पठान और पाकिस्तान
पाकिस्तान बना था इस्लाम की प्रेरणा से. उस समय के अखंड भारतवर्ष के मुसलमान एक अलग देश चाहते थे. इसलिए पाकिस्तान के नाम में ही इस्लाम हैं. ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान’ अर्थात ‘इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान’ यह इस राष्ट्र का पूरा नाम हैं.
लेकिन प्रश्न यह हैं, क्या मात्र इस्लाम के नाम पर एक राष्ट्र खड़ा हो सकता हैं..? इरान और ईराक, दोनों मुस्लिम राष्ट्र हैं. लेकिन दोनों के बीच कई युध्द हो चुके हैं. ईराक ने कुवैत पर कई बार हमले किये हैं. सीरिया को ध्वस्त करने में मुस्लिम संगठनों का बड़ा हाथ हैं. पाकिस्तान की अफगानिस्तान से नहीं पटती…. ऐसे अनेक उदाहरण हैं. ये सभी इस्लामी राष्ट्र हैं, लेकिन आपस में झगड़ते हैं. अर्थात, मात्र मुस्लिम होना, यह किसी राष्ट्र को बांधे रखने का आधार नहीं हो सकता हैं.
पाकिस्तान बनाते समय, उसे बनाने वाले शायद इसी बात को भूल गए थे..! इसीलिए आजादी के पच्चीस वर्ष पूरे होने के पहले ही, पाकिस्तान से, उसका बहुत बड़ा भूभाग, भाषा और स्थानिक संस्कृति को लेकर अलग हो गया था. पूर्व बंगाल की जनता और नेता, प्रमुखता से मुस्लिम ही थे. शेख मुजीबुर्र रहमान पांच वक्त नमाज पढने वाले मुस्लिम थे. लेकिन उनकी नहीं बनी. १९७० – ७१ के दौरान, पश्चिम पाकिस्तान के शासकों ने लाखों की संख्या में पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं को तो मारा ही. साथ ही, वहां के मुसलमानों को भी मारा…. एक ही धर्म के मानने वालों ने ऐसा किया. कारण, मुस्लिम धर्म यह राष्ट्र को खड़ा करने का साधन या आधार हो ही नहीं सकता, यह पाकिस्तानी समझ ही नहीं पाएं. और बंगला देश, एक अलग राष्ट्र के रूप में खड़ा हुआ.
यही बात पाकिस्तान के अन्य प्रान्तों में हो रही हैं. नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के साथ भी यही हुआ, और यही हो रहा हैं. नेहरु और अंग्रेजों के कारण, गांधीजी को और कांग्रेस को मानने वाला यह महत्वपूर्ण प्रदेश पाकिस्तान में चला गया. उस पाकिस्तान में, जिसकी भाषा प्रमुखता से पंजाबी और उर्दू थी. बंगाली भी प्रारंभ में चलती थी. लेकिन इस NWFP में रहनेवाले अधिकतर, या तो पश्तो बोलते थे, या हिंदको. न तो भाषा की समानता थी, ना रीति-रिवाजों की. इसलिए १९४७ में पाकिस्तान के बनने से ही, पठान, दिल से कभी भी पाकिस्तान के साथ नहीं रहे.
उनके सर्वमान्य नेता, बादशाह खान अर्थात खान अब्दुल गफ्फार खान को तो पाकिस्तान ने उनके मरते तक भरपूर अपमानित किया. बार बार उन्हें पकड़कर जेल में ठूंस दिया जाता था. ९८ वर्ष के आयु में जब उनका इंतकाल हुआ, तब भी वे पेशावर में नजरबन्द थे..!
ये सारा प्रदेश पहाड़ी हैं, जनजातियों से भरा हैं, अविकसित हैं, लेकिन गजब का सुन्दर हैं. ऐसा लगता हैं, निसर्ग ने अपनी सारी कृपा इस प्रदेश पर बरसाई हैं. पाकिस्तान में कुल २९ नेशनल पार्क हैं, जिन मे से १८ पार्क, इस प्रदेश में हैं. झेलम, सिन्धु, काबुल, कुर्रम, स्वात, पंजकोरा, कुनार, कुंहर… इन नदियों ने इस पूरे प्रदेश को हरा-भरा और प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर बना दिया हैं. हिन्दू कुश की पर्वत श्रेणियों ने इसे दुर्गमता के साथ सृष्टि का वैभव दिया हैं. इस प्रदेश में प्रमुखता से पश्तुनी लोग रहते हैं, जो पाकिस्तान में पंजाबियों के बाद, दूसरा सबसे ज्यादा संख्या वाला समूह हैं।
पेशावर यह NWFP, जो आज खैबर पख्तुनख्वा कहलाता हैं, की राजधानी हैं. दक्षिण आशिया का प्राचीनतम शहर. ईसा पूर्व ५३९ वर्षों का इतिहास, इस शहर में मिलता हैं. किसी जमाने में यह हिन्दुओं की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिक, ‘पुरुषपुर’ शहर था. वैभवशाली और संपन्न. बौध्दों के लिए भी यह एक पवित्र स्थल था.
आज वही पेशावर शहर आतंकी हमलों से बदतर हो गया हैं. प्रदुषण की भरमार, तंग गलियां और आतंकी हमलों की आशंका… यह पेशावर का स्थायीभाव बन गया हैं.
पहले अमेरिकी जासूसों ने, अफगानिस्तान के रुसी सैनिकों से लड़ने के लिए इसका उपयोग किया. फिर रुसी सैनिक चले जाने के बाद, तालिबानी सैनिकों ने पेशावर को अपना ठिकाना बनाया. पाकिस्तान ने भी इस पूरे क्षेत्र को ‘आतंकवाद का अड्डा’ बनाए रखा. इसी प्रदेश के आबोटाबाद में पाकिस्तानी सेना ने ‘ओसामा बिन लादेन’ को अनेक वर्षों तक छुपाएं रखा था. यहां पाकिस्तानी प्रशासन बिलकुल लचर हैं. २०१४ में इसी शहर में तालिबानियों ने १३२ स्कूली बच्चों को मौत के घात उतारा था.
प्रारंभ से ही इस NWFP में पाकिस्तान के विरुध्द, विरोध का वातावरण रहा. लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र, और वनवासी जनजाति समुदाय होने के कारण पाकिस्तान ने कभी इस क्षेत्र पर ध्यान दिया ही नहीं. इसलिए विरोध के स्वर ज्यादा बुलंद नहीं हो सके. लेकिन नब्बे के दशक के बाद, अमरीका ने, अफगानिस्तान के रूसियों से लड़ने के लिए इसी क्षेत्र को युध्दभूमि बनाया, और सारे समीकरण बदलते चले गए. अमरीका ने ९/११ होने के बाद तो इस प्रदेश को युध्दभूमि मान लिया था. पठानों पर अत्याचार होने लगे. और पाकिस्तान, अमरीकी सेना का समर्थन कर रहा था. सारे पठान, पाकिस्तान के विरोध में होते गए. विरोध का यह वातावरण ऐसा बढ़ता गया, की सन २००९ में इस NWFP प्रदेश के प्रमुख सड़कों पर चालीस फीट के बड़े से होर्डिंग्स लगे थे, पाकिस्तान के विरोध में. तब तक यह इलाका ‘आतंकवाद का गढ़’ बन चुका था.
सन २०१० में पाकिस्तानी प्रशासन ने इसे सुधारने के लिए कुछ करने का सोचा. उन्होंने इसका नाम बदल दिया. NWFP से यह ‘खैबर पख्तूनख्वा बन गया. सन २०१८ में इस प्रदेश में पाकिस्तान का अर्ध स्वायत्त प्रदेश, FATA (Federally Administered Tribal Areas) विलीन कर दिया. लेकिन अन्य कोई बदलाव नहीं हुआ. आतंकी गतिविधियाँ वैसेही चलती रही. पुश्तैनी निवास करनेवाले पठानों को यह सब सहन नहीं हो रहा था. उन्होंने अलग ‘पश्तुनिस्तान’ की मुहीम छेड़ रखी हैं.
‘उमर दौड़ खटक’ यह पश्तुनिस्तान समर्थक विद्रोही नेता हैं. ये पाकिस्तानी सेना में था. लेकिन अपने पश्तून प्रदेश में हो रहे पाकिस्तानी अत्याचार के विरोध में वो पाकिस्तानी सेना से भागा और अफगानिस्तान गया. वहां उसने ‘पश्तुनिस्तान लिबरेशन आर्मी’ बनाईं हैं, जिसका वह ‘मिशन कमांडर’ हैं. उमर का कहना हैं, ‘उसके जैसे अनेक युवा, पाकिस्तानी अत्याचार के विरोध में देश छोड़कर, उसकी ‘पश्तुनिस्तान लिबरेशन आर्मी’ में शामिल हो रहे हैं’.
उमर ने पाकिस्तानी सेना पर आरोप लगाया हैं, की ‘वे (पाकिस्तानी सेना), वजीरिस्तान और स्वात इलाके की पश्तूनी महिलाओं को, ‘हवस का गुलाम’ बनाकर रखती हैं. उसका कहना हैं की सैकड़ों की संख्या में पश्तूनी महिलाओं को पाकिस्तानी सेना ने, उनका काम होने के बाद, लाहौर के वेश्यालयों में भेज दिया हैं.’
उमर दौड़ खटक अनेकों बार भारत आ चुका हैं. पूरे पश्तुनिस्तान में फैले विद्रोह का, पाकिस्तान के प्रति गुस्से का, वो प्रतिक हैं…!
इस्लामाबाद के बैठे पाकिस्तानी शासकों के खिलाफ, खैबर पख्तूनवा के लड़ाकू पठानों ने हमेशा ही आवाज बुलंद की हैं। और इस्लामाबाद की सरकार ने उन्हे हमेशा ही दबाने की कोशिश की हैं।
पाकिस्तानी सरकार के विरोध के आंदोलनों की इस शृंखला में २०१४ से एक जबरदस्त नाम सामने आ रहा हैं – ‘पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट’. अर्थात ‘पख्तून रक्षा आंदोलन’. डेरा इस्माइल खान की ‘गोमल यूनिवर्सिटी’ में पढ़ने वाले आठ लड़कों ने, लगभग पांच वर्ष पहले यह आंदोलन खड़ा किया. पहले इसका नाम ‘महसूद तहफ्फुज’ था। महसूद यह वज़ीरिस्तान की एक जनजाति का नाम हैं, जिसके अधिकतर छात्र, गोमल यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे.
लेकिन १३ जनवरी, २०१८ को इस आंदोलन के एक नेता, नकिबुल्लाह महसूद को पुलिस ने कराची में एक झूठे एनकाउंटर में मार गिराया। इससे छात्रों का गुस्सा भड़का और आंदोलन भी पूरे प्रदेश में फ़ैल गया। आंदोलन के इस फैलाव के बाद, इसके नाम में से महसूद शब्द हटाकर, ‘पख्तून’ कर दिया गया। आज यह आंदोलन खैबर पख्तूनवा के साथ, बलूचिस्तान प्रांत में भी फ़ैल रहा हैं। इसे पाकिस्तानी, ‘पी टी एम’ (Pashtun Tahafuz Movement) इस नाम से जानते हैं।
दिनांक २६ मई, २०१९ को, नॉर्थ वज़ीरिस्तान जिले के खारकमर मिलिट्री चेक पोस्ट पर, पी टी एम के, शासन विरोधी प्रदर्शन चल रहे थे। आंदोलन में लग रहे नारों से बौखलाकर पाकिस्तानी सेना ने इन प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंद गोलियां चलाई। इसमे पी टी एम के १३ कार्यकर्ता मारे गए और २५ गंभीर रूप से जख्मी हुए। इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। पाकिस्तानी सेना के विरोध में प्रदर्शन तीव्र होने लगे। पाकिस्तानी सेना ने पी टी एम के धाकड़ सांसद, आली वझीर और मोहसीन डावर को गिरफ्तार किया। २१ सितंबर तक ये दोनों, सेना के जेल में रहे। लेकिन विरोध का आंदोलन रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। आखिरकार पड़ोसी देश भारत, जब अपना गणतंत्र दिवस मना रहा था, अर्थात २६ जनवरी २०२० को, पाकिस्तानी पुलिस ने, पी टी एम के निर्विवाद नेता, ‘मंजूर पश्तिन’ को पेशावर से उठा लिया।
मंजूर पश्तिन यह खैबर पख्तूनख्वा के लोगों की आवाज हैं। वे मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं। उन्हे पाकिस्तान में तथा पाश्चात्य मीडिया मे, ‘नया फ्रंटीयर गांधी’ कहा जाता हैं। मात्र २६ वर्ष की आयु का यह लड़का, पूरे पी टी एम का नेतृत्व करता होगा, ऐसा लगता नही। मंजूर पश्तिन, एक उजबेकि टोपी पहनता हैं, उसे माझरी हैट कहते हैं। पशतुनी युवाओं में यह टोपी इतनी ज्यादा लोकप्रिय हो गई हैं, की लोग उसे अब मंजूर के नाम से ‘पश्तिन टोपी (Pashtin Hat) कहने लगे हैं। मंजूर पश्तिन को मानने वाले लाखों कार्यकर्ता खैबर पख्तूनवा में हैं। इसलिए २६ जनवरी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, पी टी एम के दो सांसद, अली वझीर और मोहसीन डावर ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किए।
पाकिस्तान में ३ से ४ करोड़ पश्तुन रहते हैं। आज उनका सर्वमान्य नेता, मंजूर पश्तिन हैं। पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तानी सेना, इस छब्बीस वर्षीय युवा नेता से इतनी ज्यादा डरी हुई हैं, की वह उसे जेल के बाहर देखना पसंद नही करती। पाकिस्तान सरकार को लगता हैं की शायद मंजूर पश्तिन को गिरफ्तार कर के, वे पी टी एम का आंदोलन कुचल देंगे। लेकिन ऐसा संभव नही हैं। आज तक, पाकिस्तान की सेना और पुलिस से लड़ते हुए, पचास हजार से ज्यादा पश्तुन, मारे गए हैं। पाकिस्तान की सेना, पूरे बर्बरता के साथ, इस आंदोलन को कुचलना चाहती हैं।
सारा वज़ीरिस्तान इस समय असंतोष की आग में उबल रहा हैं। पश्तुनों के मानव अधिकारों से प्रारंभ यह आंदोलन अब पुरजोर तरीके से, ‘स्वतंत्र पश्तूनिस्तान’ की मांग कर रहा हैं। ऐसे समय में मंजूर पश्तिन को गिरफ्तार करना, सन १९७१ में बंगाल के ‘अवामी लीग’ के नेता, शेख मुजीबुर रहमान की गिरफ्तारी याद दिलाता हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में अलगाव वाद के स्वर बुलंद होते जा रहे हैं। पाकिस्तानी सेना को और प्रशासन को, इस सीमावर्ती प्रदेश में अपना प्रशासन कायम करना, दिनों दिन कठिन होता जा रहा हैं।
– प्रशांत पोळ