जनजाति समाज की पड़जी परम्परा

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फसल बोन के साथ ही जनजाति समाज मे समाज मे परस्पर सहयोग भी प्रारम्भ होता है बीज बोने के बाद उसमे खरपतवार होने लगती है जिससे फसलों को फलने व फूलने में परेशानी होती है इसका निवारण कैसे किया जा क्यो की जनजाति समाज आर्थिक रूप से इतना सक्षम नही होता कि मजदूरों को अपने खेतों में काम करा सके तो उसको कैसे दूर करे इसके लिए \”पड़जी\” परम्परा है जिसमे फलिये के लोगो द्वारा प्रत्येक दिन अलग अलग सदस्य के खेत मे खरपतवार को निदाई के लिए जाना होता है ।
यह उस समूह के सदस्यों के अलग अलग जाना होता है 10 सदस्य है तो 10 सदस्यों यह कार्य पूर्ण होने के बाद फिर से क्रम प्रारम्भ होता है । सभी सदस्य अपने घर से मक्का की रोटी उड़द की दाल जैसे ही भोजन होता है जो स्वंय के घर से लाते है। यदि उस समूह का सदस्य किसी कारण नही आता है तो उसके परिवार के किसी भी सदस्य को आना होता है । यह क्रम खेत मे निदाई से लेकर फसल कटाई तक होती है ।
यह परम्परा मुख्य रूप से आलीराजपुर झाबुआ में ही होती है ।
वर्तमान में आधुनिकीकरन के कारण कीटनाशक दवाइयां उपलब्ध होने के कारण धीरे धीरे यह परम्परा कुछ क्षेत्रों में समाप्त हो रही है ।

  • बबलू जमरा (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार है)

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