अब जब ऑस्ट्रेलिया के पीटर केवुड शोध टीम की अगुआई करने वाले वैज्ञानिक, जिन्होंने तीन देशों के आठ रिसर्चर्स के साथ मिलकर सात साल तक शोध के बाद यह खोज निकाला है कि दुनिया में समुद्र से बाहर कोई द्वीप सबसे पहले बाहर आया था तो वह झारखंड का सिंहभूम क्षेत्र है. तब यही कहना होगा कि मानव सभ्यता का विकास सबसे पहले यदि कहीं किसी भूमि पर हुआ है तो वह भारत की पवित्र भूमि है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमाम नए ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक शोध के निष्कर्षों के बाद भी आज भारत के कई विश्वविद्यालयों एवं राज्यों के निर्धारित अध्ययन पाठ्यपुस्तकों में यही पढ़ाया जा रहा है कि आर्य बाहर से आकर भारत में बसे थे. किंतु, अब तक के अनेक अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ है और कभी कोई आर्य जैसी पहचान रखने वाला व्यक्ति, समाज या समूह भारत के बारह से नहीं आया. बल्कि, भारत के श्रेष्ठजन (आर्य) ही भारतीय भू भाग से निकलकर संपूर्ण दुनिया में पहुंचे एवं वहां उन्होंने अपनी सनातन संस्कृति का जयघोष किया था, जिसके चिह्न विश्व भर में बिखरे हुए हैं.
आज आश्चर्य है कि यह सत्य जानते हुए भी कई लोग इसे स्वीकार्य नहीं करना चाहते. ऐसे सभी वामपंथी एवं अन्य इतिहासकार जो इसे नहीं मान रहे, उन्हें हर हाल में समझना होगा कि वे अब तक गलत इतिहास पढ़ाकर बच्चों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं. वे ऐसी पीढ़ी भी तैयार करने का अपराध कर रहे हैं, जिन्हें सत्य के आलोक के अभाव में अपने पूर्वजों पर कभी स्वाभिमान पैदा नहीं होगा.
ऐतिहासिक दृष्टि से पुरातात्विक शोध वर्तमान में बहुत आगे पहुंच चुका है. नए अनुसंधान आज भारत के लोगों को स्वयं के लिए वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गर्व अनुभूत करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं. जल से सबसे पहले भूमि यदि विश्व में कहीं बाहर आई थी तो वह भारत भूमि थी.
नए साक्ष्यों ने बहुत ही गहराई के साथ यह सिद्ध कर दिया है कि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से 20 करोड़ साल पूर्व भारत में वह जीवन की अद्भुत घटना घटी है, जिसमें मनुष्य एवं पृथ्वी पर रहनेवाले समस्त जीव-जन्तुओं के विकासक्रम का आरंभ संभव हो सका था.
झारखंड में सिंहभूम जिला समुद्र से बाहर आने वाला दुनिया का पहला जमीनी हिस्सा होना पाया गया है. 320 करोड़ साल पहले यह हिस्सा एक भूखंड के रूप में समुद्र की सतह से ऊपर था. वर्तमान में यह क्षेत्र उत्तर में जमशेदपुर से लेकर दक्षिण में महागिरी तक, पूर्व में ओडिशा के सिमलीपाल से पश्चिम में वीर टोला तक फैला हुआ दिखाई देता है.
इस नई खोज का अर्थ यह हुआ कि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र सबसे पहले समुद्र से बाहर नहीं निकले, यह मान्यता इस नए शोध के बाद ध्वस्त हो गई है. इसलिए पृथ्वी पर जीवन भी सबसे पहले भारत भूमि पर शुरू होता हुआ दिखाई देता है. वास्तव में आज सिंहभूम क्षेत्र के उनसे भी 20 करोड़ साल पहले बाहर आ जाने के साक्ष्यों देखने के बाद कहना होगा कि भारत को लेकर वैदिक संस्कृति में जिस जीवन की पहली किरण का उल्लेख है, वह पूरी तरह भारतीय भू भाग के संदर्भ में सत्य-सनातन है.
अब हम कुछ आगे चलते हैं, डॉ. शशिकांत भट्ट की पुस्तक ‘नर्मदा वैली : कल्चर एंड सिविलाइजेशन’ नर्मदा घाटी की सभ्यता के बारे में विस्तार से बताती है. इस किताब के अनुसार नर्मदा किनारे मानव खोपड़ी का पांच से छः लाख वर्ष पुराना जीवाश्म मिला है.
यहां डायनासोर के अंडों के जीवाश्म पाए गए हैं, इसके साथ ही दक्षिण एशिया में सबसे विशाल भैंस के जीवाश्म भी यहीं मिले हैं. इस घाटी में महिष्मती (महेश्वर), नेमावर, हतोदक, त्रिपुरी, नंदीनगर जैसे कई प्राचीन नगर उत्खनन से उनके 2200 वर्ष से लेकर पांच हजार से भी अधिक पुराने होने के प्रमाण देते हैं.
जबलपुर से लेकर सीहोर, होशंगाबाद, बड़वानी, धार, खंडवा, खरगोन, हरसूद तक लगातार जारी उत्खनन कार्यों ने ऐसे अनेक पुराकालीन रहस्यों को उजागर किया है जो यह स्पष्ट करते हैं कि यहां सभ्यता का काल अति प्राचीन है.
हम भारतीयों के लिए गर्व करने की बात यह भी है कि जिस व्यवस्थित सिन्धु सभ्यता की बात की जाती है, वह भी आज दुनिया में सबसे प्राचीनतम सिद्ध हो चुकी है.
आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिन्धु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर बता दिया है कि अंग्रेजों के अनुसार 2600 ईसा पूर्व की यह नगर सभ्यता नहीं या कुछ इतिहासकारों के अनुसार पांच हजार पांच सौ साल पुरानी नहीं है, बल्कि यह तो आठ हजार साल पुरानी सभ्यता थी. यह सिन्धु सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है.
मिस्र की सभ्यता 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी, यह माना गया है.
हमने देखा है कि कैसे मैक्समूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले इन तीनों ने भारत के इतिहास का विकृतिकरण किया. अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास में कहा गया कि भारतीय इतिहास का आरंभ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है. सिन्धु घाटी के लोग द्रविड़ थे यानि वे आर्य नहीं थे. आर्यों ने बाहर से आकर सिंधु घाटी की सभ्यता को नष्ट किया और फिर अपने राज्य को स्थापित किया.
आर्यों और द्रविड़ के निरंतर संघर्ष चलते रहे. अंग्रेजों ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए ‘आर्यन इन्वेजन थ्योरी’
गढ़ी. दुख इस बात का है कि उनका साथ भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने भी दिया और उनकी हां में हां मिलाते हुए कहने लगे कि संभवत: आर्य साइबेरिया, मंगोलिया, ट्रांस कोकेशिया, स्कैंडेनेविया अथवा मध्य एशिया से भारत आए थे. अंग्रेजों ने बार-बार यह बताया कि सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य थे.
अंग्रेजों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया, जैसे हम इस देश में आए हैं. वैसे ही समय-समय पर कई लोग बाहर से यहां आते गए अपनी कॉलोनियां बसाते गए और फिर यहीं बस गए. हर बार जो बाहर से आया उसने पहले से सत्ता पर काबिज समूह से संघर्ष किया, उसे पीछे ढकेला और समस्त शक्तियां अपने हाथ में ले लीं. आखिर अंग्रेजों ने इस जूठ को क्यों गढ़ा और क्यों भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने इसमें उनका साथ दिया? जब इसकी गहराई में जाते हैं तो स्थिति पूरी तरह से साफ हो जाती है.
वस्तुत: अंग्रेज और उनके पिछलग्गू इतिहासकार यह स्वीकार्य नहीं करना चाहते थे कि भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व की ऐसी समृद्ध ज्ञान आधारित सबसे प्राचीनतम व्यवस्था है, जिसमें नगरीय संस्कृति की संपूर्णता समाहित है. जब ग्रीस, रोम और एथेंस का दुनिया में नामोनिशान नहीं था. तब दुनिया भर में सिंधु घाटी की सभ्यता इकलौती विश्वस्तरीय नगरीय सभ्यता थी, जहां टाउन-प्लानिंग थी, भोजन की बड़ी-बड़ी रसोई थीं, बैठक के स्थान थे, कपड़े थे, चांदी और तांबे का उपयोग था. लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग भी करते थे. यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है, यानि इस सभ्यता में लोग कला पारखी भी थे.
इस विवाद के बीच नए शोध कहते हैं कि आर्य आक्रमण भारतीय इतिहास के किसी कालखण्ड में घटित नहीं हुआ और ना ही आर्य तथा द्रविड़ नामक दो पृथक मानव नस्लों का अस्तित्व ही कभी धरती पर रहा है.
डीएनए गुणसूत्र पर आधारित शोध जिसे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. कीवीसील्ड के निर्देशन में फिनलैण्ड के तारतू विश्वविद्यालय, एस्टोनिया में भारतीयों के डीएनए गुणसूत्र पर आधारित करते हुए किया गया, यह सिद्ध करता है कि सारे भारतवासी गुणसूत्रों के आधार पर एक ही पूर्वजों की संतानें हैं. आर्य और द्रविड़ का कोई भेद गुणसूत्रों के आधार पर नहीं मिलता है और तो और जो अनुवांशिक गुणसूत्र भारतवासियों में पाए जाते हैं, वे डीएनए गुणसूत्र दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं पाए गए.
शोध में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल की जनसंख्या में विद्यमान लगभग सभी जातियों, उपजातियों, जनजातियों के लगभग 13000 नमूनों का परीक्षण किया गया. जिसका परिणाम यही कह रहा है कि भारतीय उपमहाद्वीप में चाहे वह किसी भी धर्म को मानते हों, 99 प्रतिशत समान पूर्वजों की संतानें हैं. शोध में पाया गया है कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, की समस्त जातियों के डीएनए गुणसूत्र तथा उत्तर भारतीय जातियों के डीएनए का उत्पत्ति-आधार गुणसूत्र एक समान है.
अमेरिका में हार्वर्ड के विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के बाद पाया कि सभी भारतीयों के बीच एक अनुवांशिक संबंध है. इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है. उत्तर और दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संतानें हैं.
अब जब ऑस्ट्रेलिया के पीटर केवुड शोध टीम की अगुआई करने वाले वैज्ञानिक, जिन्होंने तीन देशों के आठ रिसर्चर्स के साथ मिलकर सात साल तक शोध के बाद यह खोज निकाला है कि दुनिया में समुद्र से बाहर कोई द्वीप सबसे पहले बाहर आया था तो वह झारखंड का सिंहभूम क्षेत्र है. तब यही कहना होगा कि मानव सभ्यता का विकास सबसे पहले यदि कहीं किसी भूमि पर हुआ है तो वह भारत की पवित्र भूमि है.
भारत में अब तक जो लोग आर्य-द्रविड़ के द्वंद में कहीं फंसे हैं, उनके लिए भी यह समय अपने पूर्वजों पर गर्व करने का है और अपनी इतिहास की पुस्तकों में सत्य को स्थापित करने का भी. वे अब आत्मविश्वास से पूर्ण हो तथ्यों के साथ दुनिया को बताएं कि कैसे मानव जीवन एवं सभ्यता का विकास भारत से संपूर्ण विश्व तक पहुंचा है.