
आज 30 नवंबर को प्रातःकाल के समय संघ के वरिष्ठ प्रचारक गोपाल जी येवतीकर का निधन उज्जैन स्थित आराधना संघ कार्यालय में हो गया।श्री गोपाल जी का जन्म चार अक्टूबर 1937 में इंदौर में हुआ था और 1961 में अपना सम्पूर्ण राष्ट्र को समर्पित करने का निश्चय कर संघ के प्रचारक निकले।संघ ने मध्यभारत प्रान्त में कार्य करने को कहा, नर्मदापुरम और भोपाल में श्री गोपाल जी ने बड़ी तन्मयता से एक -एक कार्यकर्ता को गड़ा। कहा जा रहा है कि उनके निधन के पश्चात आज मध्यभारत प्रान्त के कई घरों में चूल्हा नहीं जलेगा। क्योंकि गोपाल जी कई परिवारों के सदस्य की भांति ही थे। उनकी आत्मीयता ही थी कि केवल स्वयंसेवक ही नही बल्कि उनके परिवार भी उन्हें दादा, बड़े भाई इत्यादि संबोधनो से संबोधित करते थे।मध्यभारत प्रांत में कार्य करने के पश्चात गोपालजी को पंजाब भेजा गया। जब गोपालजी को पंजाब भेजा गया तब वहां आतंक चरम पर था। गोपालजी ने वहां जाकर तन्मयता के साथ संघ कार्य करना प्रारंभ किया। प्रतिकूल वातावरण में पंजाब में उन्होंने सघन प्रवास करना प्रारंभ किया और राष्ट्रीय कार्य के लिए समर्पित लोगो को संगठित किया। एक दशक तक उन्होंने पंजाब में कार्य किया।

बाद में पुनः मध्यभारत प्रान्त में आकर राष्ट्रीय सिख संगत का मध्यभारत में कार्य किया। विश्व हिंदू परिषद के कार्य विस्तार के लिए भी श्रीगोपाल जी ने सतत कार्य किया।आपातकाल के समय जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय कार्य करने वालों को सरकार द्वारा जेल में ठूंसा जा रहा था और पाशविक अत्याचार किए जा रहे थे तब श्रीगोपाल जी ने भूमिगत रहकर कार्य किया। जीवन के अंतिम वर्षो में समर्थ रामदास जी के साहित्य, दर्शन और उपदेशों का गोपाल जी गहन अध्ययन किया, वे यदा-कदा समर्थ रामदास पर संबोधित भी करते थे।अस्वस्थ होने के कारण अंतिम कुछ वर्ष श्री गोपाल जी किसी दायित्व पर नहीं थे लेकिन कार्यकर्ताओ से उनका जीवंत संपर्क था। वे कार्यालय आने वाले कार्यकर्ताओ से संघ, समर्थ रामदास इत्यादि विषयों पर खूब संवाद करते।गोपाल जी के मन में सबको संघ से जोड़ने की अत्यंत तीव्र लगन थी, वे चाहते थे कि सम्पूर्ण समाज संगठित हो,उनकी यह लगन जीवन के अंतिम क्षण तक भी उनके साथ रही।मृत्यु की पूर्व रात्रि जब मृत्युदेवता उनके सिरहाने आकर खड़े थे तब भी वे “मैं जग में संघ बसाऊँ, मैं जीवन को बिसराऊँ।”त्याग – तपस्या की ज्वाला से, अंतर दीप जलाऊँ।।”जैसे गीत का श्रवण कर रहे थे और संघ को जग में बसाते -बसाते ही वे अपना जीवन बिसरा गए। श्री गोपाल जी संघ गीतों के भावों के जीवंत स्वरूप थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रदेवता के चरणो में अर्पित कर दिया। उज्जैन के जिस चक्रतीर्थ मुक्तिधाम में राष्ट्र- भू के लिए सर्वस्व अर्पित कर प्रसिद्धि परांगमुख रहने वाले वीर दुर्गादास राठौड़ का अंतिम संस्कार हुआ था, आज दोपहर में उसी मुक्तिधाम पर श्री गोपाल जी येवतीकर पंचतत्व में विलीन हो गए।भारत माता के पुत्र, तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहे को चरितार्थ करने वाले स्वर्गीय श्री गोपाल जी येवतीकर जी के चरणों मे शत में नमन