एक झंडा एक विधान पर कुर्बान डॉक्टर मुखर्जी

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डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने राष्ट्रहित में कश्मीर में लागू धारा 50 और परमिट व्यवस्था को चुनौती देते हुए खुला विद्रोह किया। कश्मीर के राष्ट्रीयकरण के लिए \”प्रजा परिषद\” द्वारा चलाए गए आंदोलन ने भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा था। जिसके कारण विश्व मंच पर कश्मीर समस्या को गंभीरता से लेने के लिए विवश कर दिया। विश्व में भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाने के लिए वे जीवन पर्यंत संघर्षशील रहे। राष्ट्रीय एकता अखंडता को अक्षुण्ण बनाएं रखने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी वह नाम है जिन्होंने कश्मीर राज्य की समस्या से भारत को उबारने के लिए अपनी सूझबूझ से रास्ते खोज निकाले। राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर को सहेज कर उसे ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए डॉक्टर मुखर्जी ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया बावजूद इसके विश्व कल्याण की भावना रखने वाले इस महान व्यक्ति की मौत लोगों के लिए आज भी रहस्य बनी हुई है।

6 जुलाई 1901 को सर आशुतोष मुखर्जी के घर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ। इनके पिता बंगाल के विख्यात शिक्षाविद होने के साथ कलकत्ता विश्वविद्यालय के उप कुलपति भी थे। बचपन से ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिभा चारों और चमकने लगी थी। वह प्रत्येक परीक्षा में अव्वल रहा करते। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से वकालत पास की और विलायत जाकर बैरिस्टर की उपाधि हासिल की। 24 वर्ष की आयु में ही वे विश्वविद्यालय के प्रबंध में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे। अनेक पदों पर रहते हुए विश्वविद्यालय की सेवा की। अंत में उपकुलपति तक रह कर बंगाल में शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य किए। 4 वर्ष के उपकुलपति काल में अनेक क्रियात्मक योजनाएं बनाकर शिक्षा क्षेत्र के शिक्षा क्षेत्र में इतिहास रचा था। विश्वविद्यालय की शिक्षा का माध्यम बंग्ला भाषा को बनवाया और \”बंग भाषा शब्दकोश\” का निर्माण भी करवाया। विश्वविद्यालय में सैन्य शिक्षा को शामिल करने का श्रेय डॉक्टर मुखर्जी को ही जाता है।

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल के महान कृति कलश हैं जिन्हें कभी भी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने बंगाल को सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर इतना ऊंचा उठा दिया कि बंगाल राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बन गया। राष्ट्रीय हितों की समझ और राजनीतिक दूरदर्शिता के चलते वे जनता की आवाज बन गए थे। शोषण उत्पीड़न और जुल्मों के खिलाफ उनके बागी तेवर कभी भी ढीले नहीं पड़े। यहां तक कि उनकी मृत्यु भी अन्याय के खिलाफ विरोध जताने के लिए एक आंदोलन के दरमियान हुई। उन्होंने कश्मीर को मजबूती के साथ अखंड भारत से जुड़ने के लिए और कश्मीर निवासियों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्य किया। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2019 को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अखंड भारत के सपने को साकार कर दिखाया धारा 370 और 35A को समाप्त कर देश के साथ कश्मीर में भी एक देश एक विधान कायम किया।

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी चाहते तो वकालत की प्रैक्टिस कर कामयाबी के झंडे गाड़ सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्हें मालूम था कि देश के कल्याण के लिए राजनीति में उतरना बहुत जरूरी है। आप देश हित में वकालत छोड़ राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़ गए। 1939 में वह बंगाल लेजिसलेटिव असेंबली के सदस्य निर्वाचित हुए इसके बाद 1941 में हिंदू महासभा के प्रधान बने तत्कालिक क्रियाकलापों से डॉक्टर मुखर्जी को यह आभास हो गया था कि बंगाल को कभी भी पाकिस्तान के हवाले किया जा सकता है। लीग ने अपने नक्शे में केवल बंगाल ही नहीं असम के भी कुछ हिस्सों को पाकिस्तान मान लिया था और उस तरह की कार्रवाई की जाने लगी थी। वह इस देश से बेचैन हो गए उन्होंने बनर्जी और प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर बंगाल बचाने का अभियान प्रारंभ किया। वह गांव गांव जाकर वहां सक्रिय कार्यकर्ताओं को तैयार कर एक बड़ा दल (समूह) गठन करने में लग गए। उन्होंने सोते हुए बंगाल को जगाया जिसके परिणाम स्वरूप बंगाल विभाजन से बच गया। 1942 में जब बंगाल में साइक्लोन आया तो वह जी जान से लोगों की मदद में लग गए। ढाका में हिंदू मुसलमान के झगड़े हो या कलकत्ता में हुआ हत्याकांड की आग में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कूदकर लोगों की जान की रक्षा कर शांति की अपील की। इस सांप्रदायिकता की आग से निपटने के लिए उन्होंने राष्ट्रवादी नौजवानों का समूह गठित भी किया जिसके माध्यम से समाज में राहत कार्य किए। अपने प्रयासों से लॉर्ड माउंटबेटन को पश्चिम बंगाल के वर्तमान स्वरूप को भारत का हिस्सा मानने के लिए उन्होंने विवश किया।

विशेष क्षमतावान हिंदू महासभा के सदस्य के नाते कांग्रेस ने उन्हें असेंबली के सदस्य के साथ सर्वदलीय मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री बनाया। जब आपने देखा कि कांग्रेस से उनकी नहीं पट रही तो उन्होंने कांग्रेस मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राजनीतिक संकीर्णता के खिलाफ और भारतीय संस्कृति को प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले एक नए दल का गठन किया। जिसे उन्होंने \”जनसंघ\” नाम दिया जिसके वह प्रथम अखिल भारतीय अध्यक्ष बने। उन्हें विश्वास था कि 1 दिन जनसंघ मानव कल्याण के लिए सत्य और न्याय के रास्ते चलकर राष्ट्र का गौरव बन जाएगा। 1 वर्ष में ही जनसंघ ने वह स्थान भी प्राप्त कर लिया था।

डॉक्टर मुखर्जी कश्मीर को लेकर बेचैन थे उनके मन में यह बात घुस गई थी कि कश्मीर देश से अलग ना हो जाए। इसके लिए उन्होंने जनसंघ के बैनर तले राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया बिना परमिट जम्मू यात्रा भी की। और यह बताया की हमें अपने देश में परमिट की आवश्यकता नहीं है। वह कश्मीर समस्या का स्थाई हल करना चाहते थे। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था -\”मैं जम्मू की परिस्थिति जानकर आंदोलन बंद करने के विचार से जम्मू जा रहा हूं और परमिट नहीं ले रहा हूं। इसलिए शांति की भावना से मुझे जाने देना चाहिए। परमिट तो विदेशियों के लिए होता है, ना कि देश के प्रतिष्ठित नागरिकों को देश भ्रमण से रोकने के लिए। मैं देश का संसद सदस्य होने के नाते प्रत्येक स्थान पर जाकर वहां की परिस्थिति का अध्ययन करने का अधिकार रखता हूं।\” इस नियम के खिलाफ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का विरोध देश की जनता की आवाज थी। 23 जून 1953 को श्रीनगर में उनकी संदेहास्पद स्थिति में अचानक मृत्यु हो गई। डॉक्टर मुखर्जी की मौत से जनसंघ अनाथ हो गया था राष्ट्रवादियों को भारी आघात पहुंचा। जम्मू में जनआक्रोश के कारण शेख अब्दुल्ला को त्यागपत्र देना पड़ा। जैसा कि सूत्रों का कहना था कि इस हत्याकांड में देश और जम्मू कश्मीर राज्य के दोनों प्रमुखों का गहरा संबंध रहा है वह डॉक्टर मुखर्जी के व्यक्तित्व को सहन नहीं कर पा रहे थे। 67 वर्ष गुजर जाने के बाद भी उनकी मृत्यु की गुत्थी सुलझ नहीं पाई है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सपने को साकार कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि प्रदान की है।

– श्री राजेंद्र जी श्रीवास्तव

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