स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयंती पर सादर नमन
इस अवसर पर एक महिला होने के नाते में उनकी पत्नी को भी स्मरण करते हुए उस निर्दोष समर्पित महिला के अपराधियों की ओर भी समाज का ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूं।
श्रीमती एमिली शेंकल,नेताजी की पत्नी
उनके संघर्ष की साथी ।
श्रीमती एमिली शेंकल ने 1937 में भारत माँ के लाड़ले बेटे सुभाषचन्द्र बोस से विवाह किया था।
इन्हें सात साल के कुल वैवाहिक जीवन में सिर्फ 3 साल ही अपने पति के साथ रहने का अवसर मिला, युद्ध में सदैव पति के साथ डटी रही।
इनकी एक बेटी भी थी इनका विश्वास था कि देश जब स्वतंत्र होगा तब मातृभूमि, पर ही वे और नेताजी अन्तिम श्वास लेंगे।
पर दुर्भाग्य वश ऐसा हुआ नहीं और 1945 में एक कथित विमान दुर्घटना में नेताजी विलुप्त हो गए।और एमिली को तत्कालीन सत्ताधीशों ने विस्मृत कर दिया।
उस समय एमिली युवा थीं और यूरोपीय संस्कृति के अनुसार से दूसरा विवाह कर सकतीं थीं,पर उन्होंने सर्वस्व नेताजी को ही अर्पण कर दिया और विकट परिस्थितियों में भी पतिव्रत धर्म पालन करते हुए अपनी पुत्री का पालन-पोषण किया।
यद्यपि नेताजी अपना सर्वस्व भारत माता को अर्पण करने का प्रण कर चुके थे परन्तु ईश्वरीय विधान ही था कि न केवल उनकी भेंट एमिली शेंकल से हुई अपितु वे उनकी जीवन संगिनी भी बनी।
जब 1934 में उन्हें भारत से ब्रिटिश शासन द्वारा निष्काषित किया गया और वे वियेना पहुंचे । वहां उन्होंने पुस्तक लिखने का निश्चय किया जिसका नाम द इंडियन स्ट्रगल था तब 24 वर्षीय युवा और सुंदर एमिली से एक स्टेनोग्राफर के रूप में उनकी भेंट हुई।
जो शीघ्र ही आत्मीयता में परिवर्तित हुई।
हालांकि नाजी जर्मनी में विदेशी व्यक्ति से विवाह को ठीक नजर से नहीं देखा जाता था वहीं हिटलर के निकटस्थ कुछ अधिकारियों के भी एमिली शेंकल के प्रति विचार ठीक नहीं थे,परन्तु नेताजी के कारण वे कभी कोई दुर्व्यवहार एमिली के प्रति नहीं कर पाए।
ऐसे क्लिष्टता भरे वातावरण में भी एमिली ने अपना जीवन सहज बनाए रखा।
नेताजी के भारत वापस आने,द्वितीय विश्व युद्ध की निराशाजनक मंदी और आर्थिक तंगी के बीच एमिली ने स्वाभिमान पूर्वक जीवन जिया,यहां तक कि एक बार ऐसी स्थिति आई कि उनकी बेटी के पास जूते भी नहीं थे ऐसे में पूरे जाड़े के समय वे घर से नहीं निकलीं ,किंतु कहीं हाथ नहीं फैलाया।
यह भी दुर्भाग्य ही था कि 1937 में उनका विवाह होने के पश्चात भी कूटनीतिक रूप से इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सका ,क्योंकि अंग्रेज अधिकारियों की नेताजी के हर पग पर कड़ी दृष्टि रहती थी, यद्यपि उनके बड़े भाई शरत बाबू को एमिली व उनकी पुत्री के सम्बंध में सूचना थी और अंत समय में उन्होंने पत्र लिखकर एमिली को कहा भी कि वे भारत आ जाएं और सम्मानपूर्वक यहीं रहें
एमिली का भी मन यही था कि अपने पति की मातृभूमि के दर्शन करें।
परन्तु इससे
भारत का एक अन्य राजनीतिक (नेहरू / गाँधी) परिवार इतना भयभीत था इस एक महिला से कि जिसे सम्मान सहित यहाँ बुलाकर देश की नागरिकता देनी चाहिए थी उसे कभी भारत का वीज़ा तक नहीं दिया गया
नेहरू/गाँधी परिवार यह जानता था कि ये देश सुभाष बाबू की पत्नी को सर आँखों पर बिठा लेगा……..इसीलिए उन्हें एमिली बोस का इस देश में पैर रखना अपनी सत्ता के लिए चुनौती लगा…
अंततः कठिनाइयों भरे अत्यंत साधारण जीवन को जी कर श्रीमती एमिली शेंकल बोस ने मार्च 1996 में भारत के दर्शन किये बिना ही प्राण त्याग दिये।
परन्तु भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास इस बात को अवश्य स्मरण रखेगा कि कठिन अवसाद व मानसिक विचलन से भरी सुभाष बाबू की स्वातंत्र्य यात्रा में एमिली का निस्वार्थ प्रेम एक दीपक की भांति टिमटिमाता रहा
स्वयं नेताजी ने अपने पत्रों में एमिली को अपनी भावनात्मक प्रेरणा व संबल स्वीकार किया है ।
आज नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयंती पर हम उनकी जीवनसंगिनी जिन्होंने अलग संस्कृति से होने के बाद भी भारतीय पत्नी,बहू और मां की प्रेरणास्पद भूमिका में प्राण भर दिये,उनको भी शत-शत नमन करते हैं ।
अचला शर्मा ऋषीश्वर
उज्जैन