समाज के गुणात्मक विकास के लिये पंच-परिवर्तन : श्री अभिषेक गुप्ता

स्वामी विवेकानंद व्याख्यान माला समिति रतलाम द्वारा दो दिवसीय व्याख्यानमाल के प्रथम दिवस धर्मजागरण गतिविधि के मालवा प्रांत प्रमुख श्री अभिषेक गुप्ता का पंचपरिवर्तन विषय पर उद्बोधन हुआ।
आपने अपने उद्बोधन में बताया कि समाज में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए निर्धारित किए गए यह पांच परिवर्तन है, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, स्व का भाव, नागरिक कर्तव्यों का पालन और पर्यावरण संरक्षण।
भारत के उत्थान की कामना करने वाले सभी लोग संकल्प पूर्वक इसका पालन करें।

समाज में वांछित परिवर्तन की प्रक्रिया किसी एक ही स्तर पर घटित नहीं होती, यह व्यक्ति से प्रारंभ होती हुई, सभी स्तरों पर घटित होती है। परिवर्तन के पंचायन को देखेंगे तो समझ में आएगा कि आज अपने देश सहित संपूर्ण विश्व जिन विभीषिकाओं से जूझ रहा है, उनके समाधान का यही एक सुविचारित और व्यवस्थित कर्तव्यपथ है।
देश के सर्वांगीण विकास की यह यात्रा सब की समन्वित चेतना से ही संभव है। इस विकास यात्रा के क्रमशः पाँच स्तर है।
स्व का जागरण:- समाज जीवन में परिवर्तन की प्रक्रिया का पहला सोपान व्यक्ति के स्व का जागरण है। स्व का जागरण का भाव केवल सैद्धांतिक अवधारणा के लिए नहीं है, अपितु जीवन के व्यावहारिक रूप में उतारना आवश्यक है। व्यक्ति की चेतना पर पड़े हुए औपनिवेशिक गुलामी के आवरण को स्वदेशी आचरण से ही दूर किया जा सकता है।
कुटुंब प्रबोधन:- पारिवारिक स्तर पर चेतना के महत्व की दृष्टि से कुटुंब प्रबोधन एक आवश्यक सोपान है। कुटुंब या परिवार व्यक्ति और समाज के बीच की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह संस्कारों की पहली पाठशाला है, जिसके आचार्य एवं शिक्षक- प्रशिक्षक माता-पिता और परिवार के बड़े लोग होते हैं।

नागरिक कर्तव्यों का पालन:- मानवीय चेतना का तीसरा घेरा भौगोलिक परिधि में आबद्ध किसी राष्ट्र अथवा राज्य का होता है, जो देश के विधि-विधान के अनुसार मनुष्य के सामुदायिक कर्तव्य और आचार व्यवहारों को निर्धारित करता है।
सामाजिक समरसता:- व्यक्ति चेतना का यह वाक्य संपूर्ण समाज को एकात्मकता के सूत्र में बांधता है। समाज की विविध विशेषताओं का समानता के नाम पर नष्ट भी नहीं किया जा सकता, अपितु समरसता के सूत्र में इन विभिन्नताओं के सामंजस्य के साथ बांधा जा सकता है। सामाजिक समरसता का अर्थ है, अपने वर्ग ,जाति और समुदाय से भिन्न लोगों के प्रति सह सम्मान जनक और भेदभाव रहित व्यवहार।
पर्यावरण संरक्षण:- मनुष्य की चेतना का पाँचवा सोपान वैश्विक स्तर पर व्याप्त होता है। हम इस चराचर जगत का अभिभाज्य अंश है। हमारा अस्तित्व धरती से लेकर अंतरिक्ष तक संपूर्ण दृष्टि से सम्बद्ध और उसे पर आबद्ध है। पर्यावरण को बचाना संपूर्ण चराचर जगत को बचाना है, अन्ततः स्वयं को बचाना है।
यह कार्य समुदाय,लिंग,जाति, पंथ, राष्ट्र आदि सभी सीमाओं से ऊपर उठकर मानव मात्र का धर्म है।

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