मध्यप्रदेश नदियों का मायका कहलाता है। क्योंकि यहाँ से कई नदियों का उद्गम हुआ है।
नर्मदा, चम्बल,सोन, कालीसिंध,पार्वती,ताप्ती,माही और ऐसी कई नदियाँ है जो मध्य प्रदेश की पावन भूमि से निकली हैं और दूसरे प्रदेशों में जाकर वहाँ की प्रकृति को हरा-भरा कर रही हैं। ऐसा नहीं है कि ये जहाँ से निकली हैं , वहाँ हरा-भरा नहीं करतीं। मध्य प्रदेश को समृद्ध बनाने वाली इन नदियों में प्रात:स्मरणीय नर्मदाजी तो मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहलाती हैं। इसी तरह चंबल नदी महू के पास जानापाव से निकली है । जानापाव ऋषि परशुराम जी की जन्म स्थली है । यहाँ से चंबल नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। जब चंबल यहाँ से चलती है, तो वर्षा काल में तो यह नदी जल से भरी रहती है, परंतु जैसे ही गर्मी का मौसम आता है ,पूरी तरह से सूख जाती है,फिर इसमें पानी के दर्शन होते हैं औद्योगिक नगरी नागदा में, जहाँ पर इसके ऊपर एक बाँध बना हुआ है और उसमें वर्षा का पानी रोक लिया जाता है,जो पूरे वर्षभर लबालब रहता है।नागदा के बाद ही,यह नदी अपने पूर्ण स्वरूप में दर्शन देती है। नागदा से आगे इस पर गाँधी सागर में बहुत बड़ा बाँध बना है,जो आजादी के बाद बने हुए बाँधों में सबसे पहले बना था।इससे आगे राजस्थान के रावतभाटा में और कोटा में भी इस पर बाँध बने हुए हैं ,उसके बाद आगे चलकर यह उत्तर प्रदेश में इटावा से आगे और ओरैया के पहले,अपने आपको यमुना नदी में विलीन कर देती है। मध्य प्रदेश में कालीसिंध ,गंभीर ,पार्वती ,शिप्रा और अन्य अनेक छोटी-बड़ी सहायक नदियाँ हैं जो इसे वर्षभर जल से भरपूर रखती हैं।
इस नदी का सौभाग्य कहें या ईश्वर की कृपा ! इसके किनारे पर ना तो ज्यादा बडा कोई शहर है और ना ही कोई बड़ा धर्म और आस्था का केंद्र,और इसी कारण यह निर्मल स्वच्छ धारा के रूप में बह रही है,कोई शहर या धार्मिक स्थल किसी नदी के किनारे होने के कारण वहाँ शहर की गंदगी का और वर्षभर लगने वाले धार्मिक मेले और आस्था का जमघट लगा रहता है फलस्वरूप नदियों के तट पर प्लास्टिक के ढेर लग जाते हैं । पुराने कपड़ों के ढेर लग जाते हैं और कई तरह की गंदगियाँ इकट्ठी होती जाती हैं। परंतु चंबल अभी भी इससे बची हुई है।
आइए , चंबल की ही बात को आगे बढ़ाते हैं तथा प्रकृति के इस उपहार /उपकार को और करीब से जानते हैं ।
चंबल धार्मिक तीर्थ तो नहीं पर प्राकृतिक तीर्थ है। यह अपनी इस विशेषता के कारण प्रदेश और देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
धरती के सबसे पुराने मीठे पानी के प्राणी मगरमच्छ और घड़ियालों का यह सबसे बड़ा निवास स्थान है और यही कारण है कि चंबल नदी पूरे विश्व में अपना एक अलग महत्व रखती हैं, एक अलग पहचान रखती है । इस जैसी शायद ही कोई और नदी वर्तमान समय में हों।
मगरमच्छ तो किसी भी परिस्थिति में रह सकते हैं चाहे रेतीले तट हों, पथरीले तट हों , दलदली तट हों या सूखे तट हों । ये हर प्रकार के शिकार से अपना पालन-पोषण कर लेते हैं, जैसे जलीय जीव,स्तनपाई जीव सभी कुछ खा सकते हैं और अपना जीवन-यापन कर सकते हैं। परंतु मीठे पानी के घड़ियाल केवल मछलियाँ खाते हैं और रहने के लिए रेतीले तट ही चाहते है। रेतीले तट उसके रहने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होते है। घडिय़ाल बहुत ही शर्मीला और संवेदनशील जीव होता है अतः मानव का हस्तक्षेप और शोरगुल तथा अशांति बिलकुल भी पसंद नहीं करता है। इसलिए चंबल नदी और इसकी परिस्थितियाँ घड़ियाल के अनुकूल हैं अत: इनके जीवन-यापन की सबसे उपयुक्त जगह यही नदी है।
पूरे विश्व में इस नदी ने घड़ियालों की सबसे बड़ी बस्ती को अपने यहाँ आसरा दे रखा है जो कि अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इतना ही नहीं मीठे पानी के कछुए भी इसमें बहुतायत में पाए जाते हैं जलीय जीव-जंतुओं के अलावा जलीय पक्षियों की प्रजातियाँ को भी बहुत बड़ी तादाद में अपने आँचल में आसरा देती है। जैसे कि रेड पोचार्ट,वुलीनेक, इंडियन स्कीमर,ब्लेक स्टार्क,ग्रेट थीकनी, सभी टाइप के क्रोमेंट,इगार्ट,डग और इसी टाइप के सैकड़ों सामान्य और दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों का यहाँ जमावड़ा है।
मैं लगभग 280 किलोमीटर इस नदी में पैदल और बोट में बैठकर 10 दिनों तक इसके तटों पर घूमा और रहा हूँ । मुझे इसे करीब से देखने का सौभाग्य मिला है। मैंने इसके सौन्दर्य का रस-पान किया है, इसमें पलने वाले पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं की स्वच्छंदता को महसूस किया है।
जितना मैंने देखा है,उस सम्पूर्ण क्षेत्र में यह नदी ईश्वर की इन संतानों को अपने यहाँ पाल-पोस रही है और स्वच्छ, सुरक्षित खाद्य से भरपूर वातावरण मुहैया करवा रही है। यह भी सच है कि नदियाँ गाती हैं ,उसे सुननेवाले चाहिए। चंबल में भी कल-कल बहते पानी का संगीत सुन सकते हैं ,झरनों की गर्जन-तर्जन है ,पक्षियों का कलरव रुपी सुर और ताल है । इनके मनभावन गीत को सुनने के लिए,बस हमें कान चाहिए । यह अपने आपमें हमारे लिए बहुत बड़ी बात है कि ईश्वर का यह अनुपम उपहार ,चंबल नदी मध्यप्रदेश में बह रही है और प्रकृति को संतुलित करने में अपना योगदान दे रही है।
३५०००-४०००० वर्ष पुर्व मानव सभ्यता इसके किनारो पर अपना जीवन यापन करती थी, यह सबुत है यहा पर मिल रहे गुफाओ मे बने शैलचित्रों से।बहुत ही संपन्न और उन्नतिशील सभ्यता थी वो ऐसा लगता है।
वर्तमान समय मे मानव जीवन के लिए भी यह अपना अमूल्य योगदान दे रही है।मध्यप्रदेश के लिए तो यह वरदान है ही ,साथ ही राजस्थान को भी हरा भरा कर रही है क्योंकि राजस्थान जैसे सूखे प्रदेश में यह सबसे बड़ी जल संरचना है।मध्यप्रदेश और राजस्थान के उस सूखे और बीहड़ी क्षेत्र, जहाँ केवल बीहड़ ही बीहड़ है वहाँ यह नदी अपना स्तन-पान करवा रही है और गेहूं-सरसों जैसी उपज के लहलहाते कई किलोमीटर लंबे खेत इसके किनारे देखे जा सकते हैं। इसके आसपास अधिकतर जो वन क्षेत्र है, वह कँटीली झाड़ियों का है क्योंकि इसके तटों पर दूर तक बीहड़ और पथरीले तट हैं फिर भी यह नदी जितना अधिक से अधिक योगदान मानव कल्याण में और प्रकृति को सहेजने में दे सकती है, दे रही है।
पेड-पौधे तो ज्यादातर इसके किनारे पर कटीली प्रजातियों वाले ही है,जिसमे बबुल बहुतायत मे है,जलीय वनस्पति का मुझे अभी कुछ समझ मे नही आता है।
इसके तटो पर रेत उत्खनन और अवैध शिकार धड़ल्ले से होता है।इसका एक तट राजस्थान मे और एक तट मध्यप्रदेश मे लगता है,अतः इस बात का पुरा फायदा अवैध कारोबारियों द्वारा लिया जाता है। सरकारीतंत्र भी उतना समुचीत और साधन-सम्पन्न नही है की माफ़िया का सामना कर सके।
सुझाव यह है की इसमे बीच बीच मे इको-टुरिज्म प्रारंम्भ करना चाहिए इससे राजस्व की प्राप्ती भी होगी और अवैध कारोबार पर नकेल भी लगेगा।अभी केवल राजस्थान के पाली मे और मध्यप्रदेश के मुरैना के पास सफारी चल रही है।इसी तरह की सफारी चार-छ: जगह शुरूवात की जा सकती है।
मेरी व्यक्तिगत राय है कि जब भी कभी किसी भी मंच पर गंगा,यमुना, नर्मदा की बात हो तो उसमे चंबल को भी अवश्य शामिल किया जाए।
इंडियन स्कीमर,ब्लेक स्टार्क,ग्रेट थीकनी, सभी टाइप के क्रोमेंट,इगार्ट,डग और इसी टाइप के सैकड़ों सामान्य और दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों का यहाँ जमावड़ा है।
मैं लगभग 280 किलोमीटर इस नदी में पैदल और बोट में बैठकर 10 दिनों तक इसके तटों पर घूमा और रहा हूँ । मुझे इसे करीब से देखने का सौभाग्य मिला है। मैंने इसके सौन्दर्य का रस-पान किया है, इसमें पलने वाले पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं की स्वच्छंदता को महसूस किया है।
जितना मैंने देखा है,उस सम्पूर्ण क्षेत्र में यह नदी ईश्वर की इन संतानों को अपने यहाँ पाल-पोस रही है और स्वच्छ, सुरक्षित खाद्य से भरपूर वातावरण मुहैया करवा रही है। यह भी सच है कि नदियाँ गाती हैं ,उसे सुननेवाले चाहिए। चंबल में भी कल-कल बहते पानी का संगीत सुन सकते हैं ,झरनों की गर्जन-तर्जन है ,पक्षियों का कलरव रुपी सुर और ताल है । इनके मनभावन गीत को सुनने के लिए,बस हमें कान चाहिए । यह अपने आपमें हमारे लिए बहुत बड़ी बात है कि ईश्वर का यह अनुपम उपहार ,चंबल नदी मध्यप्रदेश में बह रही है और प्रकृति को संतुलित करने में अपना योगदान दे रही है।
३५०००-४०००० वर्ष पुर्व मानव सभ्यता इसके किनारो पर अपना जीवन यापन करती थी, यह सबुत है यहा पर मिल रहे गुफाओ मे बने शैलचित्रों से।बहुत ही संपन्न और उन्नतिशील सभ्यता थी वो ऐसा लगता है।
वर्तमान समय मे मानव जीवन के लिए भी यह अपना अमूल्य योगदान दे रही है।मध्यप्रदेश के लिए तो यह वरदान है ही ,साथ ही राजस्थान को भी हरा भरा कर रही है क्योंकि राजस्थान जैसे सूखे प्रदेश में यह सबसे बड़ी जल संरचना है।मध्यप्रदेश और राजस्थान के उस सूखे और बीहड़ी क्षेत्र, जहाँ केवल बीहड़ ही बीहड़ है वहाँ यह नदी अपना स्तन-पान करवा रही है और गेहूं-सरसों जैसी उपज के लहलहाते कई किलोमीटर लंबे खेत इसके किनारे देखे जा सकते हैं। इसके आसपास अधिकतर जो वन क्षेत्र है, वह कँटीली झाड़ियों का है क्योंकि इसके तटों पर दूर तक बीहड़ और पथरीले तट हैं फिर भी यह नदी जितना अधिक से अधिक योगदान मानव कल्याण में और प्रकृति को सहेजने में दे सकती है, दे रही है।
पेड-पौधे तो ज्यादातर इसके किनारे पर कटीली प्रजातियों वाले ही है,जिसमे बबुल बहुतायत मे है,जलीय वनस्पति का मुझे अभी कुछ समझ मे नही आता है।
इसके तटो पर रेत उत्खनन और अवैध शिकार धड़ल्ले से होता है।इसका एक तट राजस्थान मे और एक तट मध्यप्रदेश मे लगता है,अतः इस बात का पुरा फायदा अवैध कारोबारियों द्वारा लिया जाता है। सरकारीतंत्र भी उतना समुचीत और साधन-सम्पन्न नही है की माफ़िया का सामना कर सके।
सुझाव यह है की इसमे बीच बीच मे इको-टुरिज्म प्रारंम्भ करना चाहिए इससे राजस्व की प्राप्ती भी होगी और अवैध कारोबार पर नकेल भी लगेगा।अभी केवल राजस्थान के पाली मे और मध्यप्रदेश के मुरैना के पास सफारी चल रही है।इसी तरह की सफारी चार-छ: जगह शुरूवात की जा सकती है।
मेरी व्यक्तिगत राय है कि जब भी कभी किसी भी मंच पर गंगा,यमुना, नर्मदा की बात हो तो उसमे चंबल को भी अवश्य शामिल किया जाए।
लेखक – श्रीकांत कलमकर