निष्ठावान कार्यकर्ता : ओंकार भावे

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निष्ठावान कार्यकर्ता   : ओंकार भावे

विश्व हिन्दू परिषद का काम यों तो 1964 में प्रारम्भ हुआ; पर उसके प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि 1984 में प्रारम्भ हुए श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन से हुुई। इस दौरान जिन्होंने हर संघर्ष और संकट को अपने सीने पर झेला,उनमें श्री ओंकार भावे प्रमुख हैं। 

श्री भावे का जन्म 26 जुलाई, 1924 को आजमगढ़ (उ.प्र.) में श्रीमती लक्ष्मीबाई की गोद में हुआ था। उन दिनों उनके पिता श्री नरसिंह भावे वहां सरकारी सेवा में थे। 14 वर्ष की अवस्था में वे स्वयंसेवक बनेे। 1940, 41तथा 42 में उन्होंने प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय वर्ष का संघ शिक्षा वर्ग नागपुर से ही किया। 1945 में प्रयाग वि.वि. से बी.ए. कर उन्होंने प्रचारक के रूप में अपना जीवन संघ को समर्पित कर दिया।

भावे जी प्रयाग, हरदोई व अलीगढ़ में जिला तथा फिर आगरा व लखनऊ में विभाग प्रचारक रहे। लखनऊ में वे \’राष्ट्रधर्म प्रकाशन\’ के व्यवस्थापक तथा राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका के सह सम्पादक भी थे। इसके बाद वे प्रयाग विभाग, प्रयाग सम्भाग, काशी सम्भाग प्रचारक, पूर्वी उ.प्र. के शारीरिक तथा व्यवस्था प्रमुख भी रहे। 1962 में अलीगढ़ में लगे संघ शिक्षा वर्ग में वे मुख्य शिक्षक थे। इससे पहले तक वर्गों में मुख्य शिक्षक नागपुर से ही आते थे।

1975 में लगे आपातकाल में पुलिस उन्हें पूरे समय तलाशती रही; पर वे बाहर रहकर ही आंदोलन में सक्रिय रहे।1982 में विश्व हिन्दू परिषद ने देश भर में ‘संस्कृति रक्षा निधि’ का संग्रह किया। श्री ओंकार भावे को उस दौरान परिषद का पूरे उ.प्र. का काम दिया गया था। लम्बे समय तक लखनऊ केन्द्र बनाकर वे परिषद के कार्य को गति देते रहे। 

1983 में हुए प्रथम एकात्मता यज्ञ में गंगा माता तथा भारत माता के रथों के साथ पूरे देश में सैकड़ों यात्राएं निकाली गयीं। तीन मुख्य यात्राओं में से एक हरिद्वार से नागपुर तक थी। ओंकार जी उसके प्रमुख थे। 1984 में वे \’श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति\’ तथा \’धर्मस्थान मुक्ति यज्ञ समिति\’ के वरिष्ठ मंत्री बने। जन्मभूमि का ताला खुलने पर रामजानकी रथों को शासन ने बंद कर दिया। उनकी मुक्ति के लिए हुए आंदोलन का उन्होंने ही नेतृत्व किया तथा शासन को झुकने को मजबूर कर दिया।

1984 में उन्हें उ.प्र. और म.प्र. में परिषद के संगठन विस्तार का काम मिला। दो नवम्बर, 1990 को अयोध्या में हुई कारसेवा में उन्होंने एक जत्थे का नेतृत्व किया था। 1991 में वे परिषद के केन्द्रीय मंत्री बने और उनका केन्द्र दिल्ली हो गया। 1995 में वे संयुक्त महामंत्री तथा 2009 में उपाध्यक्ष बने। इस काल में उन्होंने मातृशक्ति,दुर्गावाहिनी तथा बजरंग दल के कार्य को नये आयाम प्रदान किये। श्रीमां जन्मशती आयोजनों में भी वे सक्रिय रहे।

लेखन व प्रकाशन कार्य में भावे जी की प्रारम्भ से ही रुचि थी। परिषद के केन्द्रीय कार्यालय से प्रकाशित होने वाले पाक्षिक ‘हिन्दू विश्व’ के वे सम्पादक तथा प्रकाशक थे। पाक्षिक समाचार बुलेटिन ‘संस्कृति सरगम’ के भी वे प्रकाशक तथा स्वामी थे। स्वर्गीय जगन्नाथ राव जोशी के बारे में प्रकाशित मराठी ग्रंथ तथा उनके अनेक भाषणों का उन्होंने हिन्दी अनुवाद किया था। परिषद के विविध आयामों के बारे में उन्होेंने छोटी-छोटी पुस्तकें प्रकाशित कीं।

जून की भीषण गर्मी में परिषद के प्रशिक्षण वर्गों के प्रवास से लौटने पर सांस संबंधी कठिनाई के कारण उन्हें चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। वहां पता लगा कि उनके फेफड़े बुरी तरह संक्रमित हो चुके हैं। चिकित्सा के दौरान ही उनके गुर्दे भी संक्रमित हो गये। कई दिन तक जीवनरक्षक प्रणालियों पर रहने के बाद 23 जुलाई, 2009को उनका देहांत हो गया। इस प्रकार एक निष्ठावान कार्यकर्ता ने आजीवन सक्रिय रहकर अपनी संघ प्रतिज्ञा पूर्ण की।

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