वीर सावरकर

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अंडमान जेल में अंग्रेज जेलर जो बड़ा खूंखार था उसने सावरकर को दोष एवं भय प्रदर्शन की दृष्टि से कहा- यदि तुम सिर्फ एक कैदी की तरह भागने के प्रयास करोगे तो भयंकर संकट में पड़ जाओगे जेल के चारों ओर घनघोर जंगल है उसमें भयंकर वन्य लोग एवं जानवर रहते हैं तुम जैसे तरुण को वे ककड़ी की तरह खा जाते हैं।
जेलर की बात सुनकर सावरकर ने उससे कहा मैंने गिरफ्तारी होते ही अपने निवास स्थान अंडमान की जानकारी के लिए इतिहास का अध्ययन कर लिया है अतः आप की उसके बारे में अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है।
सावरकर जी का अंडमान का पहला दिन था उन्हें साल नंबर की बैरक की उपरी मंजिल की कोठरी नंबर 123 में बंद किया था। उसी दिन के बारे में सावरकर ने वर्णन इस प्रकार किया है जामदार मुझे लेकर 7 क्रमांक बैरक की ओर चल पड़ा मार्ग में पानी का एक होज मिला जामदार ने कहा इसमें स्नान करें। मैंने कई दिनों से स्नान नहीं किया था समुंद्र यात्रा से शरीर मलिन और पसीने से तर हो गया था। स्नान की अनुमति मिलते ही अपूर्वानंद प्राप्त हुआ मुझे एक लंगोट दे दी गई कि इसे पहनकर स्नान करो लंगोट लगाकर जैसे ही मैंने कटोरे से होज से पानी लेना चाहा कि जामदार ने चिल्लाकर कहा ऐसा नहीं करना यह काला पानी है जब मैं आज्ञा दूंगा कि लो पानी तब तुम कटोरा पानी लेना। फिर मैं कहूंगा अंगमलो तो अंग मलना फिर मैं कहूंगा और पानी ले लो तब तुम और दो कटोरे पानी लोगे बस कुल 3 कटोरे में स्नान होगा।
वैसे ही चुल्लू भर पानी से कुल्ला किया कि सारे पानी ने जीभ का स्वाद बिगाड़ दिया पूरा शरीर कसमस आ गया लगा कि इसमें तो स्नान ना करूं तो अच्छा है मगर इसकी आदत तो डालनी ही होगी लंदन तथा पेरिस के टर्बिश बाथ का आनंद लिया है तो अंडमान बाथ का भी आनंद लेना चाहिए कपड़े पहन कर आगे बढ़ा सामने देखा ईटों से बना एक भव्य भवन था उसकी ऊंची ऊंची दीवारों में लोहे की छडे ठुकी हुई थी। सब कमरे एक समान पंक्ति बंद थे ऐसी भी वह तिमी तिमंजिल पत्थर ईटों से बनी भव्य बैरक चौड़ी सीढ़ियां, सफेद रंग तथा विशालता को देखकर मन की मन को बड़ी प्रसन्नता हुई कि जैसे कोई बड़ा राज महल रहने के लिए मिला हो यदि यह मेरा खुद का होता तो मैं कितना बड़ा धनवान कहलाता मुझे जब यह मालूम हुआ कि वर्षों तक कोठरी में अंदर हो बंद करके रखें हैं बाहर नहीं निकलने देते तो मैंने मन ही मन कहा इस बंदी ग्रह को अपना महल समझ कर 50 वर्ष तक रहेंगे काव्य रचना करेंगे
अंडमान के अन्न वस्त्र की तकलीफ मारपीट, गाली यह असुविधा तो थी किंतु एक और भयंकर तकलीफ थी। वह थी मल मूत्र पर रोक सुबह-शाम और दुपहरी के सिवा टट्टी पेशाब भी नहीं कर सकते थे रात को टट्टी मिले तो सवेरे भंगी शिकायत करें और पेशी की नौबत आए। सावरकर को खडी – खडी हो जाये तो आठ आठ घन्टे खडे रहना पडता था।
अंग्रेज अधिकारियों का ऊपर से आदेश था कि क्रांतिकारियों से अधिक से अधिक काम लो जिसके परिणाम स्वरुप जेलर बारी ने इन क्रांतिकारियों पर यातनाओं का कहर ढाया सावरकर और उनके बंदी साथियों से कोल चलवाया। जहां बेल जोते जाते थे वहां सावरकर को जोता गया था और 30 पौंड तेल निकलवाया जाता था अगर चलते-चलते कहीं बीच में विश्राम करते या धीमी गति से चलते थे पीछे से हंटर की मार पड़ती थी जिससे पीठ की चमड़ी खीच जाती थी तेल को कोलू से निकालना निकलता ही था किंतु क्रांतिकारियों का स्वयं का तेल भी निकल जाता था।
जब सावरकर 15 वर्ष के थे तभी पुणे के साप्ताहिक पत्र में आपके लेख और कविता छपने लगी थी उस अवस्था में आपने अपने हम उम्र के साथियों के साथ दुर्गा मां के आगे देश की स्वतंत्रता कराने की प्रतिज्ञा ली थी और एक क्रांतिकारी बनाया जिसका नाम मित्र मेला रखा गया जिसके माध्यम से क्रांतिकारी कार्य करते थे जन सामान्य के बीच धर्म के प्रति सचेत करते हुए राष्ट्रीय भावना जागृत करने की दृष्टि से शिवाजी उत्सव और गणेश उत्सव के आयोजन भी अपने किए जिसमें सहगान और भाषण आदि होते थे
सावरकर जब पूर्णा के कॉलेज में पढ़ते थे तभी से उनके दल ने स्वदेशी आंदोलन में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था जिसका नेतृत्व सावरकर जी किया करते थे एक स्वदेशी आंदोलन की सभी से सावरकर ने कहा अरे अभी भी आप लोग विदेशी वस्त्र अपने शरीर से चिपकाए हुए हैं फेकों फेकों इन कपड़ों को उतार डालो जहरीली खाल की तरह इन्हें फेंक दो इन्हें कैसे गले लगाते हुए हो? जला डालो लो इन कंडो को और प्रकृति की जो आपको विदेशी वस्त्र पहनने को विवश करती है फिर वर्णन था इस तरह का वक्ता पहले किसी ने सुना ही न था लोगों के चेहरे तमतमा गए लोगों के हाथ उठे विदेशी वस्त्र घृणित पदार्थ की तरह शरीर की शरीर में उतर उतरने लगे एक ने अपना विदेशी कोट उतारकर था सावरकर की ओर फेंक दिया तो दूसरे ने पेंट व तीसरे ने हेट उछाल दी तो चौथे ने कमीज फेंक दी देखते-देखते इन कपड़ों को ढेर लग गया जो गाड़ी में लादकर अजीर गुलाल में रखकर गाजे-बाजे के साथ होली जलाने जैसा कार्यक्रम किया जिसमें तिलक ने इन वस्त्रों को अग्नि प्रज्वलित की थी इनके पूर्व तिलक, प्रोफेसर परांजपे और सावरकर के भाषण हुए।
इस कार्यक्रम के संपन्न होने पर आपको कॉलेज में ₹10 जुर्माना और छात्रावास से निकाल दिया गया।
1 जुलाई 1909 की रात्रि को मदनलाल ढींगरा ने तत्कालिक इंडिया हाउस के प्रधान सर काजन वायली को अपने रिवाल्वर का निशाना बनाकर भारत अंग्रेजी अत्याचार के विरुद्ध अपना विरोध प्रकट किया करजन वायली की मृत्यु में पूरा लंदन शहर को कंपा दिया था 5 जुलाई को लंदन के रेयटन हाल मे ढींगरा के इस क्रांतिकारी की सार्वजनिक सभा में निंदा कलेका आयोजन किया गया था सभा के अध्यक्षता सर आगा खा ने की वे बोले सभा मदनलाल ढींगरा की सर्वसम्मति से निंदा करती है तुरंत ही चुनौती देने वाली जोर से गूंजी नहीं सर्वसम्मति से नहीं मैं इसका विरोध करता हूं सभा के अध्यक्ष ने गुस्से में कहा नहीं कौन कहता है मैं कहता हूं उत्तर आया तुम्हारा नाम अध्यक्ष ने नाम पूछा तो यह मैं हूं मेरा नाम सावरकर है।
इस बार इसी बीच एक व्यक्ति ने सावरकर के माथे पर प्रहार किया वह लहूलुहान हो गए उन्होंने फिर भी दृढ़ता से कहा इस सब के बाद भी मैं कहता हूं की मैं निंदा प्रस्ताव के विरुद्ध हूं और अंत में बिना प्रसार के सभा समाप्त हो गई
वीर सावरकर ने भारत में अपने क्रांतिकारी साथियों को 20 रिवाल्वर भेजे थे इन्हीं रिवाल्वर मे से एक रिवाल्वर से नासिक के प्रसिद्ध अंग्रेज कलेक्टर जेवलन पर अनंत कान्हेरे ने गोली चलाई जिससे वह मर गया क्रांतिकारी अनंत कान्हेरी हाथ में गीता ले फांसी के फंदे पर लटक गए सावरकर उन दिनों में लंदन थे उनके लिए भी वारंट निकाला गया जहां उन्हें गिरफ्तार किया गया 11 जुलाई 1910 की कोरिया जहाज से उन्हें भारत रवाना किया जहाज पर पुतलप का पहरा था सावरकर के दिमाग में इनकी आंखो में धूल झोंक कर समुद्र में कूदकर तैरकर फ्रांस के तट पर पहुंचने की योजना बार-बार आ रही थी उन्होंने दो बार प्रयत्न भी किया किंतु सफल नहीं हुए इसका पुलिस को भी पता नहीं चला था
सावरकर ने शौच का बहाना का कर शौचालय गए शौचालय के बाहर पुलिस का पहरा था वहाँ सावरकर ने अपना वाइट गाउन उतारकर शौच के पाइप में से समुद्र में कूद गए जहाज पर तैनात एक पुलिस ने उन्हें देखा और उन पर गोली चलाई किंतु सागर से पानी में डुबकी लगा तैरते हुए बचते बचते फ्रांस के तट पर आ गए जहां पर फ्रांसीसी और अंग्रेज पुलिस ने आप को पकड़ लिया और फिर गिरफ्तार कर जहाज पर पहुंचाया जहां एक रिवाल्वर धारी 24 घंटे उनके पास रहता था भारत लाकर उन पर मुकदमों का नाटक खेला गया जहां यरवडा जेल में रखा गया और बंबई कोर्ट में मुकदमा चला जहां आपको 30 जनवरी 1911 को मुख्य न्यायाधीश स्कॉट ने कलेक्टर जेवलन की हत्या की प्रेरणा और ब्रिटिश सम्राट के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के अभियोग में दो आजन्म अर्थात 50 साल तक काले पानी की सजा दी जिस समय न्यायालय में सावरकर को 50 वर्ष का कारावास दंड सुनाया तो उन्होंने हंसते हुए कहा मुझे बहुत प्रसन्नता है कि ब्रिटिश सरकार में मुझे जीवनों का कारावास दंड देखकर पुनर्जन्म के हिन्दू सिद्धांत को मान लिया है।
1910 में दंडित रिहाई 1960 में यह सुन सावरकर अनसुना अनदेखा दंड भोगने के लिए काले पानी की कोठरी में पहज मस्ती मे बढ़ रहे थे तभी पास खड़े जेल अधिकारी ने मुंह छुपाकर व्यंग से कहा घबराओ मत प्यारे ब्रिटिश सरकार 50 वर्ष पूरे रहते ही तुम्हें जरूर रिहा कर देगी तभी वीर सावरकर बोले जरूर जरूर पर क्या स्वयं ब्रिटिश सरकार भारत में 50 साल तक टिकी रह सकेगी। जो अंततः सत्य हुई।
– राजेंद्र जी श्रीवास्तव

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