बड़नगर रोड़ पर मोहनपुरा में ग्रामीणों ने लुप्त हो गयी चंद्रभागा को 22 दिन में कर दिया पुनः जीवित

भीषण गर्मी में जल संकट से मुक्ति के लिए गांव के बच्चों, महिलाओं , युवाओं और वृद्धों के भागीरथी प्रयास का फल

41 डिग्री तापमान की भीषण गर्मी में एक ओर जहां कुएं, तालाब, नलकूप जवाब दे रहे हैं, वहीं बड़नगर रोड पर मोहनपुरा में श्रमदान का शुभ फल लुप्त चंद्रभागा नदी के प्रवाह मार्ग में जलधारा के रूप में प्रकट हो गया। लुप्त नदी में फिर से जल का प्रवाह दिखाई देने से ग्रामीणों के चेहरों पर खुशी छा गई। बुधवार को ग्रामीण जलधारा का पूजन करेंगे।


शिप्रा की 22 सहायक नदियों में चंद्रभागा भी है। यह नदी लुप्त हो चुकी है। जल का प्रवाह रुक जाने से धीरे-धीरे नदी का प्रवाह मार्ग भी अवरुद्ध हो गया था। चंद्रभागा केवल ग्रामीणों की स्मृति में ही रह गई थी। शिप्रा संरक्षण अभियान के तहत सहायक नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सबसे पहले चंद्रभागा को चुना गया।

4 अप्रैल से प्रतीकात्मक श्रमदान और 14 अप्रैल से मशीनों से गहरीकरण कर चंद्रभागा के प्रवाह मार्ग को खोलने का काम चल रहा है। सोमवार को ग्रामीणों को गहरीकरण क्षेत्र में पानी दिखाई दिया। मंगलवार को यह पानी बहाव की स्थिति में आ गया। समाजसेवी पुष्पेंद्र शर्मा के अनुसार भीषण गर्मी में जहां नदी, तालाब, कुएं, नलकूप जवाब दे रहे हैं, वहीं इस प्राचीन नदी के प्रवाह मार्ग में जलधारा फूट पड़ने से लोगों की आस्था का पारावार नहीं रहा।

शिप्रा की अन्य सहायक नदियां जो लुप्त हैं वे पुनर्जीवित हो सकेंगी
विक्रम विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद् प्रो. डीएम कुमावत कहते हैं- शिप्रा की अनेक सहायक नदियां हैं जो लुप्त हो गई हैं। चंद्रभागा को ग्रामीणों की आस्था ने पुनर्जीवित किया है। नदी ऊपर से सूखी थी, भीतर उसका बहाव रहा जो प्रवाहमान हो गया है। अब जिम्मेदारी इस बहाव को बनाए रखने और सुरक्षित करने की है। इसके आसपास सघन पौधारोपण होना चाहिए। झारडा की गांगी नदी भी प्रवाहित थी, जिसे बहते हुए देखने वाले आज भी हैं। सहायक नदियों को पुनर्जीवित करने से ही शिप्रा प्राकृतिक रूप से प्रवाहमान होगी। चंद्रभागा से मिली सफलता से अन्य सहायक नदियों को पुनर्जीवित करने की प्रेरणा मिलेगी।
चंद्रभागा में पानी निकलने पर ग्रामीण पहुंचे।

आज जल यात्रा निकाल नदी को मनाने जाएंगे


जिस जगह जलधारा निकली है, उसे ग्रामीण बाणगंगा स्थान कहते हैं। बुधवार सुबह 7.30 बजे गांववासी और श्रमदानी राधाकृष्ण मंदिर पर एकत्र होंगे। वहां से जलधारा तक जलयात्रा निकाली जाएगी। महिला-पुरुष, बच्चे सभी जलधारा का पूजन कर नदी को मनाएंगे, ताकि वह फिर से प्रवाहमान हो। वापस लुप्त न हो। समाजसेवी सोनू गेहलोत का कहना है कि शिप्रा संरक्षण अभियान का उद्देश्य लोगों को नदी से जोड़ना है। चंद्रभागा के प्रकट होने से ग्रामीणों की आस्था भी जागृत हो गई है। वे अब नदी को संभालने के लिए उत्साहित हैं।

12 फीट खुदाई करने पर ही निकल आया साफ पानी
जिस जगह जलधारा प्रकट हुई है, वहां 12 फीट खुदाई कर नदी का रास्ता बनाया है। पानी साफ और शीतल है। खुदाई में 3 फीट तक काली और पीली मिट्‌टी, इसके बाद हरी मुर्रम तथा इसके नीचे चूने की लेयर मिली है। यहां भूजल के रूप में नदी प्रवाहित है। साफ पानी का कारण यहां चूने और मुर्रम की परतें होना हैं। इनसे छन कर बारिश का पानी धरती में जाता है। गांव के चेतराम पटेल बताते हैं यहां चूने की खदान थी। भवन बनाने वाले चूना ले जाते थे। उज्जैन के महाराजवाड़ा भवन और कोठी बनाने में यहीं से चूना ले जाया गया था। गांव में भी यहीं के चूने से मकान बने हैं।

छोटे तालाबों की कतार, स्टापडेम और पौधारोपण
गेहलोत बताते हैं- 8 किमी लंबी चंद्रभागा नदी में छोटे तालाब बनाए जा रहे हैं। इनके अलावा 4 जगह छोटे स्टापडेम भी बनेंगे। ताकि बारिश का पानी ज्यादा से ज्यादा रोका जा सके। भूजलविद् का कहना है इससे जहां भूजल स्तर बढ़ेगा वहीं बारिश के बाद यह पानी आंतरिक बहाव के साथ शिप्रा में मिलेगा जिससे शिप्रा प्राकृतिक रूप से प्रवाहमान होगी। तालाब और नदी के किनारे पौधारोपण होगा। स्थान तय कर एक घाट भी बनाया जाएगा ताकि चंद्रभागा के किनारे तीर्थ स्थल विकसित हो सके। चंद्रभागा का काम पूरा होने के बाद अगली सहायक नदी पर काम करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *