प्रकृति में भी माता निहित है

~अमितराव पवार


शक्ति-भक्ति, ममता और अनुशासन को दर्शाती जगत जननी देवी दुर्गा माँ जीवन पथ को जीने के अलग-अलग संदेश अपने ‘नौं’ रूपो में ‘नौं’दिनों तक हमको सिखाती है।तथा प्रकृति में ऋतु परिवर्तन होने की सूचना भी देती है।माँ बहुत कुछ बतलाती है।
हमारा जीवन उत्सवों में समाया हुआ है। विश्व मे भारत ही है,जो अनेक उत्सव,पर्वों और त्योहारों वाला देश है। यहां हर दिन नित- नए उत्सव होते रहते हैं। यहां हर एक पर्व-उत्सव,त्यौहारों का मनाया जाना भी प्रकृति के साथ मनुष्य के जीवन में कुछ न कुछ अवश्य दर्शाता दिखाई देता है।यहाँ हर एक त्यौहार में अपना संदेश और उसका महत्व छुपा हुआ रहता है। लाखों वर्षों से चले आ रहे प्राचीन त्यौहार आज भी अपनी सांस्कृतिक सभ्यता और धर्म के आधार पर जीवित है।यह भारत राष्ट्र की शक्ति और ताकत ही है,जिसने हजारों आक्रमण सहन करने के बावजूद अपनी प्राचीन परंपरा-उत्सवों पर्वों को कभी नष्ट होने नही दिया।
इन्हीं में एक’माँ दुर्गा के नौ रूपो का वर्णन जिसमे है,नवरात्रि का पर्व है।’जो हमे शक्ति,भक्ति,संघर्ष अनुशासन,संयम,एकाग्रताआदि सदगुणों का पाठ पढ़ाती है।जब तीनो लोकों में आतंक हो चुका देवराज इंद्र के सिंहासन पर राक्षस महिषासुर जा बैठा तब सारे देवगण श्री ब्रम्हदेव को साथ लेकर महादेव के पास गए और एक शक्ति का आव्हान किया।जिससे महिषासुर का वध हो सके।शक्ति के रूप मे माता दुर्गा प्रकट हुई।जिसने महिषासुर का वध किया। इतना ही नही माता ने शुम्भ-निशुम्भ का भी वध किया।तीनो लोकों से बुराई का अंत हुआ। ‘माता जगत जननी’ को सभी देवगणों ने अपने-अपने
सामर्थ्यनुसार शस्त्र भी प्रदान किये। देवी को हम अनेक नाम से जानते है।
पुराणों के अनुसार शिवशक्ति से ही इस सृष्टि का निर्माण हो कर संसार संचालित हो रहा है।शिव के बिना शक्ति और शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं।जिस प्रकार इस संसार को गति देने के लिए स्त्री-पुरुष का साथ होना आवश्यक है। जिससे शिव और शक्ति के बनाए हुए इस सुंदर संसार को गति मिलती है। माँ आद्यशक्ति के नवरात्रि का पर्व हमें ऋतु के परिवर्तन की सूचना भी देता है। वर्ष भर में चार नवरात्रि आते है। जिसमे दो गुप्त नवरात्रि तथा दो जनमानस के लिए होती है।वर्ष भर में नवरात्रि जब-जब आते है।तब-तब ‘ऋतु'(मौसम) का परिवर्तन होता है इसलिए माना गया है कि ‘प्रकृति में भी माता निहित है।’
१.(मार्च से जून) हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ व इस सृष्टि के निर्माण की रचना तथा नवरात्रि का प्रथम दिन’चैत्र माह प्रतिपदा’
(चैत्र,बैशाख,जेष्ठ) मौसम ‘गर्मी’
२.(जून से अक्टूबर) जेष्ठ,आषाढ़
,सावन,भाद्रपद,अश्विनी
गुप्त नवरात्रि ‘आषाढ़ माह प्रतिपदा’ मौसम वर्षों ऋतु
३.(अक्टूबर से जनवरी)अश्विन, कार्तिक,मार्गशीर्ष,पौषी
शारदीय नवरात्रि ‘अश्विन माह प्रतिपदा’ मौसम सर्दी
४.(जनवरी से मार्च) पौषी,माघ,फाल्गुन,चैत्र
गुप्त नवरात्रि ‘पौषी माह प्रतिपदा’ मौसम शिशिर।
आने-जाने वाली ऋतुओं के तापमान के अनुकूल हम हमने शरीर को ढाल सके तथा बीमारी का खतरा कम से कम हो इसके लिए व्रत का प्रावधान भी हर ऋतु के नवरात्रि में नौ दिनों तक है।
नवरात्रि अर्थात ‘नौ’ रात्रि और एक दिन विजय का (दशहरा) तक माता शक्ति दुर्गा की उपासना की जाती है।
चैत्र,आषाढ़,आश्विन,पौषी इस प्रकार हिन्दू माह की प्रतिपदा से नवरात्रि का आरंभ होकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है।हर एक नवरात्रि में तीन-तीन माह का अंतर होता है। जिसमे दो गुप्त नवरात्रि और चैत्र (बड़ी) शारदीय(छोटी)नवरात्रि में छः माह की दूरी होती है। साधन के लिए गुप्त नवरात्रि को महत्वपूर्ण माना गया है। माँ दुर्गा जगत जननी है।पूरा संसार इस आद्यशक्ति देवी से ही उत्पन्न हुआ है।जो अपने ममतामयी स्नेह से इस संसार को पाल रही और बता रही कि कैसे अनुशासन में रहकर हम इस गृहस्थनुमा समाज को आगे बढ़ा सकते है।और वक्त आने पर अपने इस परिवार जगत ओर पुत्रो की रक्षा के लिए कालरात्रि भी बन जाती है। जन्मदायिनी जगत माँ के बिना यह संसार अधूरा है। नवरात्रि के ज्वारे भी हमको यही संदेश देते है कि,मिट्टी के पात्र में देवी माँ के सामने ‘जौ’ के बीज से ज्वारे उगाते हैं।वे इन नौ दिनों में पौधे का आकार ले लेते हैं। यह प्रतीक है,हमारी सृष्टि के संचालन का माता (स्त्री) के गर्भ से उत्पन्न (बच्चा) जीवन जो इस चराचर संसार को गति देता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गेहूं के दाने से फिर गेहूं उग जाता हैं। माता के ज्वारे इसका प्रत्येक प्रमाण है। इस संसार को गतिमय रखने के लिए किस तरह से मिट्टी अथवा गर्भ,बीच अर्थात गर्भ में बच्चा और जन्म मतलब ‘जौ’ का हरा होना यही क्रिया निरंतर चलती रहती है।और इसी प्रक्रिया से संसार को माता चलाती है। इसलिए हिंदू धर्म में जन्म देने वाली स्त्री के साथ जो-जो बच्चों का लालन,पालन-पोषण करती है। वे सब माँ रूप में कहलाती है।अतः हमने नदियों को भी माँ कहा है। जो हमारे जीवन की संपूर्णता का ध्यान रखती है। जैसे जगत जननी माँ अंबे इस संसार को अपनी शक्ति,ममता,स्नेह से संचालित कर रही है। इस संसार में फसल के रूप में सबसे पहले उत्पन्न हुई ‘जौ’ अर्थात गेहूं है। इसलिए अन्न को ब्रम्हा भी कहा जाता है।इसका उपयोग हवन- पूजन इत्यादि में अकसर किया जाता है। जिस से वर्ष भर हमारे घरों में अन्न का भंडार बना रहे।गेहूं के रूप में माता ने इस संसार में मनुष्य की उत्पत्ति की अर्थात महिला के गर्भ के माध्यम से हम मनुष्य को जीवन दिया है।

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