उदयनिधि के उत्तर-दक्षिण विभेद रोग का उपचार है सनातन धर्म

गत दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के पुत्र उदयनिधि ने एक विवादित बयान दिया जिसमें उन्होंने सनातन की तुलना डेंगू – मलेरिया के मच्छर से की। उन्होंने आगे कहा कि सनातन धर्म का मात्र विरोध नहीं करना चाहिए अपितु इसे समाप्त कर देना चाहिए। इस बयान से सम्पूर्ण ‘सनातन राष्ट्र’ भारत में आक्रोश है। लोग स्टालिन पुत्र के इस घृणित वक्तव्य की भर्त्सना कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह बयान ईसाई-इस्लामी गिरोह एवं भारत का विखंडन करने वाली पिशाची शक्तियों को प्रसन्न करने के लिए दिया गया है। समस्त राष्ट्र इस कुकृत्य को राष्ट्रद्रोह के रूप में देख रहा है एवं इसे संविधान के विरुद्ध बता रहा है।

किन्तु यदि हम स्टालिन परिवार की राजनीति की नीव देखें या उनकी पार्टी की विचारधारा देखें तो ज्ञात होता है कि यह परिवार भारत की संस्कृति से कुंठित है तथा भारतीयता को अपशब्द कहकर भारत को टुकड़े करने के स्वप्न देखता है एवं राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ पाने के लिए भारतियों का रक्तपीवन भी कर सकता है। हम कह सकते हैं कि भारत में उत्तर-दक्षिण में भेद उत्पन्न करने का श्रेय भी इसी स्टालिन परिवार एवं उनकी डीएमके (द्रमुक) पार्टी को देना चाहिए। करूणानिधि, जिन्होंने हिंदी भाषा का विरोध करके अपनी राजनीति की नीव रखी, स्टालिन, जिन्होंने कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनाने के बाद तमिलनाडु को एक पृथक राष्ट्र बनाने का भारत विखंडन की मानसिकता से ओत-प्रोत बयान दिया और अब उदायानिधी स्टालिन, जिन्होंने सनातन को समाप्त करने की मंशा व्यक्त की, हम देख सकते हैं की यह परिवार पीढ़ी डर पीढ़ी विष उगलने का कार्य कर रहा है। उल्लेखनीय है कि 23 जनवरी 1978 को राज्यसभा में द्रमुक सांसद के. लक्ष्मण ने मांग की थी कि भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट न रखा जाए क्योंकि उनकी पार्टी के अनुसार यह नाम विदेशी है। इस परिवार एवं इनकी पार्टी के द्वारा आर्य-द्रविड़ का काल्पनिक भेद रचने के लिए निरंतर संस्कृत का भी विरोध किया जाता रहा है किन्तु यह अपने अनुयायियों को यह नहीं बताते कि ‘द्रविड़’ स्वयं एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ तीनों ओर से जल से घिरा हुआ (त्रिविद) होता है। इन उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि दक्षिण भारत में यह परिवार विष वमन कर रहे हैं जो समस्त तमिलनाडु राज्य के लिए हानिकारक है। धिक्कार है उस कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों पर जिन्होंने सत्ता की लालसा के कारण इस राष्ट्रद्रोही पार्टी से गठबंधन किया हुआ है एवं इसे i.n.d.i.a. नामक राजनीतिक गिरोह में शामिल भी किया है, जो भारत को हड़पने का स्वप्न देख रहे हैं।

अब बात करते हैं कि क्या वास्तव में सनातन को मच्छर की तरह मसलना संभव है ! तो इसके लिए हमें इतिहास देखना चाहिए . पूर्व में सनातन अर्थात इस भारत राष्ट्र के आत्मबोध को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयास किए गए। यवन, शक, कुषाण, हूण, मुसलमान, मंगोल, ईसाई लोगों के द्वारा सहस्रों वर्षों से इस धर्म को समाप्त करने का प्रयास किया गया लेकिन हम देख सकते हैं कि इस राष्ट्र के लिए, सनातन के लिए हमारे धर्मवीरों ने संघर्ष किया जिसके कारण आज भी भगवा ध्वज स्वच्छंदता से आकाश में लहलहा रहा है। भारत को समाप्त करने के लिए जो टिड्डी दल भारत पर आक्रमण किए उन्होंने बर्बरता की कोई सीमा नहीं छोड़ी थी। यदि हूणों का सन्दर्भ लिया जाए तो वह आक्रान्ता तो अपने शत्रु की खोपड़ी फोड़कर उसमें रक्त पीते थे। मंगोल, मुसलमान, मुग़ल आक्रान्ता अपने बलात्कारों एवं नरमुंडों की मीनारें बनवाने के लिए कुख्यात थे, अंग्रेज तो महिलाओं के स्तन काटने में भी पीछे नहीं रहे, लेकिन इतना त्राहिमाम देखने एवं यातनाएं झेलने के पश्चात भी आज उस सनातन को कोई भी मच्छर की तरह मसल नहीं पाया जिस प्रकार यह “अस्तनिधि स्टालिन” कह रहे हैं। इतना ही नहीं जिन आक्रान्ताओं के भारत पर आक्रमण किया स्वयं उनके वंशज ही सनातन हिन्दू वैदिक धर्म के अनुयायी बन गए। कुषाण सम्राट कनिष्क के पौत्र वासुदेव एवं हूणों के अंतिम राजा मिहिरगुल के नाम से ही ज्ञात हो जाता है कि उन्होंने भारत की संस्कृति में स्वयं को समर्पित कर दिया था एवं सनातन संस्कृति का अनुसरण भी करने लगे थे। उसी प्रकार इस्लामी और इसाई षड्यंत्रकारी भी सहस्रों वर्षों से साम-दाम-दंड-भेद आदि का दुरूपयोग करके सनातन को समाप्त करना चाह रहे हैं किन्तु भारत राष्ट्र की रक्षा के लिए एकत्रित हुए सनातन हिन्दू समाज का उन्हें ऐसा प्रतिकार मिलने लगा है कि वह भी अब कुंठित होने लगे हैं तथा अपने उद्देश्य से भटकने लगे हैं।

स्वयं ईश्वर जिस धर्म में अवतरित हुए हैं उसे समाप्त करना इतना सरल नहीं है . क्योंकि जब-जब इस विशिष्ट धर्म की क्षति होगी तो ईश्वर एक अवतार लेकर इस राष्ट्र और धर्म की रक्षा करते हैं। लेकिन उससे भी विशेष बात यह है कि यह भारत-भूमि ऐसे महापुरुषों का सिंचन भी करती है जो इस मातृभूमि-पुण्यभूमि-पितृभूमि-परंभूमि मानकर इसकी रक्षा के लिए खड़े होते हैं और अपने प्राणों की चिंता ना करते हुए इस राष्ट्र के लिए आहूत हो जाते हैं और अपना नाम इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों से अंकित करवाते है। यह भूमि अपनी रक्षार्थ एक ऐसी आध्यात्मिक चेतना का संचार करती है जिससे अनुभूत होकर प्रत्येक धर्मनिष्ठ अपना स्वाभिमानी मस्तक ऊँचा कर अपनी बलिष्ठ भुजाओं और मजबूत सौष्ठव में उर्जा भर राष्ट्र रक्षा के लिए तत्पर हो जाता है।

अतः यह सनातन धर्म एवं भारत राष्ट्र कभी मसला नहीं जा सकता, क्योंकि जब शक आते हैं तब विक्रमादित्य भी खड़े होते हैं, जब कुषाण आते हैं तब समुद्रगुप्त भी खड़े होते हैं, जब हूण आते हैं तब यशोधर्मन भी खड़े होते हैं, जब अकबर आता है तब महाराणा प्रताप भी खड़े होते हैं, और जब औरंगजेब आता है तब शिवाजी भी खड़े होते हैं, अपने राष्ट्र के लिए, अपने धर्म के लिए, अपने स्व के लिए

अथर्व पंवार, युवा स्तंभकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *