
ये अमित टंडन है! स्टैंड अप कॉमेडियन, याने कि खड़े हो कर लोगों को हंसाते हैं। इस क्षेत्र के बड़े कलाकार है। देश विदेश में इनके कार्यक्रम होते हैं और बड़ी संख्या में लोग महंगे टिकिट लेकर इन्हें सुनने या यूं कहे कि सुनकर हंसने जाते है।
अमित अपने सामान्य जीवन की गतिविधियों में से सहज हास्य की निर्मिती कर लेते हैं और बड़ी सफलतापूर्वक कर लेते हैं। इसके लिए न उन्हें गाली गलौज करनी पड़ती है, न भद्दे और अश्लील जुमले इस्तेमाल करने पड़ते हैं। अपनी अदायगी और अपनी चुटिली शैली से वे दर्शकों को हंसा लेते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वे IIT दिल्ली के छात्र रहे हैं और वहीं से उन्होंने BE, MBA किया है। गंभीर लेखन भी करते हैं और इकोनॉमिक टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में उनके लेख भी छपते रहे हैं।
लेखन में हास्य विनोद की पुरानी परम्परा रही है। अंग्रेजी में पी जी वुडहाउस, ऑस्कर वाइल्ड तो हिंदी में शरद जोशी, हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल और मराठी में महान पी एल देशपांडे, वी पी काले जैसे लेखकों और काका हाथरसी और ओमप्रकाश आदित्य जैसे कवियों ने उत्कृष्ट हास्य, विनोद और व्यंग्य की रचना की है। इनकी लिखी सैकड़ों पुस्तकों में एक भी गाली या अश्लील भाषा का कहीं स्पर्श भी नहीं है। अपने असाधारण निरीक्षण कौशल, व्यक्त करने की शैली और भाषा की गहरी पकड़ से इन लोगों ने जो लिखा उसने लोगों को हंसाया भी और साथ ही इन्होंने उन कहकहों के पीछे गंभीर मसलों को भी आगे बढ़ाया। अक्सर इनके विनोद के पीछे समाज के किसी हिस्से की गहरी पीड़ा भी छुपी रहती थी जो पाठक को सोचने पर मजबूर भी करती थी।
इस तुलना में गत 10-15 वर्षों में स्टैंड अप कॉमेडियन की जो बाढ़ पैदा हुई है, उनकी नजर में गाली और भद्दे शब्द ही हास्य है। वामपंथियों द्वारा अतिप्राचारित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सृजनात्मकता की स्वतंत्रता के नारों के पीछे घटिया हास्य विनोद को मुख्यधारा में स्थापित कर दिया गया है। कॉमेडियन किसी भी सीमा को मानने को तैयार नहीं है। चाहे पुरुष कलाकार हो या महिला, वे ऐसी भाषा का उपयोग करते हैं, ऐसे विचार सामने रखते है और ऐसी फूहड़ और भद्दी घटनाओं का जिक्र करते हैं कि सुनना असंभव हो जाता है। इस अत्यन्त फूहड़ कॉमेडियन वर्ग द्वारा तीक्ष्ण बुद्धि की जगह गालियों को हास्य – विनोद का आधार बना लिया गया। वामपंथी सर्व तन्त्र द्वारा बढ़ावा देकर इन्हें मुख्यधारा में स्थापित भी कर दिया गया।
मुझे लगता है,एक दर्शक और श्रोता के रूप में हमें इस दिशा में पहल पड़ने की आवश्यकता है। हमें ही शालीन और अभद्र हास्य के बीच की रेखा को गहरा करने का प्रयास करना होगा। हमें चाहिए कि हम अमित टंडन जैसे कलाकारों को समर्थन दें जिससे की स्वस्थ, सुसभ्य और शालीन हास्य को बढ़ावा मिले। स्वच्छ हास्य को साझा करने, लाइक करने और अभद्र हास्य को ब्लॉक करने की आदत बनाइए। शनै: शनै: परिणाम नजर आने लगेंगे।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर