मध्यप्रदेश के महान संत सिंगाजी महाराज का 02 मई, 2020 को ऐतिहासिक 501 वाँ जन्मोत्सव..।

कहते है सनातन संस्कृति में कोई ऐसा काल खंड नहीं रहा जब भारत भूमि ने कोई महापुरुष या कोई संत को जन्म नहीं दिया, या यु कहे की जब-जब अधर्म बड़ा तब-तब प्रकृति ने सनातन धर्म के प्रचार के लिया संत महात्माओं को जन्म दिया. ऐसे ही एक महान दार्शनिक संत का नाम है श्री संत सिंगाजी..!

संत सिंगाजी जीवन परिचय !

संत शिरोमणि सिंगाजी महाराज का जन्म मध्यप्रदेश के जिला- बड़वानी, तहसील- राजपुर के एक छोटे से ग्राम- खजूरी में सम्वत् 1576 में मिति वैषाख सुदी नवमी, दिन- बुधवार को पुष्प नक्षत्र में प्रातः 6:00 बजे हुआ था । पिता भीमाजी गवली और माता गऊरबाई की तीन संतान थी । बड़े भाई लिम्बाजी, स्वयं संत सिंगाजी और बहन का नाम कृष्णाबाई था । संत सिंगाजी महाराज का जसोदाबाई के साथ विवाह हुआ था । संत सिंगाजी महाराज के चार पुत्र थे ! जिनके नाम कालुबाबा , भोलुबाबा , सदूबाबा और दीपूबाबा थे। शास्त्रों के जानकारों का मत है की श्रृंगी ऋषि ने ही संत सिंगाजी के रूप में जन्म लिया था । सिंगाजी महराज की वाणियों से ही यह जानकारी मिलती है, की श्रृंगी ऋषी का चौथा अवतार है, लोक देवता संत सिंगाजी । वह चार अवतार श्रृंगी, सिंग, नरसिंग एवं सिंगाजी है ।

संत सिंगाजी को मालवा-निमाड़ का कबीर भी कहा जाता है ,इन्होने जीवन दर्शन को लेकर बेबाकी से अपनी बात को समाज के बिच रखा, उन्होंने आत्मा को ही परमात्मा कहा है ..

कहे सिंगा बाहर भीतर पूरी रहा, अंतर नहीं लगार
अपने नयन देखि लेवो, ना कछु वार नी पार !!

सिंगाजी ने अपने दार्शनिक पक्ष में कहा है की इंसान बाहरी दुनियां में घूमता रहता है, लेकिन अंतर्धयान नहीं करता, बाहर ईश्वर की खोज करता है…आगे सिंगाजी कहते है अपनी आँखों से अपने अंदर झाँख तेरा ईश्वर तुझ मैं ही है… !!

आपको बता दे आज भी निमाड़ में उनके जन्म स्थान व समाधि स्थल पर उनके पदचिह्नों की पूजा-अर्चना की जाती है । उनकी कई लीलाएं आज भी लोग महसूस करते हैं । वे नर्मदांचल की महान विभूति रहे, माँ नर्मदा का उनके आध्यत्मिक जीवन में खासा जुड़ाव रहा..सिंगाजी को पशुपालक पशु, दूध और घी अर्पण करते हैं। इन स्थानों पर घी की अखण्ड ज्योत भी प्रज्वलित रहती है । संत सिंगाजी के जन्म स्थान खजूरी की पहाडिय़ों पर आज भी सफेद निशान मौजूद हैं । कहा जाता है कि, यहां सिंगाजी अपने पशुओं को चराते थे और दूध दुहते थे। निमाड़-मालवा के पशु-पालक आज भी सिंगाजी को भगवान की तरह पूजते हैं। उनके पदचिन्ह के कई जगहों एवं गावों में मंदिर स्थापित हैं। जहां अखण्ड ज्योति प्रज्वलित और भजन-पूजन भी होता है। रोज सुबह- शाम मंदिरों में संत सिंगाजी की आरती की जाती है और भजन भी मिरदिंग (मृदंग) के साथ गाये जाते हैं। गुरु-गादी की परम्परानुसार इस पद पर आसीन गुरु का आज भी पूरा सम्मान किया जाता है।

संत सिंगाजी महाराज ने अपने बाल्यकाल में ही ग्राम- खजूरी छोड़ने का निर्णय लिया और वे खण्डवा जिले की हरसूद नगरी में पशुपालन करते हुए भामगढ़ की रियासत में नगर हरसूद में मुकाम किया । हरसूद नगर ही संत सिंगाजी महाराज की कर्मभूमि रही । युवावस्था तक उन्होंने पशुपालन का ही व्यवसाय किया। युवावस्था में वह हरसूद नगर से भामगढ़ तक डाक ले जाने का काम किया करते थे। भामगढ़ के राजा ने संत सिंगाजी महाराज की कार्यकुषलता, वफादारी व ईमानदारी से प्रभावित होकर वेतन 3 रुपया प्रतिमाह तक कर दिया था। संत सिंगाजी महाराज केवल डाकिया ही नहीं वह भामगढ़ के राजा के अहम सरदार भी थे। वे बड़ी लगन से राजा के यंहा कार्य किया करते थे । भामगढ़ में राजा लखमेसिंह के यंहा नोकरी करते हुए 15 वर्ष के कार्यकाल में बाबा ने राजा के ऐसे कई कार्य किये, जो राजा से होना भी असंभव थे । उसी कार्यकाल में बाबा ने अनेक लीलाएं भी प्रगट की ! पूरा मध्यप्रदेश एवं विशेष तौर पर पूरे निमाड़ की जनता आज भी बाबा के कई लीलाओं से मंत्रमुग्ध होती है और बाबा के प्रति उनकी आस्था भी बढ़ती है। आज वर्तमान समय में भी बाबा के नाम से ही अनगिनत लोगों के अनगिनत कार्य सफल हुए हैं और आज भी जो सच्ची श्रद्धा से उन्हें याद करता है, उनके लिए बाबा अप्रत्यक्ष रूप से हजर रहते हैं ।

ऐसे महान संत सिंगाजी अपनी मात्र- 40 वर्ष की आयु में संवत- 1616 में श्रावण सुदी नवमी पर जिला- खंडवा, तहसील- हरसूद, ग्राम-पिपल्या में अपने गुरु आदि शंकराचार्य परंपरा के ध्वज वाहक मनरंग गिरी के आदेश का अनुसरण करते हुए देह त्यागकर समाधिस्थ हुए ! तब से वे ही ग्राम पिपल्या आजतक संत सिंगाजी के नाम से ही पूरे देश मे प्रसिद्घ है और आज भी भारत में मध्यप्रदेश के निमाड़ के एक आध्यात्मिक महान संत और पशु रक्षक देव के रूप में पूजे जाते हैं ।

संत सिंगाजी जन्मस्थली व समाधिस्थली पर शरद पूर्णिमा के दिन लगनेवाले मेले में देश के कोने- कोने से उनके भक्त बाबा के दर्शन करने पहुंचते हैं और उसी शरद पूर्णिमा पर बाबा की समाधि पर जो मुख्य निशान चढ़ते है, भक्त उनके दर्शनों का लाभ भी लेते है ! पूर्वी-पश्चिमी निमाड़ समेत महाराष्ट्र- मध्यप्रदेश की संस्कृति का अनूठा संगम इन मेलों में देखने को मिलता है । निमाड़ के प्रसिद्ध संत सिंगाजी का मेला शरद पूर्णिमा से शुरू हो जाता है । इस पूरे आयोजन के दौरान लाखो श्रद्धालु सिंगाजी महाराज की समाधिस्थल पर मत्था टेकने आते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *