
एक विकसित और शक्तिशाली राष्ट्र ही दुनिया के किसी भौतिक क्षेत्र में घट सकने वाली किसी अप्रिय स्थिति या देशों के बीच उत्पन्न हो सकने वाले संभावित टकराव को अपने प्रभुत्व से रोक सकता है और शांति की स्थापना कर सकता है। भारतवर्ष को पुन: ऐसा विकसित और सामर्थ्यवान राष्ट्र बनाने की यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है एक देश, एक चुनाव।
हमारे देश के सन्दर्भ में यद्यपि यह कोई नया विषय नहीं है क्यूंकि खंडित स्वतंत्रता के बाद चार आम चुनावों में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं। कालांतर में राजनैतिक उथल-पुथल और अन्यान्य कारणों से चुनावों की नियत तिथियाँ बदलती गयी और एक साथ चुनावों का क्रम गड़बड़ा गया।
आर्थिक और राजनैतिक चुनौतियों के समय भी वर्ष १९८३ में पुन: चुनाव आयोग ने देश में एक साथ चुनाव करवाने का सुझाव सरकार को दिया था, फिर १९९९ में विधि आयोग ने भी इसकी सिफारिश की, २०१५ में संसद की स्थायी समिति, २०१७ में निति आयोग और २०१८ में पुन: विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की है।
वर्तमान में देश के किसी न किसी हिस्से में कम से कम हर तीसरे माह में कोई न कोई चुनाव होता ही रहता है।
२०१४ के बाद से नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं जिनसे इस देश के लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सुखद बदलाव आया है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए देश में एक साथ चुनाव करवाने का यह विचार श्रेष्ठ है। वर्षों से हम देखते आये हैं कि जब भी चुनाव होने होते हैं, चाहे वह निकाय चुनाव हो या विधानसभा या फिर लोकसभा, पूरा प्रशासन हर समय उनकी तैयारियों में लगा रहता है और आदर्श चुनाव आचार संहिता के नाम पर विकास कार्य और अन्य जनहितैषी कार्य महीनों ठप्प पड़े रहते हैं। देश के करदाताओं का अमूल्य पैसा इन चुनावों में बार-बार पानी की तरह बहता है। धन के साथ हमारा अमूल्य समय भी बार-बार चुनाव होने के कारण बर्बाद होता है। हर चुनाव के पहले होने वाली तैयारियां, उसमें लगने वाले असंख्य वाहन, बार-बार वार रूम सेट करना, बार-बार ट्रेनिंग की व्यवस्था करना, असंख्य बैनर-पोस्टर का छपना, यह सब फिजूलखर्चा देश को बड़ा नुकसान पहुँचाता है।
इसके इतर एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की हमारे नेताओं को आये दिन चुनाव में रहने के कारण लोगों से मिलने, उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढने का भी समय नहीं मिल पा रहा है। और तो और आये दिन अलग-अलग राज्यों में चुनाव होने के कारण कई राष्ट्रिय पार्टियाँ देश हित में निर्णय न लेकर चुनाव केन्द्रित निर्णय लेने लगी हैं जो देश की उन्नति और सुरक्षा के लिए घातक है।
राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया भी लगातार चुनाव होने के कारण जनहितैषी मुद्दों को उठाना लगभग भूल ही गया है। हमारे देश का मीडिया हर पल चुनावी रूप में ही रहता है जिससे जनता की आवाज इसमें पूरी तरह से दब सी गयी है।
राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक मुख्य कारण बार-बार होने वाला चुनाव भी है। एक साथ चुनाव कराने पर राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च पर्याप्त रूप से कम हो सकता है। इससे धन उगाही का दोहराव नहीं होगा तथा जनता और व्यापारियों को चुनावी चंदे के बारंबार दबाव से भी मुक्ति मिलेगी।
चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिये बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और अर्द्धसैनिक बल तैनात किये जाते हैं। इसमें बड़े पैमाने पर पुनः तैनाती किया जाना शामिल है, जिसमें भारी लागत आती है। एक साथ चुनाव आयोजित होने से इस तरह की तैनाती भी केवल एक बार होगी।
एक साथ चुनाव होने से चुनावों में उड़ने और दौड़ने वाले वाहनों का बड़ा खर्च बचेगा, बार-बार आचार संहिता नहीं लगेगी जिससे विकास कार्य बाधित नहीं होंगे, राजनेता भी एक बार चुनाव के बाद जनता की सेवा में लग जायेंगे, मीडिया भी चुनावी रूप से बाहर आ कर देश के दुसरे मुद्दों पर जनजागरण का कार्य कर सकेगा, सरकारी कर्मचारी भी प्रभावी रूप से अपने कार्य को सम्पादित कर सकेंगे और सरकारें भी बिना चुनाव के भय के देशहित में निर्णय लेने में समर्थ होगी।
इसके साथ ही, सभी चुनावों के लिये एक ही मतदाता सूची का उपयोग किया जा सकता है। इससे मतदाता सूची को अद्यतन करने में लगने वाले समय और धन की भारी बचत होगी। बार-बार चुनावों के कारण सरकारें हर चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिये कुछ नीतिगत निर्णय लेती हैं। हालाँकि इसे पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन सरकारों द्वारा मुफ़्त उपहारों या फ्रीबीज़ (Freebies) की घोषणा करने की आवृत्ति में कमी आएगी। चुनावों की संख्या कम होने से राज्यों की वित्तीय स्थिति बेहतर बनेगी।
एक देश, एक चुनाव की संभावनाओं को टटोलने हेतु पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय समिति ने देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा का चुनाव कराए जाने की सिफारिश करने से पहले दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे सात देशों की चुनावी प्रक्रियाओं का विस्तार से अध्ययन किया। इन सभी देशों में केंद्रीय और प्रांतीय सभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं।
इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिए हैं की पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ हों और उसके १०० दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव हो। सरकार ने इन सुझावों को मानकर एक विधेयक बनाने के लिए तैयारी शुरू की है। उम्मीद है की आने वाले समय में संसद देश के इस बहुप्रतीक्षित लोकवांछनीय विधेयक को पास करके जन भावनाओं को सम्मानित करने का कार्य करेगी और २०२८-२९ में इस देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे।
राजपाल सिंह राठौर बड़नगर, सदस्य – राष्ट्रीय युवा सलाहकार समिति, भारत सरकार.