छद्म नारीवाद और दिशाहीन समाज के लिए रामायण का महत्त्व..
तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार। राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार॥
‘ राम’ अर्थात चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म। करुणा, सदाचार और न्याय के प्रतीक, ‘राम’ मात्र शब्द नहीं है, जीवन का आधार हैं और राम की जीवन यात्रा का सार है ‘ रामायण ‘ जिसमें ज्ञान,कर्म और उपासना की त्रिवेणी प्रवाहित होती है। अनगिनत विशेषताओं से युक्त यह धार्मिक ग्रन्थ विश्व कल्याण के लिए परम अनुकरणीय और सभ्य समाज के निर्माण के लिए प्रेरणा है इसीलिए ‘ राम ‘ और ‘ रामायण ‘ सनातन संस्कृति में पूजनीय है।
राम श्रीहरि के अवतार,संपूर्ण ब्रह्मांड के अधिपति, अपार शक्ति संपन्न,किस समस्या का समाधान न होगा उनके पास! वह चाहते तो एक क्षण में रावण का अंत कर सकते थे परंतु उन्होंने मानवोचित कर्म को प्रधानता दी,कष्ट सहे और राम अवतार को सार्थक किया,कभी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया वहीं, रावण ने शक्ति के घमंड में सर्वनाश कर दिया! स्थिति आज भी वही है, मानव शक्ति संपन्न होते ही दंभी, दुराचारी बन बैठता है,शक्ति और सत्ता का अनुचित प्रयोग कर, अराजकता निर्मित करता है,समाज में असामंजस्य बढ़ाता है परिणाम स्वरूप मानव समाज,असभ्य और असहिष्णु होता जा रहा है! श्रीराम ने समाज को मानवता का पाठ पढ़ाया था,युद्ध कभी भी राम की चाह नहीं थी,प्रजा और निर्दोष प्राणियों की रक्षा उनका कर्तव्य था इसलिए उन्होंने रावण को समझाने के अनेक प्रयास किए परंतु अधर्म कब धर्म को समझ सका है!विश्व सामंतो को भी रामायण से यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि शक्ति का अर्थ दूसरों पर शासन या शोषण करना नहीं होता,शक्ति का उद्देश्य बुराई का अंत और समाज का उत्थान होना चाहिए।
रामायण,सामाजिक समरसता के साथ रामराज्य की परिकल्पना को पूर्ण करती है। सामाजिक सद्भाव का महत्व बताने के लिए राम ने हर वर्ग को जोड़ा,समाज में मर्यादा बनी रहे इसलिए राम,त्रिभूवन नाथ होकर भी, संत,महात्माओं के आगे नतमस्तक हुए,छोटे -बड़े सभी को यथायोग्य सम्मान दिया,राम के अलावा और कौन मर्यादा का सर्वोत्तम उदाहरण हो सकता है! रामायण प्रेरित करती है, सामाजिक जीवन में लोकाचार को,अनुशासित, सच्चरित्र और नीतियुक्त बनाने के लिए क्योंकि समाज, हमारे ही व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। समाज निर्माण में जितना पुरुष का योगदान है उतना ही स्त्री का।भारतीय संस्कृति, आधुनिक मानस तथा समाज शास्त्र में भी यह स्वीकारोक्ति है कि समाज के निर्माण में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि स्त्री न केवल जन्मदात्री होती है बल्कि संतति को निडर, संस्कारी, राष्ट्रभक्ति के साथ नैतिक गुण भी प्रदान करती है।रामायण मे भी सभ्य समाज के निर्माण का संदेश है ओर इस ग्रंथ में भी एक नहीं अनेक ऐसी महान विदुषी नारियों का उल्लेख है जो हमारी संस्कृति की रीढ़ को सदृढ़ बनाती है, जिनकी विद्धमानता ही रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथ को गौरवान्वित करती है।
रामायण की एक और विशेषता यह है कि इसमें वर्णित सभी नारी पात्र चाहे वह मानव हों या दानव उनका चरित्र स्तुत्य है।रामायण में राम की भांति ही, नारी भूमिका की समस्त पात्रों का मर्यादाशील आचरण वर्णित है जो वर्तमान की उन्मुक्त, स्वच्छंद,भ्रमित आधुनिक नारी और दिशा हीन समाज को,भारतीय संस्कृति और सभ्यता से परिचित करवाता है।रामायण युगीन नारी की विशिष्टता यह है कि उनके अंतःकरण में आर्यावर्त की संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा है।वह समयानुसार अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के साथ ही रामायण की कथा को अपने दायित्वनुसार आदर्श रूप में सुशोभित करती हैं।
रामायण की प्रत्येक महिला पात्र, नारी गुणधर्म की सकारात्मक व नकारात्मक मनोदशा को अपने चारित्र्य अनुसार प्रकट करती हैं जिसमें सबसे प्रमुख पात्र सीता, कैकेयी, मंथरा, शूर्पणखा और मंदोदरी न होतीं तो रामायण का स्वरूप ही भिन्न होता।तुलसी रामायण और वाल्मीकि रामायण में इन पांच नारियों की महती भूमिका है।
छद्म नारीवाद का समर्थन करती आधुनिक नारियों के लिए प्रेरणात्मक बातें…
1. सीता:-
सीता का संपूर्ण जीवन धरती के समान धैर्य,त्याग और तपस्या का पर्याय बना।स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारतीय नारियों को जैसा होना चाहिए, सीता उसका आदर्श रूप हैं।सीता, मन,वचन और कर्म से अपने पति में अनुरक्त हैं।श्रीराम के हर सुख-दुख की अनुगामिनी,विषम परिस्थितियों में भी अपने पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली देवी सीता, आदर्श बेटी, आदर्श पत्नी, आदर्श माँ,और बहु का उत्कृष्ट रूप हैं।आधुनिक नारी जो मात्र आर्थिक रूप से सक्षम हो जाने पर ही निरंकुश हो,अमर्यादित आचरण कर अपने कुल और परिवार का मान नहीं रख पाती,परिवार, रिश्ते, ओर विवाह जैसे पवित्र बंधन के महत्त्व समझ पाने में असमर्थ हैं,उनके लिए सीता का जीवन प्रेरणादाई है।
2. कैकेयी:-
बिना इस पात्र के रामायण अपूर्ण होती।कोई स्वपन में भी विचार नहीं कर सकता था कि राम पर असीम ममता लुटने वाली माता ही उनके लिए चुनौती बन जाएगी!कैकयी का चरित्र यह शिक्षा देता है कि अगर हठ और स्वार्थ नियंत्रण हीन हो जाए तो वह परिवार और समाज के लिए अहितकारी हो जाता है।कैकयी का पश्चाताप यह सिद्ध करता है कि किसी दुरबुद्धि,अविवेकी व्यक्ति के बहकावे में आकर आपका अनुचित हठ आपके साथ दूसरों को प्रताड़ित तो करता ही है,किसी के प्राण भी ले सकता है इसलिए कुसंगती से बचें।
3. मंथरा:-
ईर्ष्यालु, कपटी स्त्री, रामायण की एक महत्वपूर्ण और कदाचित सबसे घृणित पात्र मानी जाती है। जितनी कैकयी और भरत से प्रीति उतनी ही श्रीराम से अप्रीति। बुराई, अच्छाई पर ऐसी हावी होती है कि बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है। रानी कैकयी विदुषी नारी थी फिर भी, मंथरा उसके उद्देश्य में सफल हो जाती है क्योंकि स्वार्थ एक ऐसी वृत्ति है जो मानव चित्त को विचलित कर देती है मंथरा उसी वृत्ति का नाम है।मंथरा जैसी वृत्ति, कभी सही सलाह नहीं दे सकती,ऐसी स्त्रियों से दूर रहना चाहिए।
4. शूर्पणखा:-
शूर्पणखा,उन्मुक्त,व्यभिचारी,विकृत मानसिकता युक्त स्त्री अगर आज की स्वच्छंद नारी की तुलना इससे की जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी बस इतना ही अंतर होगा की वह राक्षसी थी। ऐसी स्त्री जो एक पुरुष से अस्वीकृत होकर दूसरे के पास जाती है और अपनी नाक कटवा बैठती है, इस विचार को पुष्ट करती है कि सदाचारी पुरुष और सभ्य समाज कभी ऐसी स्त्री का सम्मान नहीं करते।नाक को सम्मान का प्रतीक माना जाता है वह नाक कटवा कर समाज में चरित्रहीन कहलाती है।शूर्पणखा ने निरंतर अपने भयावह व्यक्तित्व को बरकरार रखा है जो हमें आज भी निरंकुश, लज्जाहीन नारियों में दिख सकती है।जबकि सीता ने भक्ति,त्याग और पतिव्रत गुणों के कारण अपनी पूजनीय स्थिति यथावत रखी है।
5. मंदोदरी:-
मंदोदरी, रूपमती,विदुषी, नारी जो रावण को भी सलाह देती थी। सीता हरण पश्चात भी उसने रावण को कई बार समझाया था कि श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं हैं उनसे शत्रुता उचित नहीं।वह चाहे तो अब भी काल की दिशा को मोड़ सकता है,लंका और नगरवासियों की महा विनाश से रक्षा कर सकता है परंतु अहंकारी रावण बात न मानकर सम्पूर्ण राक्षस कुल के विनाश का कारण बन बैठा। मंदोदरी की ही भांति हर पत्नी का यह धर्म होना चाहिए की वह पति को कुमार्ग से सदमार्ग पर लाकर पत्नी धर्म निभाएं और पति को भी पत्नी से परामर्श अवश्य लेना चाहिए क्योंकि पत्नी से उत्तम कोई मित्र नहीं होता।
रामायण संपूर्ण मानवता की ऐसी अद्भुत सांस्कृतिक धरोहर है जिससे प्रेरणा लेकर हम भी आदर्श समाज को स्थापित कर सकते हैं।समाज जब एकजुट होता है तो कितनी भी बड़ी बुराई हो,उसे झुकना ही पड़ता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो संगठन में ही शक्ति है।भारत के किसी भी कालखंड पर दृष्टि डालिए, प्रत्येक पृष्ठ पर, किसी न किसी महान स्त्री की वीरता,उनकी पवित्रता दृष्टिगत होती है।स्वामी विवेकानंद के शब्दो में,स्त्री में ऐसे कई श्रेष्ठ गुण होते हैं जो पुरुष को अपना लेना चाहिए। प्रेम, सेवा, उदारता, समर्पण और क्षमा की भावना और यही समस्त गुण दिशाहीन समाज को भी सही मार्ग पर लाने का सामर्थ्य रहते हैं।
जय सियाराम