इंदौर में विभिन्न क्षेत्रो की प्रतिष्ठित महिलाओ का “स्वराज और मैं” परिसंवाद हुआ

दामिनी (Devi Ahilya Mahila Initiative for National Integrity) ने नवरात्रि में एक परिसंवाद स्‍वराज और मैं का आयोजन दिनांक 27 सितंबर 2022, मंगलवार को G.S.I.T.S. के गोल्‍डन जुबली हॉल में किया। मुख्‍य रूप से विभिन्‍न क्षेत्रों की प्रतिष्‍ठीत महिलाओं का ये आयोजन था।
इस आयोजन में शिक्षाविद की भूमिका में पुनिता नेहरू ने अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुये कहा कि पहली शिक्षिका मां होती है। हमारी जिम्मेदारी है की हम किताबी शिक्षा के साथ नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा की ओर भी ध्यान दें। समाज का चरित्र गढ़ना शिक्षक का काम है। देशप्रेम का भाव भी हम सभी में जाग्रत हो। मां, मातृभूमि और मातृभाषा के बारे में सभी को जागरूक करने की जिम्मेदारी शिक्षक की कुछ जायदा है। क्योंकि समाज को गढ़ने का काम उन्ही के हाथ हैं।
मनोचिकित्‍सक के रूप में डॉ. रेखा आर्य ने अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुये कहा की वर्तमान में सामाजिक व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए जीवन जिएंगे तो तनाव कम होगा। महिलाओं को सकारात्मक जीवन की दिशा में बढ़ना चाहिए। कामकाजी महिलाओं को पारिवारिक तनाव और चुनौतियों का सामना करते हुए जीवन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। मेरा मानना है की मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी समाज में जागरण की आवश्यकता है।
उद्योगपति डॉ. प्रियंका मोक्षमार ने अपने विचार रखते हुये कहा की महिला उद्यमिता कोई नया शब्द नहीं है। हमारी दादी – नानी भी उद्यमी ही थी, पूरा घर चलाना उन्हीं के हाथ था, वो भी स्वावलंबी ही थीं। अब एक दौर के बाद हमें अपनी सीमाएं बढ़ाने की जरूरत है। कामकाजी बहनें सबल, सक्षम, समर्थ हैं, हमें स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर समझना होगा। हम अपने परिवार के सहयोग के बिना सफल नही हो सकते। कोरोना काल की विषम परिस्थितियों में भी मातृशक्ति ने संपूर्ण परिवार की देखभाल करते हुए विपरीत कालखण्ड में भी अपने संयम व साहस से स्थितियों का सामना किया ।
डॉ.अनुराधा शर्मा ने पत्रकार के रूप में अपने विचार रखते हुये कहा की पत्रकार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वराज में थी और आज भी प्रासंगिक है। समाचार पत्रों में विज्ञापन नहीं देने का संकल्प स्वराज का है, जिसका स्मरण आज भी प्रासंगिक है। तिलक जी हो या गांधी जी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण है। ये हमारा मौलिक अधिकार है। किंतु देश की बात आए तो अभिवयक्ति की स्वतंत्रता का मतलब समझने की जरूरत है।
सुरूचि मल्‍होत्रा ने गृहणी के रूप में अपने विचार रखते हुये कहा की समाज में ग्रहणी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। आजादी कुछ जिम्मेदारियों के साथ आती है, लेकिन उच्चश्रृंखलता में महीन अंतर है। अपने परिवार में संस्कारों का बीजारोपण और उसका रक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है। बच्चे वही सीखते हैं जो वो देखते हैं। तो ये हमारी जिम्मेदारी है की हम समाज के लिए संस्कारित पीढ़ी गढ़ने का काम करें।
अंत में कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कर रही पूर्व न्‍यायाधीश सुचित्रा दुबे ने अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि हमें जीवन में गलत के विरुद्ध आवाज उठाना आना चाहिए। जैसे जटायू ने आवाज उठाई तो मोक्ष पाया और भीष्म पितामह ने आवाज नहीं उठाई तो मृत्यु शैय्या पाई। हमें मैं से हम की ओर जाकर समाज में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना पड़ेगी और दामिनी इसीलिए है। इस प्रकार से वर्तमान समय में महिलाओं की सशक्‍त भूमिका संस्‍कार, संस्‍कृति, परंपरा के संवर्धन के साथ ही स्‍वयं के लिए भी है, ये परिसंवाद के मं‍थन के रूप में निष्‍कर्ष निकला।
कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता माला सिंह ठाकुर ने कहा की दामिनी विभिन्न सामाजिक, व्यवसायिक, गैर स्वशासी महिलाओं का सामूहिक मंच है। जो मां अहिल्या की नगरी में विधिक सहायता, काउंसलिंग, विभिन्न सामाजिक विषयों पर अध्ययन और  समय आने पर विभिन्न महिला संबंधी विषयों पर आवाज उठाने का काम करेगा। महिला सुरक्षा, स्वावलंबन, समाज में संस्कार के बीजारोपण के साथ सकारात्मक दिशा में काम करने के उद्देश्य से मंच बना है। कार्यक्रम का संचालन सहोदय कि अध्‍यक्ष कंचन तारे और अधिवक्ता अर्चना खेर ने किया। अतिथि परिचय एडवोकेट स्‍वाति उखाले ने दिया। अतिथियों का सम्‍मान कलाकार हिना नीमा, लायनेस अंजना माहेश्वरी, प्रोफेसर संगीता भारूका, एडवोकेट सीमा शर्मा, पत्रकार सोनाली यादव ने किया। आभार सामाजिक कार्यकर्ता चारु गर्ग ने व्‍यक्‍त किया।
माँ अहिल्‍या की नगरी में स्‍त्री सम्‍मान, स्‍त्री स्‍वालम्‍बन और स्‍त्री के विचारों को आयाम देने वाली ‘’दामिनी’’ विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाली महिलाओं का मंच है। जो मां अहिल्या को प्रेरणा मानकर सामाजिक सरोकार के साथ कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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