श्रीराम मंदिर के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी का ऐतिहासिक ‘रण’

\"\"

अयोध्या में मौजूद गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड साहिब के दर्शन करने के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने से सिख श्रद्धालु आते हैं। कहते हैं कि सिख समुदाय के पहले गुरु नानकदेवजी, 9वें गुरु तेग बहादुरजी और 10वें गुरु गोविंद सिंहजी ने यहां गुरद्वारा ब्रह्मकुंड में ध्यान किया था।

कहते हैं कि श्रीराम की नगरी अयोध्या में गुरु गोविंदसिंहजी के चरण पड़े थे तब संभवत: उनकी उम्र 6 वर्ष की थी। कहते हैं कि उन्होंने यहां राम जन्मभूमि के दर्शन करने के दौरान बंदरों को चने खिलाए थे। गुरुद्वारे में रखी एक किताब के अनुसार मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ पटना से आनंदपुर जाते हुए दशम् गुरु गोविंद सिंह जी ने रामनगरी में धूनी रमाई थी और अयोध्या प्रवास के दौरान उन्होंने मां एवं मामा के साथ रामलला का दर्शन भी किया था।

गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में मौजूद एक ओर जहां गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें हैं तो दूसरी ओर उनकी निहंग सेना के वे हथियार भी मौजूद हैं जिनके बल पर उन्होंने मुगलों की सेना से राम जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध किया था।

गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में मौजूद एक ओर जहां गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें हैं तो दूसरी ओर उनकी निहंग सेना के वे हथियार भी मौजूद हैं जिनके बल पर उन्होंने मुगलों की सेना से राम जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध किया था।

कहते हैं कि राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए यहां गुरु गोविंद सिंह जी की निहंग सेना से मुगलों की शाही सेना का भीषण युद्ध हुआ था जिसमें मुगलों की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त दिल्ली और आगरा पर औरंगजेब का शासन था।

इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह जी की निहंग सेना को चिमटाधारी साधुओं का साथ मिला था। कहते हैं कि मुगलों की शाही सेना के हमले की खबर जैसे ही चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास को लगी तो उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी से मदद मांगी और गुरु गोविंदसिंह जी ने तुरंत ही अपनी सेना भेज दी थी।

दशम् गुरु उस समय आनंदपुर साहिब में थे। निहंग सिखों की सेनाओं ने साधुओं के साथ मिलकर मुगल सेना से भीषण युद्ध लड़ा। इस युद्ध में पराजय के बाद सिखों और साधुओं के पराक्रम से औरंगजेब बहुत ही हैरान और क्रोधित हो गया था।

कहते हैं कि मुगलों से युद्ध लड़ने आई निहंग सेना ने सबसे पहले ब्रह्मकुंड में ही अपना डेरा जमाया था। गुरुद्वारे में वे हथियार आज भी मौजूद हैं जिनसे मुगल सेना को धूल चटा दी गई थी। गुरुजी ने अयोध्या की रक्षार्थ निहंग सिखों का बड़ा-सा जत्था भेजा था जिन्होंने राम जन्मभूमि को युद्ध करके आजाद करवाया और हिन्दुओं को सौंपकर वे पुन: पंजाब वापस चले गए थे।

सरयू तट पर स्थित ब्रह्मकुंड गुरुद्वारे के पास ही ब्रह्माजी का मंदिर और दुखभंजनी कुआं है। मान्यता है कि अयोध्या प्रवास के दौरान सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानकदेवजी ने इसी कुएं के जल से स्नान किया था। सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानकदेवजी ने विक्रमी संवत् 1557 में यहां उपदेश दिया था।

विक्रमी संवत् 1725 में असम से पंजाब जाते समय नवम् गुरु तेगबहादुरजी ने यहां माथा टेका और 2 दिन तक अनवरत तप किया था। सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह भी संवत् 1726 में यहां पधारे थे। उनका खंजर, तीर और तस्तार चक्र यहां निशानी के तौर पर आज भी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

gaziantep escort bayangaziantep escortkayseri escortbakırköy escort şişli escort aksaray escort arnavutköy escort ataköy escort avcılar escort avcılar türbanlı escort avrupa yakası escort bağcılar escort bahçelievler escort bahçeşehir escort bakırköy escort başakşehir escort bayrampaşa escort beşiktaş escort beykent escort beylikdüzü escort beylikdüzü türbanlı escort beyoğlu escort büyükçekmece escort cevizlibağ escort çapa escort çatalca escort esenler escort esenyurt escort esenyurt türbanlı escort etiler escort eyüp escort fatih escort fındıkzade escort florya escort gaziosmanpaşa escort güneşli escort güngören escort halkalı escort ikitelli escort istanbul escort kağıthane escort kayaşehir escort küçükçekmece escort mecidiyeköy escort merter escort nişantaşı escort sarıyer escort sefaköy escort silivri escort sultangazi escort suriyeli escort şirinevler escort şişli escort taksim escort topkapı escort yenibosna escort zeytinburnu escort