भगवान झूलेलाल
(चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया , 1063 विक्रम संवत )
संक्षिप्त विवरण
भगवान झूलेलाल जयंती सिंधी समाज में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाई जातीहै। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार झूलेलाल जयंती चैत्र मास की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि झूलेलाल जी भगवान वरुणदेव के अवतार है। भगवान झूलेलाल की जयंती को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है, जिसे सिंधी नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। चेटी-चंड हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि जल से ही सभी सुखों और मंगलकामना की प्राप्ति होती है इसलिए इसका विशेष महत्व है।
चेटी चंड सिंधियों का प्रमुख त्यौहार है और सिंधी नववर्ष भी है। हिन्दू नववर्ष का पहला माह “चैत्र” होता है और सिंधी में इसे “चेट” भी कहते हैं। इसी वजह से इस उत्सव को “चेटी-चंड” कहते हैं। इसी दिन सिंधियों के इष्ट देव उदेरोलाल झूलेलाल की जयंती होती है। इसी कारण से सिंधियों में यह पर्व अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
झूलेलाल के महत्वपूर्ण कथन
•ईश्वर अल्लाह हिक आहे।
(ईश्वर अल्लाह एक हैं।)
•कट्टरता छदे, नफरत, ऊंच-नीच एं छुआछूत जी दीवार तोड़े करे पहिंजे हिरदे में मेल-मिलाप, एकता, सहनशीलता एं भाईचारे जी जोत जगायो।
(विकृत धर्माधता, घृणा, ऊंच-नीच और छुआछूत की दीवारे तोड़ो और अपने हृदय में मेल-मिलाप, एकता, सहिष्णुता, भाईचारा और धर्म निरपेक्षता के दीप जलाओ।)
•सभनि हद खुशहाली हुजे।
(सब जगह खुशहाली हो।)
•सजी सृष्टि हिक आहे एं असां सभ हिक परिवार आहियू।
(सारी सृष्टि एक है, हम सब एक परिवार हैं।)
झूलेलाल जी की जीवनी:
सिंध में मोहम्मद बिन कासिम ने अंतिम हिन्दू राजा दाहिर को विश्वासघात कर हरा दिया जिसके बाद सिंध को अल-हिलाज के खलीफा द्वारा अपने राज्य में शामिल कर लिया गया। इसके बाद खलीफा के प्रतिनिधियों द्वारा सिंध में शासन-प्रशासन चलाया गया। इस्लामिक आक्रमणकारियों ने पूरे क्षेत्र में तलवार की नोंक पर लगातार धर्मांतरण किया और इस्लाम को फैलाया।
इसके बाद, 10वीं शताब्दी में सिंध स्योमरा राजवंश के शासन में आया। सिंध क्षेत्र में इस्लाम में मतांतरित होने वाले स्थानीय लोगों में यह सबसे पहले थे। इनकी पूरी जाति इस्लाम में मतांतरित हो चुकी थी। ये समुदाय ना ज्यादा धार्मिक था ना ही ज्यादा कट्टरपंथी। इस्लाम के आक्रमण के बाद यही दौर अपवाद रहा जिसने कट्टरपंथ और तलवार की नोंक पर इस्लाम को फैलाने पर जोर नहीं दिया।
इसी बीच सिंध की राजधानी थट्टा अलग दूरी पर स्थित थी। इसकी अपनी अलग पहचान और अपना अलग प्रभाव था। यहाँ का शासक मिरखशाह ना केवल अत्याचारी और दुराचारी था बल्कि कट्टर इस्लामिक आक्रमणकारी था। इसने आस पास के क्षेत्र में इस्लाम को फैलाने के लिए अनेक आक्रमण किये और नरसंहार किया। मिरखशाह जिन सलाहकारों और मित्रों से घिरा हुआ था उन्होंने उसे सलाह दी थी कि “इस्लाम फैलाओ तो तुम्हें मौत के बाद “जन्नत” या “सर्वोच्च आनंद” प्रदान किया जाएगा।”
इसके बाद मिरखशाह ने हिंदुओं के “पंच प्रतिनिधियों” को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि “इस्लाम को गले लगाओ या मरने की तैयारी करो।” मिरखशाह की धमकी से डरे हिंदुओं ने इस पर विचार करने को कुछ समय मांगा जिस पर मिरखशाह ने उन्हें 40 दिन का समय दिया।
यह सर्वविदित है कि जब मनुष्य के लिए सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो वह ईश्वर के बारे में सोचता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। भगवान श्रीकृष्ण के भगवद्गीता के उद्बोधन का उल्लेख करते हुए तत्कालीन ग्राम प्रमुख ने कहा कि “जब-जब पाप सीमा लांघती है और धर्म पर खतरा बढ़ता है तब तब ईश्वर अवतार लेते हैं।”
अपने सामने मौत और धर्म पर संकट को देखते हुए सिंधी हिंदुओं ने नदी (जल) के देवता वरुण देव की ओर रुख किया। चालीस दिनों तक हिंदुओं ने तपस्या की। उन्होंने ना बाल कटवाए, ना कपड़े बदले ना भोजन किया। उपवास कर केवल ईश्वर की स्तुति और प्रार्थना कर रक्षा की उम्मीद लिए बैठे रहे।
40वें दिन स्वर्ग से एक आवाज़ आई, “डरो मत, मैं तुम्हें उसकी बुरी नज़र से बचाऊंगा। मैं एक नश्वर के रूप में नीचे आऊंगा, नसरपुर के रतनचंद लोहानो के घर माता देवकी के गर्भ में जन्म लूंगा।” इसके बाद से सिंधी समाज इस 40वें दिन को आज भी “धन्यवाद दिवस” के रूप में उत्सव मनाते हैं।।
इसके बाद हिंदुओं ने मिरखशाह से जाकर अपने ईश्वर के आने तक रुकने की प्रार्थना की। जिसके बाद मिरखशाह ने इसे अपने अहंकार के रूप देखा और “भगवान” से भी लड़ लेने की उत्सुकता में उसने हिंदुओं को कुछ दिन का और समय दिया।
3 महीने के बाद आसू माह (आषाढ़) के दूसरे तिथि में माता देवकी ने गर्भ में शिशु होने की पुष्टि की। इसके बाद पूरे हिन्दू समाज ने जल देवता का प्रार्थना कर अभिवादन किया। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन आकाश से बेमौसम मूसलाधार बारिश हुई और माता देवकी ने एक चमत्कारी शिशु को जन्म दिया।
भगवान झुलेलाल के जन्म लेते ही उनके मुख को खोला गया जिसमें सिंधु नदी के बहने का दृश्य था। पूरे हिन्दू समुदाय ने बच्चे के जन्म लेते ही गीतों और नृत्यों के साथ उसका स्वागत किया।
झूलेलाल जी का नामकरण :
झूलेलाल जी का नाम बचपन में उदयचंद रखा गया। उदयचंद को उदेरोलाल भी कहा जाने लगा। नसरपुर के लोगों ने प्यार से बच्चे को अमरलाल (Immortal) कहने लगे। जिस पालने में वह रहते थे वह अपने आप झूलने लगता था, जिसके बाद ही उन्हें झूलेलाल कहा जाने लगा, और वह इसी नाम से लोकप्रिय हुए।
मिरखशाह के मंत्री और भगवान झूलेलाल :
रहस्यमय और चमत्कारी बच्चे के जन्म की बात सुनकर मिरखशाह ने पंचों को अपने दरबार में बुलाया। और उनके सामने दोबारा अपने फरमान को सुनाया। लेकिन इस बार सिंधी हिन्दू समुदाय पूरी तरह आश्वस्त थे कि उनका उद्धारक अब आ चुका है।
मिरखशाह को जब जल देवता की बच्चे (झूलेलाल जी) के रूप जन्म लेने की बात पता चली तो उसने सबके सामने उसका जमकर मजाक उड़ाया। मिरखशाह ने कहा “ना तो मैं मरने जा रहा हूँ और ना ही तुम लोग यह जमीन जिंदा छोड़ने जा रहे हो। मैं तुम्हारे उस उद्धारक से ही इस्लाम कबूल करवाऊंगा और उसके बाद तुम लोग भी यही करोगे।”
मिरखशाह ने अपने एक मंत्री अहिरियो को जाकर उस बच्चे को देखने को कहा। अहिरियो गुलाब के फूल में जहर मिलाकर अपने साथ लेकर बच्चे से मिलने गया। जब अहिरियो ने बच्चे को देखा तो वह पूरी तरह चौक गया था। उसने झुलेलाल जी को जहर से भरा गुलाब का फूल दिया जिसे झूलेलाल जी ने रख लिया। और फिर एक फूंक में गुलाब को उड़ा दिया। इसके बाद अहिरियो ने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति उसके सामने था। फिर अचानक वह 16 वर्ष के किशोर में बदल गया। और इसके बाद अहिरियो ने झुलेलाल जी को घोड़े पर बैठे और हाथ में धधकती तलवार के साथ देखा। उसके पीछे और योद्धा भी थे। यह सब देखकर अहिरियो भाग खड़ा हुआ।
अहिरियो ने मिरखशाह को आकार सारी जानकारी दी। लेकिन मिरखशाह ने इसे मजाक समझा। मिरखशाह ने इसे सामान्य जादू की गई या आंखों में धोखा डाली गई वाली बात कही। लेकिन उसी रात मिरखशाह के सपने में कुछ देखा। मिरखशाह ने देखा कि एक बच्चा उसकी गर्दन पर बैठा हुआ है। फिर वह बूढ़ा बन गया। और इसके बाद तलवार पकड़ा हुआ एक योद्धा भी बन गया। अगली सुबह मिरखशाह ने अहिरियो को बुलाकर उस बच्चे से निपटने के आदेश दिए लेकिन अहिरियो ने मिरखशाह को जल्दबाजी नहीं करने को कहा।
भगवान झूलेलाल के चमत्कार :
इन सब के बीच, बालक उदेरोलाल (भगवान झूलेलाल) चमत्कार कर रहा था। नसरपुर के लोग पूर्णतः आश्वस्त थे कि उन्हें बचाने साक्षात ईश्वर ने जन्म लिया है। उदेरोलाल ने गोरखनाथ से “अलख निरंजन” का गुरु मंत्र भी प्राप्त किया।
उदेरोलाल की सौतेली माँ उन्हें फल देकर बेचने भेजती थी। उदेरोलाल बाजार जाने के बजाय सिंधु तट पर जाकर उन्हें बुजुर्गों, बच्चों, भिक्षा मांगने वालों और गरीबों को दे देते थे। वहीं उसी खाली बक्से को लेकर वह सिंधु में डुबकी लगाते और जब निकलते तो वह बक्सा उन्नत किस्म के चावल से भरा होता जिसे ले जाकर वह अपनी माँ को दे देते।
रोज-रोज उन्नत किस्म के चाँवल को देखकर एक दिन उनकी मां ने उनके पिता को भी साथ भेजा। जब रतनचंद ने छुपकर उदेरोलाल (भगवान झूलेलाल) का यह चमत्कार देखा तो उन्होंने झुककर उन्हें प्रणाम किया और उन्हें साक्षात ईश्वर के रूप में स्वीकार किया।
मिरखशाह और भगवान झूलेलाल :
दूसरी तरफ मिरखशाह के ऊपर मौलवियों द्वारा लगातार हिंदुओं को इस्लाम में लाने का दबाव डाला जा रहा था। उन्होंने उसे अल्टीमेटम दिया। “काफिरों को इस्लाम में बदलने का आदेश दिया।” मौलवियों की बात और अपने इस्लामिक अहंकार में मिरखशाह ने उदेरोलाल से खुद मिलने का फैसला किया। उसने अहिरियो को मिलने की व्यवस्था करने को कहा।
अहिरियो, जो इस बीच में जलदेवता का भक्त बन गया था, सिंधु के तट पर गया और जल देवता से अपने बचाव में आने की विनती की। अहीरियो ने एक बूढ़े आदमी को देखा, जिसमें एक सफेद दाढ़ी थी, जो एक मछली पर तैर रहा था। अहिरियो का सिर आराधना में झुका और उन्होंने समझा कि जल देवता उदेरोलाल हैं। फिर अहिरियो ने एक घोड़े पर उदेरोलाल को छलांग लगाते हुए देखा और और उदेरोलाल एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक झंडा लिए हुए निकल गए।
मिरखशाह जब उदेरोलाल जी के सामने आया तो उन्हें भगवान झूलेलाल (उदेरोलाल) ने ईश्वर का मतलब समझाया। लेकिन कट्टरपंथी मौलवियों की बातें और इस्लामिक कट्टरपंथ लिए बैठा मिरखशाह उन सभी बातों को अनदेखा कर अपने सैनिकों को झूलेलाल जी गिरफ्तार करने का आदेश देता है।
जैसे ही सैनिक आगे बढ़े वैसे ही पानी की बड़ी बड़ी लहरें आंगन को चीरती हुई आगे आ गई। आग ने पूरे महल को घेर लिया और सब कुछ जलना शुरू हो गया। सभी भागने के मार्ग बंद हो गए। उदेरोलाल (भगवान झूलेलाल) ने फिर कहा कि “मिरखशाह इसे खत्म करो! आखिर तुम्हारे और मेरे भगवान एक हैं तो फिर मेरे लोगों को तुमने क्यों परेशान किया ?”
मिरखशाह घबरा गया और उसने झूलेलाल जी से विनती की, “मेरे भगवान, मुझे अपनी मूर्खता का एहसास है। कृपया मुझे और मेरे दरबारियों को बचा लो।”
इसके बाद सारी जगह पानी की बौछार आई और आग बुझ गई। मिरखशाह ने सम्मानपूर्वक नमन किया और हिंदुओं और मुसलमानों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए सहमत हुआ।
इससे पहले कि वे तितर-बितर होते, उडेरोलाल ने हिंदुओं से कहा कि वे उन्हें प्रकाश और पानी का अवतार समझें। उन्होंने एक मंदिर बनाने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा “मंदिर में एक मोमबत्ती जलाओ और हमेशा पवित्र घूंट के लिए पानी उपलब्ध रखो।”
यहीं उदेरोलाल ने अपने चचेरे भाई पगड़ को मंदिर का पहला ठाकुर (पुजारी) नियुक्त किया। भगवान झूलेलाल ने पगड़ को सात सिंबॉलिक चीजें दी। भगवान झूलेलाल ने पगड़ को मंदिरों के निर्माण और पवित्र कार्य को जारी रखने का संदेश दिया।
निष्कर्ष :
भगवान झूलेलाल ने अपने चमत्कारिक जन्म और जीवन से ना सिर्फ सिंधी हिंदुओं के जान की रक्षा की बल्कि हिन्दू धर्म को भी बचाये रखा। मिरखशाह जैसे ना जाने कितने इस्लामिक कट्टरपंथी आये और धर्मांतरण का खूनी खेल खेला लेकिन भगवान झूलेलाल की वजह से सिंध में एक दौर में यह नहीं हो पाया। भगवान झूलेलाल आज भी सिंधी समाज के एकजुटता, ताकत और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र हैं।
भगवान झूलेलाल ने अपने भक्तों से कहा कि मेरा वास्तविक रूप जल एवं ज्योति ही है। इसके बिना संसार जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने समभाव से सभी को गले लगाया तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देते हुए दरियाही पंथ की स्थापना की।
सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का था। सिंधी समुदाय चेटीचंड पर्व से ही नववर्ष प्रारम्भ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं। इस दिन सूखोसेसी प्रसाद वितरित करते हैं। चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरुष तालाब या नदी के किनारे दीपक जला कर जल देवता की पूजा-अर्चना करते हैं.