गावती की सुंदरता, विनम्रता और साहस कीर्ति चारों ओर फैल गई उनके शौर्य से प्रभावित हो गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मंडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मंडावी रानी दुर्गावती का विवाह कर अपनी पुत्रवधू बनाया महज 4 वर्षों के वैवाहिक जीवन में उन्हें दलपत शाह से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम “वीर नारायण” रखा गया। वीरनारायण जब 3 वर्ष के थे उनके पिता का देहांत हो गया। पति मृत्यु के पश्चात रानी ने अपने पुत्र को गद्दी पर बैठाया एवं स्वयं संरिक्षा बन गई और राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली रानी अत्यंत दूरदर्शी एवं स्वाभिमानी थी। वे जानती थी कि साम्राज्य को समृद्ध और संपन्न बनाने के लिए क्या करना चाहिए उन्होंने कई मठ मंदिर, कुएं तालाब, बावड़ी तथा धर्मशालाएं जनहित में बनवाई।वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था। उन्होंने प्रिय दासी के नाम चेरीताल और अपने नाम पर रानीताल एवं अपने विश्वस्त वजीर आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया यह सभी ताल जबलपुर मध्य प्रदेश में स्थित है। रानी के शासनकाल में साम्राज्य चारों तरफ उन्नति के नए आयाम गढ़ रहा था। पति की मृत्यु के बाद रानी ने लगभग 15 वर्षों तक शासन किया।अपने जीवन काल में रानी ने कई मुगल शासकों को धूल चटाई इनमें कुछ नाम है अत्यंत महत्वपूर्ण है शेर शाह सुरी और आसिफ खान मुगल शासक बाज बहादुर को तो उन्होंने इस तरह परास्त किया कि उसने फिर कभी उनके राज्य पर दृष्टि डालने की हिम्मत नहीं की।अकबर की नजर रानी के सौंदर्य और राज्य पर थी अतः बार-बार इस सुखी समृद्ध राज्य पर अपने बाशिंदों के माध्यम से हमला करवाता था। उस समय लगभग चारों और मुगलों का साम्राज्य कुछ गिने-चुने राज्यों में ही ही मुगलों की दाल नहीं गली थी जैसे विजयनगर, मेवाड़, चित्तौड़ और छत्रपति के अधीन कुछ दक्षिण के राज्य कलिजर के राजा श्री किरत राय शाह का शेरशाह सूरी के साथ अत्यंत भयंकर युद्ध हुआ उसमें राजा गहरे गांव के कारण मूर्छित हो गए। सैनिक उन्हें लेकर उपचार हेतु दुर्ग में ले गए, जिससे वातावरण में चारों तरफ भय व्याप्त हो गया। नारियों के सम्मान की रक्षा के लिए प्रयत्न किए जाने लगे ताकि समय की चाल देख “अग्नि प्रवेश” कर अपने सम्मान की रक्षा की जा सके। तभी पूर्ण श्रंगार करके महाराज कुमारी दुर्गावती अपनी सम वयस्क सहेलियों के साथ “सिंह वाहिनी भवानी की गति से बढ़ती चली आई और दुर्ग के सबसे ऊंचे शिखर पर चढ़ स्थिति का आकलन करने लगी उन्होंने देखा शेरशाह सूरी की निगरानी में बारूद बिछाने का कार्य विद्युत गति से हो रहा था” वह सूरी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ताली बजाकर जोर से हंस कर बोली हे शहंशाह ए हिंद महाराज कुछ क्षण के मेहमान है, मैं उनके एकमात्र संतान हूं और राजसिंघासन पर मेरा अधिकार है मैं तुम्हारा वरण करने को तैयार हूं यदि कोई शर्त हो तो बताओ वह लंपट दुर्गावती की बातों में उलझ गया। दुर्गावती के सैनिकों में बहुत ही सहज और सलीकेदार तरीके से दुर्गावती के बताए रास्ते पर चल किले को बचा लिया। दुर्गावती साक्षात दुर्गा बन शेरशाह सूरी के पीछे तीर और तलवार ले रणचंडी बन लपक पड़ी और अंततः उसे उसी बारूद में कोयले के ढेर में बदल दिया 22 मई 1522 को शेरशाह मारा गया।अकबर ने अपने रिश्तेदार आसिफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया रानी के बहादुरी और कुशल नेतृत्व के तले एक बार तो आसफ खां हार गया उसके कई मुगल सैनिक मारे गए, रानी की भी बहुत हानि हुई आसिफ खान ने 24 जून 1564 को फिर हमला बोल दिया, आज रानी का पक्ष कमजोर था। अतः रानी ने अपने वीर पुत्र वीर नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया एवं स्वयं रणचंडी बन युद्ध भूमि में युद्ध करने लगी पर आसफ खान की भारी-भरकम सेना के आघात से दुर्भाग्य ने करवट ली और रानी को एक के बाद एक अनेक तीर आ लगे उनका सुरक्षा घेरा टूट गया उन्होंने जान लिया कि अब दुश्मन से बचना मुश्किल है। उन्होंने अपने वजीर अघार सिंह को कहा कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे लेकिन वह नहीं माना तो उस वीरांगना ने अपनी कटार अपने सीने में भौंक ली और आत्म बलिदान के पथ पर चल पड़ी।जबलपुर के पास जहा यह एतिहासिक युद्ध हुआ था उस स्थान का नाम बरेला है वही रानी की समाधि बनी है। गोंड जनजाति के लोग आज भी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। वर्ष 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम दुर्गावती विश्वविद्यालय किया गया।

रानी दुर्गावती को शत शत नमन।
– आरती निघोजकर जी

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