शाजापुर के बावलियाखेड़ी नाम के गाँव से एक खबर आयी ओर कुछ देर बाद वो खबर आज तक ओर भास्कर जैसे नामी मीडिया के द्वारा भी चलने लगी, खबर थी कि शनिवार के दिन इस गाँव की एक अनुसूचित वर्ग की लड़की स्कूल से घर आ रही थी तो कुछ राजपूत लड़कों ने उसका रास्ता रोका ओर कहा कि हमारे गाँव की कोई लड़की स्कूल नही जाती,तुझे भी नही जाना है, इस दादागिरी का लड़की के भाई ने विरोध किया तो अनबन हुई, लठिया चल गई, और लड़की के परिवार के तीन सदस्यों को चौंट आई जिनमे एक महिला भी है।
मीडिया मे जब यह खबर चली तो कुछ संगठनों के झण्डाबरदार शाजापुर पहुंचे, आंदोलन,हंगामे और ज्ञापन होने लगे कि दलित लड़की के साथ एसा भेदभाव क्यों, मीडिया मे भी एसी ही खबरे चलने गई कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के एमपी मे क्या हाल है, मीडिया ने सही सवाल उठाया, इन संगठनों ने भी आंदोलन सही ही किया लेकिन इन सबमे जो गलत था वो थी जल्दबाजी, कि बाकि तथ्यों के आने का इंतज़ार नहीं किया गया। इसमे कुछ गलत तो यह भी है कि कुछ रत्तीभर समूह हिन्दुओ की आपसी बढ़ रही समानता को,भाईचारे को अवर्ण-सवर्ण, राजपूत -दलित कर खत्म करना चाहते है।
तो सत्य क्या है वो जांच के बाद न्यायपालिका बताएगी, मीडिया का काम निर्णय सुनाना नही, facts बताना है
1.पहली ओर मुख्य बात जो हमारी fact team के ध्यान मे आयी कि गाँव मे किसी तरह का भेदभाव है ही नही ओर न ही किसी लड़की को स्कूल जाने से रोका गया, आज भी गाँव कि कई लड़कियां प्राथमिक कक्षाओ तक गाँव मे ही और उसके बाद पास के गाँवों जाईहेड़ा, सतगाँव और शाजापुर शहर मे भी पढ़ने जाती है, गाँव की कुछ लड़कियों का तो स्कूल का डाटा भी हमारे पास आया है। इसलिए गाँव की लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने की बात कुछ गले नहीं उतरती।
2.दूसरी बात कि कुछ संघटनों के झंडाबरदार यह कह रहे है कि गाँव मे अनुसूचित वर्ग के साथ भेदभाव होता है, तो उन्हे ये विडिओ देखना चाहिए,
ये उसी गाँव के एक निवासी का है, जो अनुसूचित वर्ग से ही है और कह रहे कि कोई दरबार कोई भेदभाव नही करते।
3. तीसरी बात जिस लड़की द्वारा यह आरोप लगाया गया कि मुझे स्कूल से आते समय रोका गया वह लड़की उस दिन स्कूल नही बल्कि पास के एक गाँव सापटी में किसी धार्मिक कार्यक्रम में थी, वहाँ के कलश यात्रा का एक विडिओ देखने पर लड़की स्पष्ट दिख रही है,
ये तथ्य पहले बताई दोनों बातों को सत्य करती है कि न ही किसी लड़की को स्कूल जाने से रोका जाता है, साथ ही गाँव ओर आसपास के गाँवों मे किसी तरह का भेदभाव नही है,क्योंकि यदि भेदभाव होता तो लड़की को इस धार्मिक कार्यक्रम मे भाग नही लेने दिया जाता, यहा तो सभी वर्ग एक समान है।
तो इन सब तथ्यों के बाद ये सवाल उठता है कि फिर लड़ाई क्यों हुई,डंडे क्यों चले,क्यों लड़की ने एसी रिपोर्ट लिखवाई और क्यों मीडिया ओर ये संगठन इस खबर का दूसरा एंगेल बता रहें है।
तो लड़ाई क्यों हुई…… इस बारे मे यह तथ्य सामने आ रहा कि लड़ाई स्कूल जाने से रोकने की नही, बल्कि एक सरकारी कुएं की है। वास्तविकता में यह कुआं सार्वजनिक बताया जा रहा है, जो कोटवार यानि चौकीदार को दी गई सरकारी जमीन से लगा हुआ है, इस कुएं के स्वामित्व पर फेले भ्रम के कारण यह विवाद बढ़ गया और लट्ठबाज़ी तक आ गया।
और यह तथ्य अधिक पुख्ता इसलिए लगता है क्योंकि घटना होने के बाद जैसे ही मामला बडा तो प्रशासन ने सबसे पहले जाकर उस कुएं का रास्ता सार्वजनिक किया और विवाद के मूल कारण को निपटाया
जबकि 28 जून को गाँव के कुछ लोगों ने पुलिस को इस कुएं के रास्ते को सार्वजनिक करने के लिए आवेदन भी दिया था लेकिन शायद पुलिस ने अपनी अति व्यस्तता अथवा निसक्रियता के कारण इस ओर ध्यान नहीं दिया,लेकिन घटना होते ही तुरंत कुए का रास्ता सार्वजनिक किया गया, यदि प्रशासन पहले ही कर देता तो इतनी बड़ी घटना नही होती।