चिड़ियों से मैं बाज लडाऊ , गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ ! सवा लाख से एक लड़ाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!

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चिड़ियों से मैं बाज लडाऊ , गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ ! सवा लाख से एक लड़ाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!

गुरु गोबिंद सिंह ने दिया था पंच ककार पहनने का आदेश, आज भी प्रेरित करती हैं इनकी शिक्षाएं

गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया
शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बिहार के पटना में हुआ। इस बार यह तिथी 02 जनवरी को है। इनके बचपन का नाम गोबिंद राय था और वे दसवें सिख गुरु थे। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ वे एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था। गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
सिखों की 5 मर्यादाएं

कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था। सिखों के लिए 5 मर्यादाएं- केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन चीजों को पांच ककार कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है। गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। उन्होंने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी।

विद्वानों के संरक्षक

गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति बनी रहती थी। इस लिए उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था। सिख धर्म के लोग गुरु गोबिंद सिंह जयंती को बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। इस दिन घरों और गुरुद्वारों में कीर्तन होता है। खालसा पंथ की झांकियां निकाली जाती हैं। इस दिन खासतौर पर लंगर का आयोजन किया जाता है।

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