किस रज से बनते कर्मवीर … भाग १

मैं सुबह नहाकर थोड़ा पूजा पाठ करके भोजन करने बैठा ही था कि तभी मोबाइल की घंटी बजी मैंने अपनी पत्नी को बोला कि जरा फोन उठाना वो कहती है रोटी खा लो फिर दिन भर फोन पर ही बात करनी है इस लॉक डाउन में और काम ही क्या है ..?
फोन मित्र विनोद का था वो संघ का कार्यकर्ता जो आजकल दिन रात निरर्थक समाज सेवा में लगा हुआ था मैं भी उस पर चिढ़ता रहता था कि तुम ही क्यों फालतू परेशान हो रहे हो सबका पेट भरना तो सरकार का काम है तुम्हे कोरोना हो गया तो…
पहिले मन मे आया कि भोजन के बाद बात कर लेंगे पर मन नही माना और फोन उठाया तो उसकी आवाज आई \” कहाँ..? घर पर ही हो\’ मैंने कहाँ हाँ घर पर ही हूँ \” उसने बोला \”अपने यहां तो सभी अभावग्रस्त परिवारों को राशन पैकिट मिल गए कोई छूट तो नहीं गया.. ?\” मैंने कहा कि उसकी गली में तो सब सक्षम है किसी को जरूरत नहीं है उसने कहा \”अरे भाई जरा ध्यान लगाकर सोचो वो कोने पर प्रेस करने वाला रहता है उसके यहां कल राशन नहीं था रात को पता चला तो साढ़े दस बजे राशन पैकिट देने गया तब उनके यहां रोटी बनी कोई और ऐसा ध्यान में आये तो बताना\” ऐसा कहकर उसने फोन काट दिया भोजन की थाली सामने थी पत्नी लगभग झल्लाते हुए बोली फोकट की बातें बाद में करना पहिले भोजन कर लो ….
मेरा मन सोचने के लिए विवश हो गया था कि मेरी गली में कोई भूखा था मुझे पता नहीं पड़ा और वो दूसरे मुहल्ले से आकर उसे राशन दे गया मैं अपने आप को कितना अच्छा समझता था समय पर घर आना अपने काम से मतलब रखना.. बस । समाज की चिंता मैं क्यों करूँ समाज हमे खाने को दे रहा है क्या ? ऐसा ही सोचता था मैं… अचानक फिर मोबाइल की घंटी बजी फिर से विनोद का ही फोन था..
उसने बड़े संकोच करके कहा \” अरे यार एक दिक्कत आ गयी इसके लिए फोन लगाया था पर मैं कह नहीं पाया कल रात को तो घर पर कुछ चावल रखे थे तो काम चल गया था आज मुहल्ले में भोजन पैकिट बांट कर लौटा तो पत्नी ने मुझे देखा और रो पड़ीं मुझसे रहा नहीं गया तुझे फोन लगाया और बता भी नहीं पाया आज घर की स्थिति काफी नाजुक है इस लोक डाउन में आय का कोई साधन है नहीं .. इसके बाद काम करके मैं तुम्हे लौटा दूँगा ।ऐसे शब्द सुनते ही मैं बोल पड़ा कि यार तू तो संघ का अच्छा जिम्मेदार करता है और हां तुम तो रोज ही कई सारे पैकेट भोजन के पैकेट बांटते हो इतना सारा लोगों को दे रहे हो तो उसमें से कुछ पैकेट अपने घर में भी रख लो इसमें क्या समस्या है ..?
नहीं यार वो पैकिट अभावग्रस्त लोगों की सूची है उनके लिए है और संघ ने तो यही सिखाया कि स्वयंसेवक वो होता है जो अपने घर का खाकर समाज का काम करता है लंबी सांस लेते हुए उसने कहा कि यार संघ के काम को तुम नहीं समझोगे । मेरे पास 50 भोजन के पैकेट बांटने की जिम्मेदारी है और मैं वह सभी राशन के पैकेट सूचीबद्ध अभावग्रस्त लोगों को नियमित पहुंचाता हूं एक भी पैकेट अगर समय पर नहीं पहुंचा तो वो परिवार भूखा ही रह जायेगा संघ के स्वयंसेवक के रहते हिंदू समाज भूखा रह रह गया तो स्वयं सेवक के जीवन की सार्थकता ही क्या है यह जो राशन पैकेट है वह स्वयंसेवकों के लिए नहीं है समाज के लिए हैं ।
भोजन थाली में लगभग ठंडा हो चुका था, मैं उठकर रसोई में गया एक झोले में दाल चावल,तेल और आटा रखा और विनोद के घर की ओर निकल पड़ा आज मन को बहुत ही अच्छा लग रहा था क्योंकि विनोद के घर की ओर बढ़ते हर कदम पर मैं स्वयंसेवक बन रहा था और मन में एक ही भाव बार बार हिलोरे मार रहा था .. किस रज से बनते कर्मवीर।

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