अवंतिका अर्थात वर्तमान उज्जैन में स्थित ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है । महाकालेश्वर का अर्थ है, काल या समय के अधिपति । उज्जैन में भगवान शंकर का यह नाम सर्वथा उपयुक्त ही है।
पृथ्वी के गोल पर उज्जैन कर्क रेखा और लंबवत देशांतर रेखा के संयोग स्थल पर स्थित है। इस संयोग से उज्जैन की स्थिति इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है की यहां से वैश्विक समय का निर्धारण किया जा सकता है।
प्राचीन भारत में उज्जैन से की गई काल गणना को ही श्रद्धा पूर्वक माना जाता था। विश्व के अन्यान्य क्षेत्रों में भी उज्जैन के पंचांग की मान्यता थी । किंतु सन 1984 में ग्रीनविच को प्राइम टाइम मेरिडियन अर्थात प्रधान मध्यान्ह रेखा पर स्थित, घोषित कर दिया गया । अर्थात यह मान लिया गया की ग्रीनविच शून्य अंश देशांतर पर स्थित है। अतः इसी स्थान से विश्व के टाइम जोन निर्धारित किए जाएंगे । इसका आधार कोई वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं था, वरन यह एक विशुद्ध राजनीतिक घटना थी। इसके पूर्व जर्मनी ,फ्रांस और डेनमार्क ने भी स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए अपने अपने जीरो मानक अर्थात प्राइम टाइम मेरिडियन बना लिए थे।
किंतु इन सब में ब्रिटेन का दावा सबसे मजबूत सिद्ध हुआ। विश्व में ब्रिटेन के कई उपनिवेश थे । ब्रिटेन का व्यापार भी विश्व के कई देशों में विस्तार ले चुका था । इन सभी जगहों पर उसका अपना समय हो,यही ब्रिटेन के लिए सुविधाजनक था। अमेरिका पहले ही ग्रीनविच को मानक मान चुका था, अतः 1884 में शेष विश्व ने भी ग्रीनविच को ही मान्यता दे दी।
प्राकृतिक रूप से यह निर्धारण अनुपयुक्त ही था । सामान्य बुद्धि से भी विचार किया जाए तो तिथि का परिवर्तन सूर्योदय से होना चाहिए , किंतु ग्रीनविच को जीरो मानने की स्थिति में ऐसा नहीं किया जा सकता था। यह वैज्ञानिक रूप से प्राकृतिक कालगणना के साथ साम्य में नहीं था। इसलिए तिथि परिवर्तन का समय रात्रि बारह बजे कर दिया गया ।अब पूरे विश्व में तिथि परिवर्तन रात्रि बारह बजे माना जाने लगा, जिस समय कोई भी उल्लेखनीय प्राकृतिक परिवर्तन नहीं होता है।
इसके विपरीत, ग्रीनविच में जब रात्रि के बारह बजते हैं , ठीक उसी समय उज्जैन में प्रातः छः बज कर तीस मिनट का समय हो रहा होता है । यदि उज्जैन को ही प्रधान समय मानक मान लिया जाय, तो तिथि परिवर्तन सूर्योदय से ही होगा जो पूर्णतः विज्ञान सम्मत है।
ऐसा कहने के कई अन्य आधार भी हैं । उज्जैन को ही मानक स्थान मान कर भारत में हजारों वर्ष पूर्व भी, सटीक खगोलीय गणनाएं कर ली गई थीं । हमे इसा पूर्व चौथी शताब्दी अर्थात दो हजार तीन सौ वर्ष पूर्व का एक ग्रंथ सूर्य सिद्धांत प्राप्त होता है, जिसमे उज्जैन को ही केंद्र मान कर कई भौगोलिक गणनाओं का उल्लेख है। इसमें एक प्रधान मध्यान्ह रेखा का भी उल्लेख है जो रोहिताका (आज का रोहतक) और अवंतिका अर्थात उज्जैन से गुजरती है।यही कारण है की वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य जैसे खगोल ऋषियों ने उज्जैन को अपना निवास स्थान बनाया था। कालांतर में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने भी यहां वेधशाला का निर्माण करवाया । मूर्धन्य विद्वान श्री वाकणकर जी ने भी उज्जैन के डोंगला में खगोलीय यंत्रों की स्थापना की । स्पष्ट है की हम प्राचीन काल से निरंतर उज्जैन को मानक मान कर सटीक काल गणना कर रहे हैं।
भारत की इसी वैज्ञानिक धरोहर को पुनर्स्थापित करने के लिए उज्जैन में वैदिक घड़ी का निर्माण कर, उल्लेखनीय कदम उठाया गया है। इस घड़ी में समय के सभी मानक विशुद्ध भारतीय होंगे। भारतीय पद्धति में एक अहोरात्र में चौबीस "होरा" एवं तीस "मुहूर्त" होते हैं । इस वैदिक घड़ी में मुहूर्त को ही इकाई बनाकर दिन रात के चौबीस घंटों को तीस भागों में बांटा गया है। इस प्रकार एक इकाई जो मुहूर्त है,वह अड़तालिस मिनिट का होगा। यह भी स्मरणीय है की अंग्रेजी पद्धति में घंटे के लिए प्रयुक्त शब्द "हावर"(hour), समय की भारतीय ज्योतिषीय इकाई "होरा" से ही व्युत्पन्न हुआ है।
वैदिक घड़ी से समय की अन्य भारतीय इकाइयों जैसे पल, घटी, करण इत्यादि का भी ज्ञान होगा। यह घड़ी, आज का पंचांग, नक्षत्र,सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, सूर्योदय, सूर्यास्त इत्यादि की भी सटीक जानकारी देगी।
वास्तव में उज्जैन की यह वैदिक घड़ी भारतीय विज्ञान की पुनर्स्थापना का आव्हान कर रही है और समय के देवता महाकाल, भारत के परम वैभव का उद्घोष कर रहे हैं ।