ध्यान मूलं गुरु मूर्ति, पूजा मूलं गुरु पदम्।
मन्त्र मूलं गुरूर वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरु कृपा।। \”\”गुरुचरणकमलाभ्यो नमः\”\”
शिक्षक अर्थात गुरु का सम्मान करने की हमारी परंपरा कोई नई नहीं है, यह परंपरा हमारी सनातन परंपरा है और यही कारण है कि अनादि काल से भारत को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी स्थान प्राप्त है | जीवन में सफल होने के लिए शिक्षा सबसे ज्यादा जरुरी है | शिक्षक देश के भविष्य और युवाओं के जीवन को बनाने और उसे आकार देने के लिये सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | प्राचीन काल से ही गुरुओं का हमारे जीवन में बड़ा योगदान रहा है |
विश्वगुरू के वाचिक सम्मान से सम्मानित भारत भूमि ने सदैव विद्वत्ता का सम्मान किया है | विद्वत्ता को गुरु के आसन पर विराजमान कर सदैव उनकी पूजा अर्चना व आराधना की है | भारत भूमि ने व्यक्ति का आंकलन कभी भी उसके धर्म, उसकी जाति, उसके लिंग अथवा आयु से नहीं किया बल्कि उसके ज्ञान के आधार पर उसका आंकलन किया है ओर सिर्फ आंकलन ही नहीं किया बल्कि उसके ज्ञान को गुरु रूपी सर्वोच्च पद देकर स्वीकार किया | महान संत कबीर ने अपने वचनों में कहा हे कि
जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान |
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ||
इसी प्रकार गुरू दत्तात्रेय जी ने तो स्त्री, पुरुष, बालक, बालिका, पशु, पक्षी, चींटी एवं कीट-पतंगों को भी उनसे ज्ञान प्राप्त होने पर उन्हें गुरु मानकर उनका सम्मान किया |
गुरूकुल परंपरा के अनुरूप ऋषि-मुनि वन में कुटी या आश्रम बनाकर रहते थे। जहां वे ध्यान और तपस्या करते थे। उक्त जगह पर समाज के लोग अपने बालकों को वेदाध्यन के अलावा अन्य विद्याएं सीखने के लिए भेजते थे। ब्रह्मचर्य आश्रम को ही मठ या गुरुकुल कहा जाता है।
वेद के साथ विज्ञान की शिक्षा : गुरुकुल में छात्र इकट्ठे होकर वेद के कुछ भाग को कंठस्थ करते थे और विद्याएं सिखते थे। इन विद्याओं में योग, अस्त्र-शस्त्र, ज्योतिष, खगोल, स्थापत्य, संगीत, नृत्य, शिल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र, भाषा, लेखन, नाट्य, नौटंकी, तमाशा, चित्रकला, मूर्तिकला, पाक कला, साहित्य, बेल-बूटे बनाना, कपड़े और गहने बनाना, सुगंधित वस्तुएं-इत्र, तेल बनाना, नगर निर्माण, सूई का काम, बढ़ई की कारीगरी, पीने और खाने के पदार्थ बनाना, सोने, चांदी, हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा करना, आदि 64 प्रकार की कलाएं बताई गई जाती थी। इसके अलावा 16 कलाएं और रहस्यमयी विद्याओं का भी ज्ञान दिया जाता था। जिसकी जिसमें रुचि होती थी वह वैसे विषय चयन करके दीक्षा लेता था। अधिकांश शिक्षण व्यावहारिक था।
प्राचीनकाल में धौम्य, च्यवन ऋषि, द्रोणाचार्य, सांदीपनि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, गौतम, भारद्वाज आदि ऋषियों के आश्रम व गुरुकुल प्रसिद्ध रहे। बौद्धकाल में बुद्ध, महावीर और शंकराचार्य की परंपरा से जुड़े गुरुकुल जगप्रसिद्ध थे, जहां विश्वभर से मुमुक्षु ज्ञान प्राप्त करने आते थे और जहां गणित, ज्योतिष, खगोल, विज्ञान, भौतिक आदि सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी। इच्छा पूर्ण होने पर शिष्यों द्वारा गुरु को गुरु दक्षिणा दी जाती थी यह गुरु दक्षिणा एक प्रकार से गुरु का सम्मान एवं आश्रम को एक प्रकार का सहयोग भी होती थी जिससे उन आश्रमों में आने वाली पीढ़ी तैयार होती रहे |
वर्तमान समय की शिक्षा पद्धति पूर्ण रूप से व्यवसायिक हो चुकी है लेकिन फिर भी गुरु का सम्मान अर्थात शिक्षक का सम्मान आज भी उतना ही है जितना प्राचीन समय में था | वैसे तो हम अपने जीवन में शिक्षक का कभी अपमान नहीं करते लेकिन उनको उनके दिए ज्ञान को एक उत्सव के रूप में मनाने के लिए हमने एक दिन सुनिश्चित किया है जिसे हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं | इस दिन को हमने एक शिक्षक के जन्मदिवस के दिन को चुना है जिनका नाम है \”डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन\” |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में एक गरीब परिवार में हुआ था | आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद पढाई-लिखाई में उनकी काफी रुची थी | आरंभिक शिक्षा इनकी तिरूवल्लुर के गौड़ी स्कूल और तिरूपति मिशन स्कूल में हुई थी | फिर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने अपनी पढाई पूरी की थी | 1916 में उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला | 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह 1903 में सिवाकामु के साथ हो गया था | वर्ष 1954 में शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए उन्हें भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया |
हम आपको बता दें कि राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिए थे | उनका मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है. इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरुरी है | 1965 में स्वर्गीय डॉ. एस. राधाकृष्णन के कुछ प्रमुख छात्रों ने उस महान शिक्षक के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक सभा का आयोजन किया। उस सभा में डॉ. राधाकृष्णन ने अपने भाषण में कहा कि उनकी जयंती को भारत और बांग्लादेश के अन्य महान शिक्षकों को श्रद्धांजलि देकर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। तभी से 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपती तथा दूसरे राष्ट्रपति थे | सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे और शिक्षा में उनका काफी लगाव था, इसलिए सम्पूर्ण भारत में सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अच्चा करने वाले छात्रों को पुरस्कार दिया जाता है | ऐसा कहा जाता है कि गुरु अर्थार्त शिक्षक के बिना सही रास्तों पर नहीं चला जा सकता है | वह मार्गदर्शन करते है तभी तो शिक्षक छात्रों को अपने नियमों में बांधकर अच्छा इंसान बनाते हैं और सही मार्ग प्रशस्त करते रहते है | इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि जन्म दाता से बढकर महत्व शिक्षक का होता है क्योंकि ज्ञान ही इंसान को व्यक्ति बनाता है, जीने योग्य जीवन देता हैं | गुरु का हर एक के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है और इसलिए कहा गया है कि:~
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
भारत में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद राधाकृष्णन को जवाहरलाल नेहरु ने राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करने का आग्रह किया | 1952 तक वह इसी पद पर रहे और उसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपती नियुक्त किया गया | राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल 1962 में समाप्त होने के बाद उनको भारत का दूसरा राष्ट्रपति बनाया गया | 17 अप्रैल 1975 में लंबे समय तक बीमार रहने के बाद उनका निधन हो गया |
भारत में शिक्षक दिवस कैसे मनाया जाता है
इस दिन स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती हैं, उत्सव, कार्यक्रम आदि होते हैं | शिक्षक अपने टीचर्स को गिफ्ट देते हैं. कई प्रकार कि सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती है जिसमे छात्र और शिक्षक दोनों ही भाग लेते है. गुरु-शिष्य परम्परा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं |
यह दिन शिक्षक और छात्रों अर्थार्थ यू कहें तो समाज के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है | इसी दिन शिक्षको को मान-सम्मान देकर उनके काम की सराहना करते है | एक शिक्षक के बिना कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर आदि नहीं बन सकता है. शिक्षा का असली ज्ञान सिर्फ एक शिक्षक ही दे सकता है |
अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि 05 सितंबर का दिन डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में ही नहीं बल्कि शिक्षकों के प्रति सम्मान और लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना जगाने के लिए भी मनाया जाता है |
– डॉ. राजेश रावल \”सुशील\”