स्वतंत्रता आन्दोलन में गणेश उत्सव ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. 1894 से पहले लोग अपने-अपने घरों में गणपति उत्सव मनाते थे. लेकिन 1894 के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे. पुणे के शनिवारवाडा के गणपति उत्सव में हजारों लोगों ने भाग लिया. लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजों को चेतावनी दी कि हम गणपति उत्सव मनाएंगे, अंग्रेज पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके दिखाए.
अंग्रेजों द्वारा 1894 में पारित कानून के अनुसार अंग्रेज पुलिस किसी राजनीतिक कार्यक्रम में एकत्रित भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती थी. लेकिन किसी धार्मिक समारोह में उमड़ी भीड़ को नहीं.
20 अक्तूबर, 1894 से 30 अक्तूबर, 1894 तक पहली बार 10 दिनों तक पुणे के शनिवारवाड़ा में गणपति उत्सव मनाया गया। लोकमान्य तिलक वहां भाषण के लिए हर दिन किसी बड़े नेता को आमंत्रित करते. 1895 मे पुणे के शनिवारवाड़ा में 11 गणपति स्थापित किए गए. उसके अगले साल 31 और अगले साल ये संख्या 100 को पार कर गई. फिर धीरे -धीरे महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहरों अहमदनगर, मुंबई, नागपुर, थाणे तक गणपति उत्सव फैलता गया.
