कोरकू जनजाति में भी कार्तिक माह की अमावस्या (पड़वा) को ही दीपावली मनाई जाती है। कोरकू ‘दीवा दावी’ करते हैं अर्थात मिट्टी के दीपक जलाकर गऊ (गाय) की आरती उतारते हैं।
मवेशियों के खूरों में होने वाली बीमारी से बचाव के लिये कोरकू जनजाति के लोग गाय-बैल की पूजा करते हैं। ग्वाल देव की भी पूजा होती है। पड़वा के दिन हनुमान मंदिर में दर्शन के लिये जाते हैं।
रात्रि में भूगड़ू (बाँसुरी जैसा लगभग चार फीट लंबा फूँककर बजाए जाना वाला वाद्य) पर विभिन्न लोक धुनें बजाकर नृत्य करते हैं।
दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व मवेशियों के शरीर पर विभिन्न रंगों के छाप हाथों से लगाते हैं।
कोरकू घरों में दीपावली के दिन माँस-मछली नहीं पकता, मीठे पकवान बनते हैं। गाय, बैल की जूठी खिचड़ी खाने की मान्यता है।