जब विवादों में घिरी वेब सीरीज़ IC 814, नेटफ्लिक्स पर देखने का निर्णय लिया तब मन में आशा थी कि शायद इस दुर्दांत घटना से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठेगा।
24 दिसंबर से 31 दिसंबर 1999 तक के वो सात दिन देश पर कितने भारी गुज़रे, इसका अंदाज़ा वही लगा सकता है जो उस दौर में होश सम्भाल चुका था। उन दिनों केवल ज़ी न्यूज़ और स्टार न्यूज़ चैनल आया करते थे और हमारे दिन और रातें इन्हीं चैनलों को देख कर गुज़र रहे थे।
अनुभव सिन्हा की सीरीज़ IC 814 बड़ी उम्मीदों से देखी। लेकिन न तो इसमें वो गहराई महसूस हुई और न ही इसमें देश और पीड़ितों के साथ न्याय किया गया। और तो और इसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर भी प्रस्तुत किया गया।
चलिए मान लिया कि उस समय की गठबंधन सरकार की नाकामी सही दिखाई गई है लेकिन उन आतंकवादियों में इंसानियत दिखाना देश के साथ बहुत बड़ी बेईमानी है। उनके असली मुस्लिम नाम अंत तक छुपाना और भी बड़ी बेईमानी है। हाँ, वो कोड-नेम थे परन्तु निर्देशक की ज़िम्मेदारी थी कि वे सारे तथ्य बताते। शुरू से बताते कि इस हाईजैक में पाकिस्तान की क्या भूमिका रही।
पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी ISI को क्लीन चिट क्यों दी गई है, यह बात समझ से परे है। सिर्फ़ इसलिए कि लादेन ने ISI वालों को बाद की पार्टी में नहीं बुलाया, ISI का चरित्र दूध से धुल गया?
उस समय के विदेश मंत्री जसवंत सिंह जी ने ख़ुद लिखा था कि ISI वाले तीनों छुड़वाये गये आतंकियों मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर सईद शेख के परिवार वालों को कंधार ले गये थे ताकि छोड़ने पर इन आतंकियों की पहचान हो सके। उनकी पहचान के बाद ही हमारे यात्रियों को छोड़ा गया।
इस अपहरण कांड की पूरी स्क्रिप्ट पाकिस्तान द्वारा ही लिखी गई थी। पाकिस्तान-ISI का पूरा सच पता नहीं क्यों नहीं बताया गया? पाक की नॉन-स्टेट ऐक्टर्स की थ्योरी को जान बूझ कर बल क्यों दिया गया? अर्थात जो पाकिस्तान ने कहा वह सही और जो हमारे देश ने कहा वह गलत।
जब पूरी सीरीज़ में बार-बार कहानी का बहाव तोड़ कर तथ्य और बैकग्राउंड बताने के लिए नरेशन का सहारा लिया गया है, तो चीफ़, डॉक्टर, बर्गर, भोला और शंकर के असली नाम क्यों नहीं बताए गए? जबकि इनके नाम तो हम टीवी देखने वालों को भी याद हैं।
चीफ़ का असली नाम था इब्राहिम अतहर था।
डॉक्टर का असली नाम शाहिद अख़्तर सईद था।
बर्गर का असली नाम सनी अहमद क़ाज़ी।
भोला का असली नाम ज़हूर मिस्त्री था।
शंकर का असली नाम शाकिर था।
यह बताने में अनुभव जी को क्या दिक्कत थी कि सारे आतंकी पाकिस्तानी थे। यहाँ तक कि लाहौर एयरपोर्ट पर ATC का नुमाइंदा कुरान की आयत पढ़कर आतंकियों को उपदेश भी देता है। क्या इस बात पर विश्वास किया जा सकता है कि जिस पाकिस्तान ने यह साज़िश रची, वही पाकिस्तान अपने लोगों को शान्ति का संदेश देगा?
यहाँ इस वेब सीरीज़ में तो आतंकियों को क्रूरता करते नहीं बल्कि यात्रियों के साथ अन्ताक्षरी खेलते दिखाया गया है।
ये आतंकी यात्रियों की फ़िक्र-मदद करते भी करते हैं। क्या खूंखार आतंकवादी जिन्हें केवल मरने-मारने की ट्रेनिंग दी जाती है, उनसे इन्सानियत की उम्मीद की जा सकती है? यदि यह वेब सीरीज़ आगे बढ़ती तो शायद निर्देशक महोदय एक आतंकी का एयर होस्टेस के साथ प्रेम भी दिखा बैठते, जिसकी प्रबल सम्भावना इस सीरीज़ में दिखाई गई है।
काश निर्देशक ने पीड़ितों के बारे में भी थोड़ा सोचा होता। उनकी उस मनःस्थिति का चित्रण किया होता जिसमें वे आठ दिनों तक रहे। वैसे भी इस वेब सीरीज़ में इतने झोल हैं कि पूछिए मत।
जैसे अजीत डोवल जैसे काबिल ऑफिसर को जोकर जैसा दिखाया गया है। आईबी और रॉ के officers बस सिगरेट फूंकते दिखाए गए हैं। उन्हें ऐसा दिखाया गया है मानो उन्हें देश की परवाह ही नहीं। हमारी सुरक्षा एजेंसियों की छवि को धूमिल करने का पूरा प्रयास किया गया है।
Pseudo secularism के चक्कर में निर्देशक ने जिस तरह पाकिस्तान को क्लीन चिट दी वह किसी भी तरह से acceptable नहीं है।
आतंक, आतंक होता है जिसका कोई धर्म नहीं होता फिर भी पता नहीं क्यों आतंक के साथ हमेशा धर्म क्यों जुड़ जाता है?
महात्मा गांधी की हत्या नाथू राम गोडसे ने की, इंदिरा गांधी की हत्या सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने की और कश्मीर में हुए नरसंहार ने हमें हिला कर रख दिया । यदि इसमें हम हिन्दू, सिख और मुस्लिम धर्म देखेंगे तो आतंक से सामना कैसे करेंगे ?
कायदे से अनुभव सिन्हा को सामने आ कर रिसर्च-तथ्यों पर हर सवाल का जवाब देना चाहिए। इस सीरीज़ में उपयुक्त बदलाव करने चाहिए ताकि आज और आगे की पीढ़ियाँ सही इतिहास जान सकें।
लेखक – अंशु श्री सक्सेना