श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में मातृशक्ति द्वारा दिया गया योगदान भी अतुलनीय था..
कंकर- कंकर शंकर इसका, प्राण- प्राण में गीता है
जीवन की धड़कन रामायण, पग पग पर बनी पुनीता है
यदि राम नहीं हैं श्वासों में तो जीवन का घट रीता है
नर नाहर श्री पुरुषोत्तम का हम मंदिर भव्य बनाएंगे
सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे..
राम मंदिर आंदोलन के नायक अशोक सिंघल जी द्वारा लिया गया यह संकल्प आज पूर्णता की और अग्रसर है। 500 से अधिक वर्षों के हमारे पूर्वजों के निस्वार्थ तप, साधु-संतों, हजारों कार सेवकों के संघर्षों और बलिदानों के पश्चात वह शुभ दिन आया है जब राममंदिर निर्माण पर लगा ग्रहण हट चुका है और सूर्यदेव अपनी पूर्ण तेजस्विता के साथ रघुवंश के नायक श्रीराम की अगवानी को आतुर हैं।विश्व का प्रत्येक सनातनी पलक पांवड़े बिछाए,जन्मभूमि के प्रति अगाध समर्पण का आदर्श प्रस्तुत करने वाले प्रभु श्रीराम के अभिनंदन हेतु तत्पर खड़ा है!अयोध्या का गौरव पुनः लौट रहा है!
जिन महापुरुषों और महानायिकाओं का ह्रदय,संस्कार और विरोचित भाव से परिपूर्ण होता है उनका चरित्र समाज में आदर्श स्थापित करता है।ऐसे व्यक्तित्व सदैव अपने उद्देश्य के लिए,आत्मविश्वासी,अडिग,कर्तव्य परायण और धर्मनिष्ठ होते हैं।ऐसी ही कुछ आदर्श मातृशक्तियां उदाहरण हैं,जिन्होंने धर्म की रक्षा और स्थापना के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की थी।राम जन्मभूमि आंदोलन के संघर्ष में अगर देश की मातृशक्ति की भूमिका को न सराहा गया तो सनातन की सबसे बड़ी सफलता का बखान अधूरा रह जायेगा।भारत की परंपरा में मातृ शक्ति का स्थान सदैव सर्वोपरि रहा है।इतिहास साक्षी है,देव और असुर संग्राम हो,स्वतंत्रता संग्राम हो या सनातन की रक्षा हेतु धर्म संग्राम किसी भी संग्राम में जितने शौर्य,पराक्रम और निष्ठा के साथ पुरुषों ने भागीदारी की,उतने ही समानुपात में मातृशक्ति ने भी अपना योगदान दिया है।
राम जन्मभूमि आंदोलन में हजारों महिला कारसेवकों का योगदान भी शामिल है जो देश के विभिन्न भागों से, प्राण हथेली पर लेकर अयोध्या पहुंची थी।इस आंदोलन की अलख जगाने में महती भूमिका निभाई थी, साध्वी ऋतंभरा, साध्वी उमा भारती और राजमाता सिंधिया ने,यह तीनों ही राममंदिर आंदोलन की अग्रणी महिला नेत्री थीं।इन तीनों महिला नेत्रियों ने राष्ट्र सेविका समिति,दुर्गा वाहिनी और बीजेपी महिला मोर्चा की बहनों को साथ लेकर राम मंदिर आंदोलन में सहयोग हेतु महिलाओं को संगठित करने का कार्य किया।राम मंदिर के लिए मातृशक्ति की आस्था और समर्थन से आंदोलनकारियों की शक्ति दुगनी हो गई थी। लगभग 55 हज़ार से अधिक महिला कारसेवक राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल थी जो किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं रही। बाबरी विध्वंस के दंगों में लिबरहान आयोग ने जिन 68 लोगों को साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काने का दोषी माना था,उसमें विजयाराजे सिंधिया, साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती का भी नाम था।
साध्वी ऋतम्भरा
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सनातन का एक मजबूत स्तंभ जिस पर दिग्विजय सरकार ने बहुत जुल्म ढाए थे।माता ऋतंभरा के ओजस्वी भाषण,राममंदिर आंदोलन को तेज धार दे रहे थे। जिस स्थान पर साध्वी भाषण देती थीं,वहां हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती, उनके मुख से निकला हर शब्द,रामभक्तों में ऊर्जा का संचार कर रहा था, देश के कोने कोने में उनके भाषणों की गूंज सुनाई दे रही थी।इतिहासकार तनिका सरकार अपनी किताब ‘हिंदू वाइफ़, हिंदू नेशन’ में लिखती हैं कि,“अयोध्या के पंडितों ने मंदिरों में तय पूजा-पाठ को स्थगित कर इनके ऑडियो कैसेट के भाषणों को बजाना शुरू कर दिया था।”जो बीज इन्होंने जन जन के मन में यह कहकर बोया था कि,
रामजी करा रहे हैं,रामजी का काम है
रामजी के काम में,काहे का विराम है
जिंदा रहे तो, जग जीवन ललाम है
मर भी गए तो रहने को स्वर्गधाम है
हमको तो काम बस रामजी के काम से
रामजी का मंदिर बनेगा धूम धाम से..,
यही बीज अंकुरित होकर अब पूरे विश्व को आस्था के एक सूत्र में पिरोकर सुगंध बिखेर रहा है!बहुत यातनाएं और पीड़ा थी इस सफलता के पीछे।दिग्गी राजा ने षड्यंत्र पूर्वक उन्हे गिरफ्तार करवाया था।उन्हे अस्थमा की समस्या थी और अस्थमा के रोगी को तुरंत उपचार चाहिए होता है जो उन्हें नहीं दिया गया।उन्हे पुलिस से बचने के लिए अपने केश भी कटवाने पड़े यहां तक की मल मूत्र से भरी बैरकों में बंदी बनाकर रखा गया। ऐसा व्यवहार किसी आतंकी के साथ भी नहीं किया जाता जो एक साध्वी के साथ किया गया परंतु माता ऋतंभरा ने सबकुछ सहा,अपने राम की वापसी के लिए।
साध्वी उमा भारती
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सबसे कम उम्र की युवा साध्वी, उमा भारती एक सजग,सशक्त और महताकांक्षी तेज तर्रार महिला थीं। उनकी गेरुए कपड़े पहने,केश विहीन महिला की छवि उतनी ही प्रभावी थी जितने उनके विचार थे।राम जन्मभूमि की सख्त सुरक्षा में प्रवेश करने के लिए उन्होंने अपना सिर मुंडवा लिया था और पुलिस को चकमा देने में सफल हुई थी।साध्वी उमा भारती ने नवंबर 1992 को अमरकंटक में दीक्षा ली थी और दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस हुआ,वह अविलंब इस आंदोलन में सक्रिय हो गई।साध्वी ऋतम्भरा की भांति ही वह भी अपनी ओज युक्त वाणी से कार सेवकों में उत्साह और साहस का संचार कर रही थीं।राम के लिए उन्हें निज प्राणों का त्याग भी मंजूर था।उनका कहना था कि, मंदिर बनाने के लिए अगर ज़रूरत पड़ी तो हम अपनी “हड्डियों को ईंट बना देंगे और लहू को गारा।”
पत्रकार बताते हैं कि उमा भारती ने ही कारसेवकों को ” राम नाम सत्य है,बाबरी मस्जिद ध्वस्त है”,, “एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो” का नारा दिया था।वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा जो बाबरी विध्वंस के समय रिपोर्टिंग कर रहे थे उन्होंने अपनी किताब “युद्ध में अयोध्या” में यह लिखा है कि ढांचा गिराए जाने के बाद उमा भारती ने मंच से कहा था,”अभी काम पूरा नहीं हुआ है,आप तब तक परिसर ना छोड़ें जब तक पूरा इलाका समतल ना हो जाए।”जब मां भारती की ऐसी बहादुर पुत्रियां रण में हों तब असंभव भी संभव हो जाता है!उमा भारती भी उन्ही बहादुर पुत्रियों का प्रतिनिधित्व कर रहीं थी।
राजमाता विजया राजे सिंधिया
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लोकतंत्र की रक्षा से लेकर राम मंदिर आंदोलन तक, राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने सदैव अग्रणी भूमिका निभाई।राम मंदिर आंदोलन में भी वह प्रणेता की भूमिका में थी और आंदोलन का संयमित चेहरा मानी जाती थीं।राजमाता ही सर्वप्रथम पार्टी की राष्ट्रीय कार्य परिषद में, राम मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव लेकर आईं थीं।उसके बाद से ही वह प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के आंदोलन में सहयोगी रही।उन्होंने सदैव भाजपा की नीतियों का समर्थन किया।आडवाणी जी ने जब 1989 में रथयात्रा निकाली थी तब उन्हे राजमाता सिंधिया का उन्हें पूर्ण सहयोग मिला था।अपने सिद्धांत और विचारधारा के प्रति उनका जो समर्पण था उसे उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।1993 में छपी रिपोर्ट, ‘द कॉन्सपिरेसी ऑफ़ द संघ कम्बाइन’ के मुताबिक नवंबर 1992 में विजयाराजे सिंधिया ने पटना में कहा था, “बाबरी मस्जिद को तोड़ा जाना होगा” और विध्वंस के दिन उन्होंने अयोध्या में मंच से कारसेवकों को “सर्वश्रेष्ठ बलिदान” के लिए सज्ज रहने को भी कहा था.
इन तीन मुख्य नेत्रियों के अलावा भी और महिलाएं थी जिनका गिलहरी योगदान भी राम मंदिर आंदोलन में भुलाया नहीं जा सकता।जब राम मंदिर आंदोलन उग्र हुआ तब मातृ शक्ति को सक्रिय करने के लिए संगठन की आवश्यकता महसूस हुई और दुर्गा वाहिनी का गठन किया गया जिसका उद्देश्य था घर- घर जाकर महिलाओं के मन में राम काज,और राष्ट्र भक्ति का भाव जागृत करना।उस समय महिलाओं को ऐसे आंदोलनों में सक्रिय करना दुष्कर कार्य था परंतु मातृशक्ति द्वारा किया गया आह्वान विफल नहीं गया।और भी न जाने कितनी गुमनाम नायिकाएं हैं राम जन्मभूमि आंदोलन की, जिनके संघर्ष और त्याग से हम अनजान हैं।जिन बहनों के पति, पिता,भाई और संतान राम जन्मभूमि के लिए न्योछावर हो गए उनके त्याग,तपस्या और श्रद्धा को भी हमारा शत शत नमन।
शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में भी उल्लेख मिलता है कि जब देवताओं से आसुरी शक्तियां नियंत्रण हीन हो जाती थी तब वह भी देवी सहयोग से उस पर विजय प्राप्त करते थे, ठीक उसी प्रकार राम जन्मभूमि आंदोलन में भी भारत की धर्मनिध्ठ मातृशक्ति ने अतुलनीय योगदान दिया था।
जय सियाराम
– राजेश्वरी भट्ट बुरहानपुर