जुर्म करे मौलाना, बदनाम किये बाबा! मीडिया संस्थानों का हिन्दूफोबिया

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मध्यप्रदेश के रतलाम शहर में अचानक से कोरोना विस्फोट होने की खबर फैलती है और पता चलता है कि देखते ही देखते रतलाम में 1- 2 नहीं, बल्कि 24 लोग कोरोना की जद में आ गए हैं. यह खबर जब स्थानीय नागरिकों को पता चली तो पूरे रतलाम शहर में सनसनी का माहौल बन गया. जानकारी के अनुसार 4 जून को समुदाय विशेष से ताल्लुक रखने वाले एक फकीर की कोरोना के कारण मृत्यु हो गई. जिसके बाद स्थानीय प्रशासन ने फकीर के संपर्क में आए लोगों को ढूंढना शुरू किया तो फकीर की एक घिनौनी हरकत प्रशासन के सामने आई. यह फकीर कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर कई दिनों तक लोगों की झाड़ फूंक करता रहा और खास तौर पर यह महिलाओं के हाथों को चूम कर कोरोना का इलाज करता था. लेकिन फकीर के इलाज के तरीके को यह सेकुलर मीडिया अंधविश्वास में शामिल नहीं करेगा.

क्योंकि यह फकीर एक धर्म विशेष से ताल्लुक रखता है. यह सब तो दूर इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद भी मीडिया द्वारा एक प्रोपेगेंडा के तहत हिंदू धर्म को बदनाम करने के उद्देश्य से इस मुस्लिम फकीर को भी अपनी खबरों में बाबा कहकर संबोधित किया. न्यूज़ चैनल्स पर हुई कवरेज को देखें तो हर कोई बाबा-बाबा की रट इस तरह से लगा रहा है कि घटना की वास्तविकता लोगों के सामने न आ सके.

समाचार में भी हिन्दू बाबाओं के लगा रहे फ़ोटो

रतलाम के इस फकीर ने कोरोना का इलाज करने के बहाने से लगभग 19 लोगों को संक्रमित कर दिया है. जब यह बात स्थानीय प्रशासन को पता लगी तो प्रशासन ने क्षेत्र के कई बाबाओं को भी क्वारेंटाइन किया है. लेकिन जब इस घटना के समाचार टीवी चैनलों का समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए तो फकीर के स्थान पर अभी भी हिन्दू बाबाओं की प्रतीकात्मक तस्वीरें लगाई जा रही हैं. इन तस्वीरों से लोगों के मन में किस प्रकार से हिंदू धर्म और उनके बाबाओं के खिलाफ घृणा के बीज बोए जा रहे हैं, यह साफ दिखाई पड़ता है.

पहले तबलीगी जमात ने देश में संक्रमण फैलाया और उसके बाद आप धर्म विशेष के यह मौलाना और फकीर इस प्रकार की घिनौनी हरकतें करके कोरोना के मामलों को बढ़ा रहे हैं. हां, अगर यही काम किसी पंडित या हिंदू धर्म गुरु द्वारा किया गया होता तो आज राष्ट्रीय मीडिया पर यह मुद्दा प्राइम टाइम बहस बन चुका होता. असलम की जगह यदि पंडित या पुजारी नाम से कोई होता तो पूरे देश में हाय तौबा मची होती क्योंकि इसके उदाहरण हमने पिछले कई मामलों में देख लिए हैं.

कठुआ गैंगरेप की घटना सामने आई थी तो तमाम बुद्धिजीवियों व लिबरल मीडिया द्वारा विधवा विलाप शुरू कर दिया था. हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों धर्म प्रीति को और मंदिरों को तक मीडिया द्वारा निशाने पर लिया जा रहा था. अश्लील अश्लील चित्रों को हिंदू भगवानों के साथ जोड़कर सोशल मीडिया पर अपनी घृणा को परोसा जा रहा था, लेकिन वहीं जब जुलाई 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मौलाना ने 9 साल की एक मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना की, तब यही बुद्धिजीवी मीडिया कैमरे में अपना मुंह छुपा कर बैठ गए थे. क्योंकि मौलाना मुस्लिम धर्मगुरु था, तब किसी प्रकार के मुस्लिम धर्म के प्रतीकों को निशाने पर नहीं लिया गया. इसी प्रकार से रतलाम की घटना को भी ठंडे बस्ते में डालकर मुस्लिम फकीर को बचाने के तमाम प्रयास किए जा रहे हैं.

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