भगवान बिरसा मुंडा के बलिदान दिवस पर शत शत नमन…

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19 वी सदी के अंत में छोटा नागपुर के पहाड़ी इलाकों में क्रांतिकारी गूंज उठी थी। सिहासन की तरह पूर्वी भारत में उठे इस आव्हान ने ब्रिटिश सरकार की नींद हराम कर दी थी। सरकार थर्रा उठी थी। बिरसा के नाम के साथ भगवान भले ही जुड़ गया हो लेकिन उनका जन्म रहन-सहन व्यवहार मानवीय था। अपने अद्भुत सूर्य व पराक्रम के कारण लोग उन्हें भगवान मानने लगे। छोटा नागपुर की भाषा में मुंडा का अर्थ संपन्न व्यक्ति बिहार की समृद्ध भूमि ने उन्हें संपन्नता प्रदान की थी।
रांची से 45 किलोमीटर दूर एक गांव में किसान सुगना मुंडा के घर 5 नवंबर 1870 में एक पुत्र हुआ। बृहस्पतिवार के दिन पैदा होने के कारण बालक का नाम बिरसा पड़ा। बचपन में उसका मन पढ़ाई में नहीं बल्कि नई नई उक्तियों में रमा करता था। जब वह 16 वर्ष के थे उन्हें चाईबासा के G.E.L. मिडिल स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया। बिरसा वहां अंग्रेजों की गुलामी से काफी विचलित हो उठे थे। 4 वर्ष उन्होंने बड़े मुश्किल से गुजारे थे एक दिन उसने अपने स्कूल के सहपाठियों को कंधों पर हल रखकर खेती करते देखा तो उसका किशोर मन विद्रोह कर बैठा। वह दौड़कर सहपाठियों के समीप पहुंचा उनके कंधों पर उंगलियों से छूकर देखा तो फफोले पड़े हुए थे बिरसा की आत्मा धधक उठी और वह काबू से बाहर हो गया। उसने हल उठाया और पास के तालाब में डाला आया। अंग्रेज हेड मास्टर को जब इस बात का पता चला तो वह नाराज हुआ। इसके बाद बिरसा ने पढ़ाई बंद कर दी। गांव आपका जमीदार ठाकुर जगमोहन के मुंशी आनंद पांडे के यहां 4 वर्षों तक काम करने के दौरान उसका हीरी नामक युवती से विवाह हुआ। किंतु कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।

1894 में सारे देश में अकाल पड़ गया था। मुट्ठी भर अनाज के लिए मोहताज छोटा नागपुर के रहवासी बेर और जामुन के पेड़ों की छाल उबालकर पी लिया करते थे। घरों में अंग्रेज सिपाही घुसकर औरतों के गहने छीनते और बलात्कार करते थे। बिरसा ने यह सब देखा उसने युवाओं को ललकारा और कुल्हाड़ी से एक बार से ही हेड कांस्टेबल युसूफ खान का सिर धड़ से अलग कर डाला। कॉन्स्टेबल गुलाब सिंह ने गोली चलानी चाहि तो तीर के विष ने उसका काम तमाम कर दिया। बाकी पुलिस वाले अपनी जान बचाकर भाग गए। छोटा नागपुर के इतिहास में गोरे आतंक में हिंसक विरोध की यह अभूतपूर्व घटना थी। उस समय रांची के डिप्टी कमिश्नर एचसी स्ट्रीट फील्ड थे। उन्होंने बिरसा मुंडा पर वारंट जारी कर दिया 26 अगस्त 1895 को बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने पर उसकी देश प्रेम की भावना और बढ़ गई। वह जेल से सीधे चलकद पहुंचा और एक सेवादल की स्थापना हुई। देखते देखते 5000 आदिवासी सेवा दल में शामिल हो गए हैं। बिरसा ने चलकद में स्वराज्य का उद्घोष किया और सिंह गर्जना की अब वह दिन दूर नहीं जब पादरी और अंग्रेज हमारे चरणों पर गिरकर अपने प्राणों की भीख मांगेंगे। आओ सब एकजुट हो जाओ अब हमारा राज्य आने वाला है इसी के साथ बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी। उसने वनवासियों को फसल ना बोने को कहा 11 अगस्त 1897 के दिन बिरसा मुंडा 400 आदिवासियों के साथ खूंटी पहुंचा। अंग्रेजी सरकार के खेमे में दशरथ तो थी ही उसने भरपूर सुरक्षा का इंतजाम कर रखा था। गोली चलना शुरू हुई तो तीरों ने 1 मिनट में ही थाने को मरघट बना दिया।

रांची के डिप्टी कमिश्नर सर ए.फॉर बेस को आदेश दिया गया कि वह बिरसा मुंडा को जीवित या मुर्दा पकड़े और इस क्रांति का नामोनिशान मिटा दें। उधर घने जंगल के आगोश में बिरसा मुंडा के आदिवासी साथियों का जंगल राज कायम हो चुका था। बंदगांव तोरपा जशपुर और रायपुर आदि के हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बिरसा का राज कायम था। बिरसा मुंडा से वह राजा बिरसा और धीरे-धीरे बिरसा भगवान बन चुका था। 24 दिसंबर 1899 का दिन स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में विशिष्टता रखता है।

क्रांति का परचम लहराते हुए बिरसा के नेतृत्व में आदिवासियों ने मुख्यालय रांची पर धावा बोला हटीया, डोरंडा आदि के अनेक स्थानों पर पुलिस का इंतज़ाम था। पर बिरसा के सारे अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़ते हुए रांची पहुंच ही गए। 25 दिसंबर 1899 की बिरसा ने सेना की एक टुकड़ी लेकर सर्वादाग मिशन होते हुए चढ़ाई कर दी मिशन का परिसर जला दिया गया। दूसरी बार बिरसा ने अपनी सेना को कई टुकड़ों में बांटकर पुलिस थानों पर हमले करने का आदेश दिया। बिरसा ने स्वयं 300 जवानों की टोली लेकर खूंटी थाने पर आक्रमण कर दिया थाना ढहा दिया गया। 12 कांस्टेबल और एक अंग्रेज इंचार्ज मारे गए अन्य दशक से ही छिप गए अंग्रेजों के लिए बिरसा आफत बन चुका था। हारकर अंग्रेजी सरकार ने चिर परिचित कूटनीति का प्रयोग किया बिरसा मुंडा और उसके साथियों की जानकारी बताने वाले को ₹500 इनाम देने की घोषणा की गई। लेकिन किसी ने भी जुबान नहीं खोली।

इसके बाद बिरसा और उसके आंदोलन को कुचलने के लिए पूरी अंग्रेज फ़ौज खूँटी और डूम्बारी की पहाड़ियों की तरफ निकल पड़ी पर पुलिस को सफलता नहीं मिली। बिरसा हाथ नहीं लगा तो गोरी फौज के 200 सिपाहियों की टुकड़ी ने डूम्बारी गांव में सामूहिक हत्या और बलात्कार का तांडव शुरू कर दिया। युवा भाग गए लेकिन औरतें और बच्चे मारे गए गोलीबारी में निर्दोष लोगों का खून बहा।

एक दिन शाम को बिरसा अपने बच्चों की किलकारी में खोया हुआ था तभी किसी ने इनाम के लालच में पुलिस को खबर दे दी। पुलिस ने पूरे दल के साथ सिंह भूमि जिले के जोम्कोपाई में घेराबंदी कर दी। सामूहिक हत्या की आशंका से बिरसा मुंडा अपने बच्चे को पत्नी के हवाले कर हाथ में कुल्हाड़ी उठाएं सामने आ गया। 3 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर रांची जेल ले जाया गया।

उसके साथ आए हजारों आदिवासियों को जेल के बाहर बैठे रहे बिरसा ने उनसे कहा वह लौट जाएं और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखें। बाद में बिरसा को चुपके से हजारीबाग जेल भेजा गया जहां हाथ पैरों में बेड़ियां डाल कर डटकर काम लिया गया तथा भोजन में जहरीला पदार्थ मिलाकर दिया गया। जिससे शरीर कंकाल हो गया 5 जून 1900 को बिरसा को हैजा हो गया। 9 जून 1900 की सुबह 9:00 बजे वीर बिरसा मुंडा शहीद हो गए। उनकी मौत की सूचना उनके परिवार को बहुत दिनों बाद दी गई। अंग्रेजों ने खबर फैला दी कि वह हैजे से मर गए। 30 वर्ष की आयु में वह शहीद हो गए।

– श्री राजेंद्र जी श्रीवास्तव

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